
कभी हाथ में प्रेम का प्याला
गले से उतरे जैसे हो हाला
सीने में उतरे चुभे शूल सा
इक पल में फिर लगे फूल सा
पाश में बाँधे मोह का प्याला
कभी शूल सा कभी फूल सा
पल पल पीती प्रेम की हाला
रोम-रोम में जलती ज्वाला
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साँसों का पैमाना टूटेगा
पलभर में हाथों से छूटेगा
सोच अचानक दिल घबराया
ख्याल तभी इक मन में आया
जाम कहीं यह छलक न जाए
छूट के हाथ से बिखर न जाए
क्यों न मैं हर लम्हा जी लूँ
जीवन का मधुरस मैं पी लूँ
(चित्र गूगल के सौजन्य से)