कहीं न कहीं किसी न किसी की ज़िंदगी में ऐसा कुछ घट जाता है जो मन को अशांत कर जाता है.......मन व्याकुल हो जाता है कि क्या उपाय किया जाए कि सामने वाले का दुख दूर हो सके... लेकिन सभी को अपने अपने हिस्से का जीवन जीना है... चाहे फिर आसान हो या जीना दूभर हो जाए... सुधा की भी कुछ ऐसी ही कहानी है जिसे अपने लिए खुद लड़ना है , अपने लिए खुद फैंसला करना है....
जाने कैसे कैसे ख़्याल सुधा के मन में आ रहे थे...सुबह से ही उसका दिल धड़क रहा था....आज शाम रिपोर्ट आनी थी ... कहीं फिर से लड़की हुई तो....कहीं फिर से नन्हीं जान को विदा होना पड़ा तो....नहीं नहीं इस बार नहीं...सुधा ने मन ही मन ठान लिया कि इस बार वह ऐसा कुछ नहीं होने देगी....
उसने पति धीरज को लाख समझाया था कि इस बार लड़का या लड़की जो भी होगा उसे बिना टैस्ट स्वीकार करेंगे......लेकिन तीसरी बार फिर माँ और बेटे में एक और ख़ून करने की साजिश हो रही थी...कितना रोई थी वह क्लिनिक जाने से पहले....पर सास ने चिल्ला चिल्ला कर सारा घर सिर पर उठा लिया था...’मुझे पोता ही चाहिए.... खानदान के लिए चिराग चाहिए बस’ पति चुप... बुत से हो गए माँ के सामने.. लाख मिन्नतें करने के बाद भी उनका दिल न पिघला... आखिर रोती सिसकती सुधा को क्लिनिक जाना ही पड़ा था....
डॉ नीना ने धीरज को एक कोने में ले जाकर खूब फटकारा था. ‘कैसे पति हो.. अपनी पत्नी की तबियत का तो ख्याल करो...तीसरी बार फिर से अगर टैस्ट करने पर पता चला कि लड़की ही है फिर क्या करोगे.... उसे भी खत्म करवा दोगे....’ धीरज की माँ ने सुन लिया और एकदम बोल उठी, ‘हाँ हाँ करवा देंगे....मुझे पोता ही चाहिए बस’
डॉ नीना कुछ न बोल पाईं.....चाहती तो पुलिस में रिपोर्ट कर देतीं लेकिन डोनेशन का बहुत बड़ा हिस्सा धीरज के पिता के नाम से क्लिनिक को आता था....न चाहते हुए भी डॉ को टैस्ट करना पड़ा...
सुधा अपने पति को देख कर मन ही मन सोच रही थी... जिसके मन में अपनी पत्नी के लिए थोड़ा सा भी प्रेम नहीं...वो इस आदमी के साथ कैसे रह पाती है ...उसे अपने आप पर हैरानी हो रही थी...पति से ज्यादा उसे खुद पर घिन आ रही थी , अपने ही कमज़ोर वजूद से वह खुद से शर्मिन्दा हो रही थी....
नहीं.....इस बार नहीं ...इस बार वह बिल्कुल कमज़ोर नहीं पड़ेगी.... इस बार बिल्कुल नहीं गिड़गिड़ाएगी...
फोन पर जब डॉ नीला ने बताया कि इस बार भी लड़की है तो पल भर के लिए उसका सिर घूम गया था...हाथ से रिसीवर छूट कर गिर गया....टीवी देखते देखते सास ने कनखियों से सुधा को देखा... फिर अपने बेटे की तरफ देखा... दोनो समझ गए थे कि डॉ नीला का ही फोन होगा...सास सुधा की ओर देखकर बेटे से कहती हैं... ‘लगता है कि फिर से मनहूस खबर आई है’
धीरज पूछते हैं... डॉ नीला ने रिपोर्ट के बारे में क्या बताया...चुप क्यों हो ....क्या हुआ....सुधा पीली पड़ गई थी..... धीमी आवाज़ में बस इतना ही कह पाई... “नहीं इस बार मैं क्लिनिक नहीं जाऊँगी...”
‘पता नहीं किस घड़ी मैं इस मनहूस को अपनी बहू बना कर लाई थी...एक पोते के लिए तरस गई...’ सास बोलती जा रही थी लेकिन सुधा के कानों में बस एक नन्हीं सी जान के सिसकने की आवाज़ आ रही थी... आँखें बन्द करके वहीं फोन के पास फर्श पर बैठ गई.....
एक बार फिर क्लिनिक चलने के लिए धीरज का आदेश...सास का चिल्लाना... सुधा पर किसी का कोई असर नहीं हो रहा था..वह सन्न सी बैठी रह गई, कुछ सोच कर वह उठी....गालों पर बहते आँसुओं को पोंछा......उसने एक फैंसला ले लिया था...इस बार वह मौत के खेल में भागीदार नहीं बनेगी , मन ही मन उसने ठान लिया , .ज़िन्दगी को नए सिरे से शुरु करने का फैंसला ले लिया था उसने ... सुधा तैयार तो हुई थी...लेकिन क्लिनिक जाने के लिए नहीं..सदा के लिए उस घर को छोड़ने के लिए....
उसके हाथ में एक सूटकेस था..... धीरज को यकीन नहीं हुआ...वह सपने में भी नहीं सोच सकता था कि सुधा ऐसा कोई कदम उठा पाएगी... वह उसे रोकना चाहता था लेकिन अपनी ही शर्तों पर...
आज सुधा कहाँ रुकने वाली थी....वह तेज़ कदमों के साथ घर की दहलीज पार कर गई.... अचानक मेनगेट पर पहुँच कर रुकी...कुछ पल के लिए धीरज के चेहरे पर जीत की मुस्कान आई लेकिन अगले ही पल गायब हो गई , सूटकेस नीचे रख कर सुधा ने गले से मंगलसूत्र उतारा......पति के हाथों में थमा कर फिर वापिस मुड़ी और बढ़ गई ज़िन्दगी की नई राह पर ....... राह नई थी लेकिन इरादे मजबूत थे... अब वह अकेली नहीं थी.. अजन्मी बेटी का प्यारा सा खूबसूरत एहसास उसके साथ था.....!














