दुलारी अपने माँ बाबूजी की आखिरी संतान और सातवीं बेटी थी ...सारे घर की लाडली....दुलारी के पैदा होने से पहले से ही दूर के एक रिश्तेदार आते..हर बार एक लड़की का नाम ले लेते कि इसे बहू बना कर ले जाऊँगा....दुलारी की माँ हँस पड़ती..अरे भई पहले बेटा तो पैदा करो फिर बहू की सोचना....पंडितजी तो धुन के पक्के थे ...उन्हे तो पक्का विश्वास था कि इसी घर की बेटी उनके घर की बहू बनेगी.....
एक दिन ईश्वर ने पंडितजी की सुन ही ली... लाखो मन्नतो के बाद बेटा पैदा हुआ... अपने नाम को सार्थक करेगा... अपने पिता का नाम रोशन करेगा...सोच कर नाम रखा गया ओम.... उधर ओम के पैदा होने के बाद तोषी और दो साल बाद दुलारी का जन्म हुआ...
पडितजी बहुत खुश थे.....अपने सात साल के बेटे ओम को लेकर फिर गए दुलारी की माँ से मिलने... दुलारी की माँ की मेहमाननवाज़ी पूरे खानदान मे मशहूर थी.... चाय नाश्ते का इंतज़ाम किया...फिर इधर उधर की बाते होने लगी.... नन्हा ओम गली के दूसरे बच्चों के साथ गुल्ली डंडा खेलने में मस्त हो गया.... लाख बुलाने पर भी खाने पीने की चीज़ों पर नज़र तक न डाली....
दुलारी अपनी दो साल बडी बहन तोषी के साथ लडको को खेलते देख रही थी...ओम के पिता ने जैसे ही दोनो
लडकियो को देखा ... लपके अपने बेटे ओम की तरफ.... ‘अच्छा बेटा ...बता तो सही तू किससे शादी करेगा.... ‘
दो बार बताने पर भी कुछ न बोला ओम....शायद उसे शादी का मतलब ही पता नहीं था.....पडितजी कहाँ कम थे...
झट से बोले...’अच्छा तो ऐसा कर...दोनो मे से जो तुझे अच्छी लगती हो उसके सिर पर डंडा रख दे... ओम ने एक पल दोनो को देखा और दुलारी के सर पर डंडा रख छुआ कर भाग गया फिर से खेलने....
बस इस तरह हो गई बात पक्की....दुलारी और ओम की.....दुलारी ने अभी दसवीं पास ही की थी कि उधर से शादी की जल्दी होने लगी..पंडितजी को लगा कि वे ज़्यादा दिन ज़िन्दा नहीं रहेंगे...इसलिए दुनिया से छह महीने पहले कूच करने से पहले ही झट मंगनी पट शादी कर दी...
दोनो बँध गए जन्मजन्म के बँधन में.... तीन बच्चे हुए... दो लडकियाँ ...एक लडका...मिलजुल कर सुख दुख साथ साथ बाँट कर चलते रहे.... ज़िन्दगी के ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर दोनो एक साथ बढते रहे आगे.... बच्चों को उनकी मंज़िल तक पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोडी..... सब अपने अपने घर परिवार में सुख शांति से खुश थे .... ओम और दुलारी जानते थे कि बच्चे हर मुश्किल का डट कर सामना करेंगे.....
एक दिन ज़िन्दगी जीने की जंग मे ओम हार गए.... रह गई अकेली दुलारी .... जीने की चाहत न होने पर भी जीना....मुहाल था...लेकिन बस नहीं था.... मन को मुट्ठी मे कस कर बाँधे दुलारी जीने के हर पल की कोशिश में जुटी है....
17 टिप्पणियां:
Very soulful story.. :)
कहानी में कहीं कुछ अधूरा सा है... या फिर इतना प्रतीकात्मक है मैं समझ न सका !
बात तो समझ आई!!
माता जी को जन्म दिन की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.
मां को जन्मदिन की शुभकामनायें।
लेकिन दुलारी अकेली क्यों पड़ गयी अपने नाती पोतो के पास क्यों नहीं चली गयी?
माँ के जन्मदिवस पर बधाई। आपको भी शुभकामनाएं।
माता जी को जन्मदिन की अनेक शुभकामनाएं.
बड़ी सुन्दरता से तथ्यों को कहानी का रूप दिया है...अच्छा लगा,पढ़कर
due regards to aunty and i am sure with her strength she is never going to be lonely being alone is just a matter of state
badhaee maa ke janm din kee.baccho keee himmat hee maa kee bhee himmat ho jatee hai......
कन्फ्यूज हूँ मैं भी. कहानी या.. ?
@मोनाली शुक्रिया...
@डॉअमर, मैने लेबलज़ में लिखा है...."जन्मदिन, जीवन, जीवनदायिनी"
@समीरजी, आपने समझा आपका आभार...
@उन्मुक्तजी...अपने पोते पोती के पास ही है वे.. लेकिन बिन साथी सब सून वाली बात है उनके लिए.
@अजितदी, आभार
@रश्मि...वाह..तारीफ सुनकर अच्छा लगा :):)
@रचना...u r right... i am sure she will pass this state also ..thanks for wishes..
@अपनत्व..शुक्रिया..सही कहा आपने...
@अभिषेक... लेबल देख लो एक नज़र.. :)
ओह ,यह कैसी और किसकी संघर्ष कथा है? जीवन का संघर्ष बयाँ करती !
माँ जी को बहुत बधाई !
@Arvind Mishra अभी तो हमारा संघर्ष चल रहा है हिन्दी तकनीक से..देखें कितना सफल हुए है..आपकी टिप्पणी पर हमारी प्रतिक्रिया आती है तो सफल हुए..
कहानी अभी आगे भी है क्या । दुलारी का संघर्ष ।
माता जी को जन्मदिन की अनेक शुभकामनाएं...
बढ़िया कहानी ...कहानी के अगले अंक की प्रतीक्षा है..
bahut achchha laga padhkar ,magar ant ne man dukha diya ,badhai maa ko
माँ से अच्छा कोई नहीं ...सहेज कर रखियेगा इनके प्यार को ! शुभकामनायें उनको !
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