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बुधवार, 1 जून 2011

ज़मीन और जूता



एक मासूम सी उदास लड़की की खाली आँखों में रेगिस्तान का वीरानापन था
सूखे होंठों पर पपड़ी सी जमी थी पर उसने पानी का एक घूँट तक न पिया था
वह अपने ही  देश के गृहयुद्ध की विभीषिका से गुज़र कर आई थी
उसकी उदासी उसका दर्द उसके जख़्म नर-संहार की देन थी 
उसे चित्रकारी करने के लिए पेपर और रंगीन पेंसिलें दी गई थीं
कितनी ही देर काग़ज़ पेंसिल हाथ में लिए वह बैठी काँपती रही थी 
आहिस्ता से उसने सफ़ेद काग़ज़ पर काले रंग की पैंसिल चलाई थी
सफ़ेद काग़ज़ पर उसने काले से हैवान की तस्वीर बनाई थी
काले  हैवानों से भरे सफ़ेद काग़ज़ ज़मीन पर बिखराए थे
उसी ज़मीन के कई छोटे छोटे टुकड़े भी चित्रों मे उतार दिए थे
हर चित्र में ज़मीन का एक टुकड़ा, उस पर कई जूते बनाए थे
रौंदी हुई ज़मीन पर जूतों के हँसते हुए हैवानी चेहरे फैलाए थे
लम्बे नुकीले नाख़ून ख़ून में सने सने मिट्टी में छिपे हुए थे
बारिश की गीली मिट्टी में अनगिनत तीखे दाँत गढ़े हुए थे
स्तब्ध ठगी सी खड़ी खड़ी क्या बोलूँ बस सोच रही थी   
व्यथा कथा जो कह न पाई , तस्वीरें उसकी बोल रही थीं  



16 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

सत्य कहा आपने व्यथा कथा जो ना कह पाई ............सुंदर भावाव्यक्ति ,बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ओह ..बहुत मार्मिक

Sanjay Karere ने कहा…

मन को छू गया हर शब्‍द... बेहतरीन चित्रण...

डा० अमर कुमार ने कहा…

चित्र स्वयँ ही इतना कुछ कह रही है, कि उसके सम्मुख शब्द गौण हैं । जहाँ वाह के बदले आह निकले उस पर टिप्पणी करना स्वयँ के साथ धोखा है !

M VERMA ने कहा…

शब्दों से परे होते हैं चित्र पर कथन के समर्थ होते हैं

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

कविता का यह नया रूप बहुत भाया। पीड़ा और रोष की अभिव्यक्ति।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

dard ka resha resha bol utha hai... kya koi usi tarah sunnewala hai

Unknown ने कहा…

badi khubsurti se kahi gai hai kisi ke dil ki peeda...

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

मैं सोचता हूं कि भारत में भी कई इलाके हैं, कई कोने, जहां ऐसा ही आतंक झेलती डरी सहमी सांवली सी लड़की होती होगी!
वह कहां जाये!?

अमिताभ मीत ने कहा…

क्या कहें ? बहुत अजीब है सब !!

vandana gupta ने कहा…

उफ़ …………बेहद मार्मिक चित्रण किया है।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

Jeevan ki vidrooptaon ka sateek chitran.
............
प्यार की परिभाषा!
ब्लॉग समीक्षा का 17वां एपीसोड--

दिगम्बर नासवा ने कहा…

एक भूखे की कला का रूप तो देखो
पत्थरों से भी उसने रोटी तराशि है ...

आपकी रचना बहुत ही मार्मिक ... जीवित और सत्य रचना है ...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

ह्रदयश्पर्सी....मार्मिक प्रस्तुति
चित्र का संयोजन ...भावपूर्ण

Udan Tashtari ने कहा…

बेहद मार्मिक...

ghughutibasuti ने कहा…

क्या कहा जाए? जिसको झेलना पड़ता है वही इस दर्द के सच को जानता है.
घुघूती बासूती