प्रेम का भाव, उस भाव के आनन्द की अनुभूति...इस पर बहुत कुछ लिखा गया है.. अक्सर बहस भी होती है लेकिन बहस करने से इस विषय को जाना-समझा ही नही जा सकता ... केवल प्रेम करके ही प्रेम को जाना जा सकता है। प्रेमकरतेहुएहीप्रेमकोपूरीतरहसेजानाजासकताहै... नदीमेंकूदनेकीहिम्मतजुटानी पड़ती है तभीतैरना आता है ... प्रेम करने का साहस भी कुछ वैसा ही है.. किसी के प्रेम में पड़ते ही हम अपने आप को धीरे धीरे मिटाने लगते हैं...समर्पण करने लगते हैं..अपने आस्तित्त्व को किसी दूसरे के आस्तित्त्व में विलीन कर देते हैं... यही साहस कहलाता है... प्रेम का स्वरूप विराट है...उसके अनेक रूप हैं... शिशु से किया गया प्रेम वात्सल्य है जिसमे करुणा और संवेदना है तो माँ से किया गया प्रेम श्रद्धा और आदर से भरा है...उसमें गहरी कृतज्ञता दिखाई देती है... यही भाव किसी सुन्दर स्त्री से प्रेम करते ही तीव्र आवेग और पागलपन में बदल जाते हैं.. मित्र से प्रेम का भाव तो अलग ही अनुभूति कराता है, उसमें स्नेह और अनुराग का भाव होता है... प्रेम के सभी भाव फूलों की तरह एक दूसरे से गुँथे हुए हैं...हमारा दृष्टिकोण , हमारा नज़रिया ही प्रेम के अलग अलग रूपों का अनुभव कराता है।
मेरेविचारमेंप्रेमचमकतेहीरेसासमृद्धहै.... कईरंगहैंइसमेंऔरकईठोसपरतेंहैं . हरपरतकीअपनीअलगचमकहैजोअदभुतहै... अद्वितीय है !!!
दो दिन पहले मम्मी का फोन आया तो अब तक उनकी सिसकियाँ भूलतीं नहीं..... जीवन साथी के बिना रहने का दर्द... तीनों बच्चों की ममता... छटपटाती माँ समझ नहीं पाती कैसे उड़ कर जब जी चाहे अपने साथी से मिले और कोसे कि क्यों अचानक छोड़ चला गया.... मरहम से बच्चे दूर दूर ...कैसे उन्हें एक साथ मिल पाए... एक बेटी दिल्ली में...एक बेटी दुबई में..एक बेटे सा दामाद साउदी अरब में.. . और खुद सात समुन्दर पार बेटे के साथ जिससे दूर होना भी आसान नहीं... चाह कर वहाँ से निकलना आसान नहीं... पोता दादी का दीवाना.... जितने दिन दादी दूर..उतने दिन पोता बीमार.... बड़ी बेटी ही नहीं मैं माँ की दोस्त भी हूँ.... .... कई बार पुरानी यादों का पिटारा खोल खोल कर दिखा चुकी मम्मी की एक याद आज फिर ताज़ा हो गई.... पिछले दिनों एक अंग्रेज़ी फिल्म 'किल बिल' देखी... जिसमें ज़रूरत से ज़्यादा मारकाट थी लेकिन फिर भी हमें उस मारकाट के नीचे दबा भावात्मक पक्ष भी देखने को मिला ... यहाँ फिल्म की समीक्षा करने की बजाय बात उस फिल्म के एक गीत की है जो हमें बेहद पसन्द है... और मम्मी की यादों से कहीं जुड़ा सा पाती हूँ...... बात उन दिनों की है जब मम्मी पाँच साल की थी तब छह सात के डैडी अपने पिताजी के साथ उनके घर गए थे मिलने.... दूर के रिश्तों का तो हमें पता नहीं लेकिन कुछ ऐसा ही था और अक्सर दोनो परिवार एक दूसरे से मिलते जुलते थे। उस दिन कुछ अनोखा हुआ था... कुछ बच्चे एक साथ मिल कर गुल्ली डंडा खेल रहे थे.... छह सात साल के एक लड़के से उसके पिता ने पूछा , "बेटा ,,, तुम्हें 'अ' या 'ब' में कौन ज़्यादा अच्छी लगती है ? " लड़के ने पहले पिता को फिर उन दोनों लड़कियों को देखा ... अचानक अपने हाथ का डंडा 'अ' के सिर पर रख दिया... बस बात पक्की हो गई... लड़के के पिता ने कहा ....आज से यह 'अ' बिटिया हमारी अमानत आपके पास.... जल्दी ही हम अपनी बहू बना कर ले जाएँगे......रानी बिटिया को राजा बेटा राज कराएगा.... 'अ' से अम्मी बन गई हमारी प्यारी सी...
'किल बिल' फिल्म का 'बैंग बैंग' गीत सुनकर पता नहीं क्यों डैडी की याद आ गई जो मम्मी को अचानक कुछ कहे बिना सदा के लिए छोड़ कर चले गए.... बचपन की यादों से लेकर आखिरी पल की यादें...पल-पल एक-एक याद गोली की तरह सीधा सीने को चीरती सी निकल जाती हैं.... और मैं चाह कर भी कुछ नहीं पाती....
I was five and he was six We rode on horses made of sticks He wore black and I wore white He would always win the fight
Bang bang, he shot me down Bang bang, I hit the ground Bang bang, that awful sound Bang bang, my baby shot me down.
Seasons came and changed the time When I grew up, I called him mine He would always laugh and say "Remember when we used to play?"
Bang bang, I shot you down Bang bang, you hit the ground Bang bang, that awful sound Bang bang, I used to shoot you down.
Music played, and people sang Just for me, the church bells rang.
Now he's gone, I don't know why And till this day, sometimes I cry He didn't even say goodbye He didn't take the time to lie.
Bang bang, he shot me down Bang bang, I hit the ground Bang bang, that awful sound Bang bang, my baby shot me down...
कल बेटे वरुण ने पूछा कि इतने दिन से आपने अपने ब्लॉग पर कुछ लिखा क्यों नहीं... ? हम बस मुस्कुरा कर रह गए...सच में हम खुद नहीं जानते कि क्यों ऐसा हो रहा है... क्यों हम कुछ लिख कर भी पब्लिश का बटन नहीं दबा पाते... हरे रंग की डायरी के कितने ही पन्ने नीले रंग की स्याही से रंग गए लेकिन उन्हें टाइप करके कोई भी रंग नहीं दे पा रहे.....
सुबह की कॉफी पीते समय कुश की कलम से लिखी कहानी एक पतंग की पढ़ी ,,,उसमें समीर जी की उड़ती पतंग पर भी नज़र गई ... सोचा काश हम लाल रंग की पतंग हो जाएँ... सूरज के लाल अँगारे सा रंग उधार लेकर ...या फिर लाल लहू के सुर्ख रंग में डूब जाएँ .....एक ऊर्जा लिए हुए... ऐसी ऊर्जा जो अपने को ही नहीं ...अपने आस पास के वातावरण में भी असीम शक्ति भर दे.... फिर कोई पतंग काले माझे से लहू-लुहान होकर अपना वजूद न खो सके... या फिर नीले आसमान में अपने आसपास उड़ती रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर सिर्फ सपने न देखे बल्कि उन सपनो को पा ले....
आधी अधूरी कहानियाँ ...कविताएँ और लेख...ऐसे जैसे बिना इस्तरी किए सिलवटों वाली पोशाकें...जिन्हें अपने ब्लॉग और डायरी की अल्मारी में ठूँस ठूँस कर भर दिया हो... उधर से आँख बन्द करके दूसरे की अल्मारी को खोल खोल कर देखते है तो सलीके से सजी हुई अलग अलग रंग की पोशाकें देख कर मन भरमा जाता है....बस उन्हें देखने के मोह में सब भूल जाते हैं.... बस उसी मोह जाल में जकड़े खड़े थे कि घुघुती जी की अल्मारी पर नज़र गई.... मृतकों के लिए.... यहाँ तो पंचभूत के एक तत्व मिट्टी की नश्वर पोशाक दिखी... जो कभी हमें भी त्यागनी पड़ेगी... मिट्टी की पोशाक में सिलवटें आते ही उसे त्यागना पड़ेगा.... मन ही मन हम मुस्कुरा रहे थे कि हम ऐसे ही अपने आधे अधूरे लेखन की सलवटो पर शरमा रहे थे... हम खुद भी तो ऐसी ही पोशाक हैं.... आत्मा तो निकल जाएगी किसी नई पोशाक की खोज में.....
हम भी निकले एक नई अल्मारी की खोज में...नई पोशाकों को देखने की लालसा में.... कुछ अल्मारियों की पोशाकें इतनी आकर्षक हैं कि उन्हें देखे बिना नहीं रहा जाता.... बनावट ...रंगों का चयन... नए ज़माने के नए डिज़ाइन.... मानसिक हलचल होने लगती है कि काश हम भी ऐसा ज्ञान पा सकते.लेकिन होता कुछ और है..जिस विषय पर हम चिंतन करते रह जाते हैं...उस पर कोई और कारीगर अपना हुनर दिखा जाता है... मम्मी का पर्स , उनकी अल्मारी, उनके दहेज का पुराना लोहे का ट्रंक... आज भी उन्हें बार बार खोल कर देखने का जी चाहता है...ठीक वैसे ही ब्लॉग जगत की ऐसी अल्मारियाँ हैं जो हम बार बार खोलने से बाज़ नहीं आते... किसी पोशाक को झाड़ते ही धूल के कण धूप में चमकने लगते हैं तो किसी पोशाक में वही कण जुगनू से जगमग करने लगते हैं....
एक अल्मारी ऐसी है जिसे खोलते ही लगता है कि उसकी एक एक पोशाक सिर्फ मेरे लिए है... जिसमें प्रेम के सुन्दर भाव से बनी हर पोशाक की अपनी ही खूबसूरती दिखाई देती है....
कुछ अल्मारियों को खोलते ही....लहराती पोशाकों के पीछे से संगीत के लहराते स्वर सुनाई देने लगे .... दिल और दिमाग को सुकून देने वाला मधुर संगीत स्वर..... और कहीं आत्मा को बेचैन कर देने वाली स्वर लहरी सुनाई देने लगी.....
जाने से पहले ओशो का चिंतन में आज की पोस्ट 'सहनशीलता' पढ़ कर बच्चो को सुना रहे हैं ....
और भी कई ब्लॉग्ज़ हैं जो परिवार में पढ़े जाते हैं और उन पर चर्चा भी होती है... उन पर फिर कभी बात करेंगे....
मन ही मन बेटे वरुण को शुक्रिया अदा कर रहे हैं कि उसके एक सवाल ने ब्लॉग जगत में नई पोस्ट को जन्म दिया...
आज अनिलजी के ब्लॉग़ पर गीत सुना.. " माई री,,,, मैं कासे कहूँ अपने जिया की बात" ..... सच में कभी कभी हम समझ नहीं पाते कि दिल की बातें किससे कहें...और कभी कभी तो हम चाह कर कुछ कह नही पाते...मन की बातें मन में ही रह जाती हैं... चाहते हैं कि अनकही को कोई समझ ले... इसके लिए कभी हम शब्दों का चक्रव्यूह रचते हैं तो कभी किसी चित्र...किसी गीत...किसी चलचित्र के माध्यम से अपने मन की बात करते हैं... सोचते है कि कोई भटकते मन की खामोशी और बेचैनी समझ पाएगा .... लेकिन ऐसा कम ही होता है.... हमारे दिल ने भी एक गीत के माध्यम से कुछ कहना चाहा था.. जिसे शायद किसी ने सुना ही नहीं... कुछ दिल ने कहा .... कुछ भी नही..............
मन को समझाने के लिए मन ही मन यह गीत गुनगुनाते हैं...
खिलखिलाती धूप से बादलों ने छेड़ाखानी की धरा की ओर दौड़ती किरणों का रास्ता रोक लिया .... इधर उधर से मौका पाकर बादलों को धक्का देकर भागी किरणें... कोई सागर पर गिरी तो कोई गीली रेत पर हाँफते हाँफते किरणों ने आकुल होकर छिपना चाहा .... बादलों की शरारत देख लाल पीली धूप तमतमा उठी अब बादलों की बारी थी दुम दबा कर भागने छिपने की चिलचिलाती धूप से छेड़ाखानी मँहगी पड़ी अपने ही वजूद को बचाने की नौबत आ पड़ी.... !
एक बार फिर मध्य प्रदेश जिसे हम भारत का दिल कहते हैं, ने दिल मोह लिया...पहले भी हमने मध्य प्रदेश पर एक कविता लिखी थी...आज फिर कुछ लिखने को जी चाह रहा है.. सुबह सुबह गल्फ न्यूज़ के पन्ने खोलते ही एक प्यारी सी मुस्कान में शारजाह की एयरलाइन 'एयर अरेबिया' की एयर होस्टेस खड़ी दिखाई दी. रंजिता कोठाल जो मध्य प्रदेश के जबलपुर की ट्राइब से है उसके सपनों को पंख मिल गए....
21 साल की रंजिता एक महीने में एक लाख रुपया (Dhs 8,573) वेतन तो पाती ही है लेकिन उसके साथ साथ जो उसके व्यक्तित्त्व में निखार आया वह देखते ही बनता है. माता पिता को यकीन ही नही कि उनकी बेटी जिसने बी ए भी नहीं किया इतना पैसा कमा सकती है.
उसी तरह से दक्षिण भोपाल की 17 साल की सोनम ने अपने किसान पिता को जब एक विज्ञापन पढ़ कर सुनाया तो एक बार उन्हें भी यकीन नहीं आया कि एयर होस्टेस की ट्रेनिंग पर एक भी पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा. उसी पल पिता ने अपनी बेटी को ट्रेनिंग के लिए रवाना कर दिया.
राज्य सरकार द्वारा एयर होस्टेस की मुफ्त ट्रेनिंग एक सराहनीय कदम है जिससे दूर दराज की उपजातियों और दलित वर्ग की लड़कियों को दुनिया देखने का अवसर तो मिलेगा ही , घर परिवार का जीवन स्तर भी उन्नत होगा. समाज में उनकी एक नई पहचान बनेगी.