पिछली पोस्ट में मेरे सब्र का बाँध जाने कैसे टूट गया और उस बहाव में छिपे जज़्बात बह निकले...दिल और दिमाग ऐसे खिलाड़ी हैं जो हर पल हमसे खेलते हैं.... कभी खुद ही हार मान लेते हैं और कभी ऐसी मात देते हैं कि इंसान ठगा सा रह जाए...
मुझे शब्द शरीर जैसे दिखाई देते हैं तो उनके अन्दर छिपे भाव उनकी आत्मा.... अनगिनत भावों को लिए शब्द सजीव से होकर हमारे सामने आ खड़े होते हैं....उनके अलग अलग रूप और उनमें छिपे अर्थ कभी उल्लास भर देते हैं तो कभी उदासी.....
कल कुछ ऐसा ही हुआ...’ज़ील’ की पोस्ट ने अतीत में की कई गलतियों को याद दिला दिया जिन्हें सुधार पाना अब सपना सा लगता है.....मन बेचैन हो गया...उधर ‘उड़नतश्तरी’ की कविता पढ़कर दिल और दिमाग ने ऐसा खेल खेला कि मैं कमज़ोर पड़ गई....अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई...बस जो दिल में आया लिखती चली गई....
नाहक उदास पोस्ट लिख कर अपने ब्लॉग़ मित्रों को दुखी कर दिया ... सबसे माफी चाहूँगी......खासकर समीरजी से...... वास्तव में उनकी कविता तो एक साधन बन गई अन्दर के दबे दर्द को बाहर निकालने में.....असल में हम हरदम हँसते हुए ऐसा दिखाना चाहते हैं कि सब ठीक ठाक है लेकिन अन्दर ही अन्दर कहीं गहराई में दर्द का सोता बह रहा होता है....जो कभी कभी बह निकलता है और हम बेबस होकर रह जाते हैं....
ऐसी बेबसी मुझे कभी अच्छी नहीं लगी.....ज़िन्दगी हमेशा एक बगीचे सी दिखी.... जिसमें सुख के खुशबूदार रंग बिरंगे फूल हैं तो दुख के अनगिनत झाड़ झंकाड़ भी हैं......दोनो को साथ लेकर चलने में ही ज़िन्दगी का असली मज़ा है....अगले पल का भरोसा नहीं , मिले न मिले... इसी पल को बस भरपूर जी लें.......
10 टिप्पणियां:
मीनाक्षी जी, जैसा भी जीवन मिला है उसे तो जीना होगा। लेकिन उस जीवन से दर्द को कम करने का प्रयास हमेशा ही जारी रहना चाहिए।
दुख को भी जीवन का अनिवार्य अंग मानना होगा मीनाक्षी जी, तभी सुख और भी प्यारे लगेंगे.
kuchh hi shabdoN meiN
sukh aur dukh
donoN ki anubhooti mil gaee
jeena isi ka naam hai..... !!
आपका दर्द समझ सकता हूँ.....वैसे माफी मांगने जैसी कोई बात ही नहीं है.
Bahut sundar khayalaat!
कभी-कभी भावनाओं के लगाम को छोड़ देना चाहिए.....उसके बाद जो हंसी....संतोष....मुस्कराहट आती है वो ज्यादा शुद्ध होती है....और ज्यादा ख़ुशी दे जाती है .
so chill...:)
प्रिय मीनाक्षी जी
मैं तो उम्र में आपसे बहुत ही छोटा हूँ पर आपकी दुःख भरी दास्ताँ को समझ सकता हूँ | शायद ये मेरे दो लाइन आपको सुकून दे |
"जिंदगी की जंग तोप और गोलों से नही बल्कि मजबूत इरादों और पक्के वसूलों से जीती जाती है"
भावनावों की बाढ़ से निकलिए और आगे बढिए खुशियाँ इन्तेजार कर रही है |
आभार के साथ आकाश सिंह |
www.akashsingh307.blogspot.com
दर्द का अहसास करना और कवि ह्रदयों की अभिव्यक्ति अक्सर स्पष्ट नहीं होती ....इसमें अटपटा कुछ भी नहीं ...
हार्दिक शुभकामनायें !
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हम सभी ज़िन्दगी के किसी न किसी पड़ाव पर एक बड़े दुःख से गुज़रते हैं । ये दुःख ही हमें मज़बूत बनाते हैं और हमारी पूरी कोशिश रहती है की हमारे दुःख ज़ाहिर न होने पाएं , जज़्बात कभी-कभी बह ही निकलते हैं। इसी बहाने आपको करीब से जानने से मौका मिला। आप एक बेहद हिम्मती स्त्री हैं । आपकी हिम्मत से हम भी थोडा साहस और धैर्य उधार ले रहे हैं ।
आपकी खुशहाली और बच्चे के अच्छे स्वास्थ की कामना करते हैं ।
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@दिनेशजी, जी..इसी कोशिश से जीना आसान हो जाता है,
@वन्दनाजी, सही कहा तभी सुख बेहद प्यारे लगते है..
@दानिश..दोनो के साथ जीना ही जीना है वह भी मुस्कराते हुए..
@समीरजी,छोटी छोटी बातें भावुक कर जाएँ तो ऐसा ही होता है.
@क्षमा,,शुक्रिया
@रश्मि,भावनाओं की लगाम ढीली ही रखेंगे ताकि बाद मे और ज़्यादा खुशी का मज़ा ले सके :)
@आकाशजी,भावनाओं की बाढ़ आना भी स्वाभाविक है, उनसे निकलने की हिम्मत भी आ ही जाती है.दो लाईने ही हिम्मत देने वाली हो जाती है.
@सतीशजी,शुभकामनाओं का चमत्कार होते देखा है..शुक्रिया
@ज़ील..यकीन है कि आपकी कामनाओं का असर होगा... लेकिन आप की पिछली पोस्ट पर निराशा का भाव बेचैन कर गया...साहस और धैर्य उधार में नहीं लिया जाता..प्यारभरे तोफहे के तौर पर कबूल किया जाता है..
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