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सोमवार, 17 सितंबर 2007

राजनीति से दूर

बात उन दिनों की है जब मैं कॉलेज के दूसरे साल में थी । पापा राज्य गृहमन्त्री के उप-सहायक के रूप में काम रहे थे। मन्त्री जी की बेटी मेरी हमउम्र थी सो घर में आना-जाना शुरु हो गया। एक दिन मन्त्री जी के बेटे ने मुझे 'यूथ कांग्रेस' में शामिल होने को कहा तो हाथ जोड़कर माफ़ी माँग ली। दोस्ती और राजनीति में से मैंने दोस्ती को ज़्यादा महत्तव दिया। बस उसी शाम इस कविता ने जन्म लिया क्योंकि लाख सोचने पर भी मैं राजनीति में जाने का साहस न कर पाई। साहस नहीं था या कायरता थी। कोई भी नाम दे दीजिए लेकिन कविता ज़रूर पढ़िए। 


 भ्रष्ट राजनीति या भ्रष्ट सभी नीति सही करने का नहीं कोई solution . 
 भ्रष्टाचारियों, अत्याचारियों से समाज में फैल गया है चारों ओर pollution . 
 जीवन के हर क्षेत्र में फैल चुका है corruption 
अब तो शायद कभी हो इसमे कोई interruption. 
 भ्रष्टाचार में लिप्त नेता जनता को देता नहीं education 
 बेचारी अनपढ़ जनता का होता रहता है manipulation. 
 धूर्त नेताओं के कारण सिर पर आता बार-बार election 
सूझे नहीं भोली जनता को कैसे करें सही selection . 
 संघर्षों में जूझते लोगों को मिलती नहीं protection 
 निम्न वर्ग मैं सदा होता रहता है discrimination. 
 प्रगति के रास्ते पर बढ़ने को मिले सही direction 
विकसित हो देश हमारा करते हैं यही imagination.

5 टिप्‍पणियां:

sanjay patel ने कहा…

मीनाक्षी जी...
राजनीति से दूरी बना कर शब्दों की दुनिया में बने रहने के लिये साधुवाद. संजीदा रहने के लिये राजतंत्र से दूर रहना ही भला.

Unknown ने कहा…

मीनाक्षी जी आपकी कविता गजब की है , मस्त लिखा है आपने।

राजीव तनेजा ने कहा…

बहुत ही सटीक कविता रचने के लिए बधाई...
राजनीति से जितना दूर रहें..वही बेहतर है आज के माहोल में... लेकिन गर हर आदमी यही सोचेगा तो भी कुछ भला नहीं होने वाला है...कीचड साफ करने के लिए कीचड में उतरना ही होगा

Udan Tashtari ने कहा…

यह सब तो अपनी सोच के अनुरुप ही डिसीजन लिये जाते है, अच्छा किया. और कविता भी अच्छी बन पड़ी है.

मीनाक्षी ने कहा…

आपने समय निकाल कर मेरी रचना को पढ़ा और सराहा
आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद