कुछ पुराने ड्राफ्ट जिन्हें एक एक करके मुक्त करने की सोच रही हूँ .... यह सबसे पुराना ड्राफ्ट 3 जुलाई 2008 का लिखा हुआ है..... जस का तस पब्लिश कर रही हूँ .... कुछ ड्राफ्ट अधूरे हैं उन्हें पोस्ट करने से शायद वे भी अपने आप में पूरे हो जाएँ.....इस वक्त शाम के 6 बजे हैं. छोटा बेटा दोस्तों के साथ बाहर है ... बड़ा बेटा वरुण और हम घर में ...कई दिनों के बाद आज मौका मिला कि इत्मीनान से कुछ लिखें लेकिन पढ़ने का मोह लिखने से रोक देता है. अभी की बात ही लीजिए... ज्ञान जी की पोस्ट पढ़ कर हम सोचने पर मज़बूर हो गए... " कोई मुश्किल नही है इसका जवाब देना। आज लिखना बन्द कर दूं, या इर्रेगुलर हो जाऊं लिखने में तो लोगों को भूलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।"
हम अपनी बात करें तो इस बात का बिल्कुल भय नहीं है क्योंकि हम उलटा सोचते हैं...कोशिश में रहते हैं कि हम किसी को न भूलें... अच्छी बुरी यादों के साथ सब हमारे दिल में रहें... हम किसी के दिल में हैं या नहीं... किसी को हमारी ज़रूरत है कि नहीं इससे ज़्यादा ख्याल यह रहे कि दूसरे को लगता रहे कि उसकी ज़रूरत हमें है......
ब्लॉग जगत के बारे में सोचते हैं... अच्छा लगता है पढ़ना , जानना, समझना,,, इसी में ही वक्त बीत जाता है और लिखने की बस सोचते ही रह जाते हैं. ज्ञान जी की पोस्ट पढ़ने के बाद समीर जी की छोटी सी पोस्ट पढ़ने को मिली.... छोटी सी लेकिन भाव बहुत बड़ा लिए हुए .... सोचने लगे कि हम 'हैरान पाठक ' तो हैं ही साधारण से 'हिन्दी ब्लॉगर' भी हैं .... सब काम छोड़कर लिखने बैठ गए..सोचा कि आँखें खराब होने पर भी समीर जी अगर छोटी सी पोस्ट ठेल सकते हैं तो क्यों न हम भी एक पोस्ट डालकर दोस्तों को बोर कर दें.. ..
सुखनसाज़ में हुसैन भाइयों की गज़ल सुनते सुनते शुरु हुए... बहुत दिनों पहले लिखी हुई कई रचनाएँ जो सिर्फ डायरी के पन्नों में ही कैद हैं ...उनकी याद आ गई.... विचार आया कि क्यों न उन पुराने पलों को पन्नों की कैद से मुक्ति दे दी जाए लेकिन किश्तों में ही .... बहुत पुरानी बात याद आ रही है जब छोटे बेटे की बाहरवीं का रिज़ल्ट आना था .... आलोक जी की एक पोस्ट "टीचर की डायरी" पढ़कर अपने दोनों बेटों की याद आ गई जिन्हें हमने कभी नहीं कोसा कि 90% अंक लाने वाले बच्चों में उनका शुमार क्यों नहीं.... लाइफ के झटकों को झेलने के लिए मजबूती जिस व्यक्तित्व से आती है, वह गढ़ने का काम हो कहां रहा है।स्कूल बिजी हैं टापर गढ़ने में। पेरेंट्स बिजी हैं सुपर टापर बनाने में। व्यक्तित्व विकास के बुनियादी तत्व कहां से आयेंगे



