कैसे लिखूँ मैं
बुद्धि जड़ हो गई
मन बोझिल
सफ़रनामा न्यारा
दर्ज करूँगी
थम गए हैं शब्द
गला रुँधा है
कविता हो न
लेख लिख न पाऊँ
बात बने न
निपट अकेली माँ
दर्द गहरा
मन-पंछी व्याकुल
रोता ही जाए
माँ के अंतर्मन को
छटपटाऊँ
लिख पाना कुछ भी
हाल बेहाल
मैना जब चहकी
मन बहला
ठंडी सी आह भरी
नैनों में नीर
कर्म करे अपना
मोह न जाने
उड़ जाते हैं
चींचीं करते बच्चे
पाते ही पंख
खुश्बू बनके छाएँ
करती इच्छा
18 टिप्पणियां:
वाह क्या बात है। हमेशा की तरह सशक्त प्रस्तुति।
भाव अच्छे हैं. ४ हाईकुओं में ५-७-५ का निर्वहन नहीं हो पाया है. आधा शब्द गिना नहीं जाता. आशा है अन्यथा न लेंगी.
ठीक करके यह टिप्पणी मिटा दिजियेगा.
बढि़या त्रिपदम
न लिख पाने की छटपटाहट भी बहुत कुछ लिखवा लेती है।
भाव बहुत सशक्त हैं। धन्यवाद प्रस्तुति के लिये।
हमेशा की तरह सुंदर अभिव्यक्ति...आख़िर वाला हाईकू बहुत सुंदर है...
मन की बेचैनी/हालत को भावपूर्ण बयान किया है आपने!
samvedanshilta se labalab..!
पंछी निर्मोही
कर्म करे अपना
मोह न जाने
उड़ जाते हैं
चींचीं करते बच्चे
पाते ही पंख
खूबसूरत !
बहुत ही सुन्दर और सम्वेदंशील कविता है.
कुछ -कुछ रुलाने वाली भी. जीवन के रास्ते चाहे-बिन चाहे हमें अपने माता-पिता से दूर ले जाते है, खास्कर जब उन्हें सब से ज्यादा ज़रूरत होती है.
समीर जी , मुझे दो में गलती दिखाई दी जिसे ठीक कर दिया है. आपकी टिप्पणी रखना चाहती हूँ... सुधार फिर विकास की गुंजाइश ज़्यादा रहती है.
बहुत ही ईमानदारी और सरलता से भाव अभिव्यक्त किये है आपने. बहुत अच्छा लगा.
meenakshi jee,
saadr abhivaadan. aap jab maun rah kar bahut kuchh keh jaatee hain to fir keh kar naa jaane kya kya saamne aa jaataa hai. aapko padhnaa ek sukhad anubhuti hai.
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई.....बहुत सुन्दर हाइकु हैं!अच्छा लगा पढ़कर.
स्वागत घर से घर लौटने का - वैसे लौटने के दो एक हफ्ते ऊबड़ खाबड़ जैसा तो होगा - आपके भी नहीं लिखने के बहाने मजेदार रहे - पहले वाले पर गूँज [ :-)]- सादर
देखा जो मैंने
मैना जब चहकी
मन बहला
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सुंदर...भावपूर्ण.....डूब कर लिखे गये!
मैने और मैना का प्रयोग महमोहक लगा !!
इसी बहाने अच्छा लिखा है आपने.
बहुत खूब..
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