कैसे लिखूँ मैं
बुद्धि जड़ हो गई
मन बोझिल
सफ़रनामा न्यारा
दर्ज करूँगी
थम गए हैं शब्द
गला रुँधा है
कविता हो न
लेख लिख न पाऊँ
बात बने न
निपट अकेली माँ
दर्द गहरा
मन-पंछी व्याकुल
रोता ही जाए
माँ के अंतर्मन को
छटपटाऊँ
लिख पाना कुछ भी
हाल बेहाल
मैना जब चहकी
मन बहला
ठंडी सी आह भरी
नैनों में नीर
कर्म करे अपना
मोह न जाने
उड़ जाते हैं
चींचीं करते बच्चे
पाते ही पंख
खुश्बू बनके छाएँ
करती इच्छा


