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गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

या तो दीवाना हँसे या अल्लाह जिसे तौफ़ीक दे


          पिछली पोस्ट को याद करते हुए सोचा कि अपना जन्मदिन प्यारे प्यारे मुस्कुराते बच्चों की तस्वीरों के साथ मनाया जाए......



किसी शायर ने सही कहा है ----

 “या तो दीवाना हँसे या अल्लाह जिसे तौफ़ीक दे
वरना इस दुनिया में आकर मुस्कुराता कौन है. 

 

 

यह है शरारती आर्यान, जानता है कि भारत के लोगों को नमस्ते करके आशीर्वाद लिया जाता है.



यकीन मानिए चपाती बनाने का हुनर काबिले तारीफ है... यह ईरानी नानुवा जो नान ए हिन्द बेहद पसन्द करता है.

 
छोटे भाई के बच्चे नन्ही नटखट ऑनेला के साथ सयाना समर्थ


छोटी बहन की बेटी आरुषी कहती है पोज़ बनाना कोई मुझसे सीखे


  छोटा बेटा विद्युत बचपन से ही अदाकार... 
                                                

अदाकारी भी और कलाकारी भी

 

 

 
बड़ा बेटा वरुण भागता तो कोई पकड़ न पाता  


कहता है अब मैं मस्ती करने के मूड में हूँ


बुधवार, 6 अप्रैल 2011

ज़िन्दगी खूबसूरत नहीं होती....उसे खूबसूरत बनाया जाता है !



विजय ऑफिस जाने से पहले ऑन लाइन ‘अरब न्यूज़’ पढते हैं...उनके जाते ही मैंने भी सोचा दिन शुरु करने से पहले 10-20 मिनट के लिए जीमेल देख लेती हूँ ....उस वक्त सुबह के सात बजे थे....जीमेल में मेल और बज़ दोनों ही जल्दी से देखने की सोची.... एक बज़ सन्देश पढकर दिल खुश हो गया...


अजय झा“ज़िन्दगी खूबसूरत नहीं होती....उसे खूबसूरत बनाया जाता है, मुस्कराहटों से, यादों से, सपनों से, दोस्ती से ....है न ??????”

इस खूबसूरत पंक्ति ने अतीत की कई खूबसूरत यादों के पन्ने खोल दिए....पिछले कई दिनों से ज़िन्दगी के केनवास पर बेरंग तस्वीर थी जिसे आज रंगीन यादों से खूबसूरत बनाने की कोशिश करने लगी...
सबसे पहली याद जो दिमाग में उतरी वह थी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह.... ज़िन्दगी के पच्चीस साल कभी झरना बनके शोर करते हुए तो कभी नदी की टेड़ी मेड़ी धारा बन कर गुज़र गए...अब इच्छा है कि आगे के आने वाले साल शांत झील जैसे गुज़रें..... अब कैसे गुज़रेंगे यह कौन जान सकता है.....लेकिन इच्छा तो की जा सकती है....

हम दोनों पति पत्नी निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि पच्चीसवीं सालगिरह के लिए कहाँ मिले.... दिल्ली में जहाँ बड़ा बेटा नानी के पास है...या छोटा बेटा जो दुबई में है जिसे मिले हुए अरसा हो गया था.. वरुण को हमेशा लगता है कि उसकी वजह से छोटे भाई को अकेले रहना पड़ता है...उसने सुझाया कि हमें विद्युत के पास दुबई जाना चाहिए क्यों कि वह कॉलेज छोड़ कर आ नहीं सकता था....

विजय भी रियाद से निकलना चाहते थे...तय हुआ कि विजय रियाद से और मैं दिल्ली से दुबई पहुँचू... वरुण का फैंसला था कि वह नानी के पास ही रहेगा.....छोटे बटे को बता दिया गया कि सब उसके घर इक्ट्ठा हो रहे हैं...(उसका घर इसलिए कि अब वही ज़्यादा समय वहाँ रहता है) ...विजय रियाद से और हम दिल्ली से पहुँचे....अतिथि देवो भव की उक्ति सार्थक करते हुए ईरान से भी दोस्त आ गई जो हमारी सालगिरह के लिए ख़ास आई थी....साथ लाईं थी आफ़त का गोला नन्हा सा बेटा जो बड़ो बड़ो के कान काट दे..... लेकिन कहना होगा कि सालगिरह की रौनक वही था....

घर में रह कर सादगी से सालगिरह या जन्मदिन मनाने का अपना अलग ही आनन्द है...... आसपास दान के योग्य पात्र मिल जाएँ तो उससे बढिया सेलिब्रेशन नहीं होती... न पच्चीस साल का लेखा जोखा.. न तोहफों की माँग.....बस जो साथ थे...उनके साथ मिलकर खूब मस्ती की.... रियाद की एक दोस्त सपरिवार कनाडा से आई हुई थी अपनी बेटी को मिलने...हम दोनों के बच्चों में बचपन की दोस्ती अब तक कायम है......यासमीन और मैंने दस साल तक एक ही स्टाफरूम में बैठकर सुख दुख के कई पल एक साथ बाँटे थे.....और आज भी जब मौका मिलता है तो खूब बातें होती हैं....

लिडा के पति अली और विजय की दोस्ती ने न सिर्फ हम दोनों परिवारों को एक किया बल्कि हमारे माता पिता और भाई बहन भी एक दूसरे के परिवारों को अपना मानने लगे.... दोस्ती में विश्वास और प्रेम देश, धर्म और भाषा से कहीं ऊपर होता है.... उसी प्रेम और विश्वास के कारण ही हम रिश्तों को निभा पाते हैं....

सालगिरह की सुबह दोस्तों और रिश्तेदारों के फोन सुने...कुछ के एस.एम.एस का जवाब दिया.. विद्युत को पॉकेट मनी दी....आर्यन के मनपसन्द नाश्ते में आलू के परोठें बनाए गए......सोचा गया कि आज के दिन घर से बाहर नहीं निकलेंगे.....घर पर ही खाना-पीना...म्यूज़िक और गपशप का मज़ा लिया जाएगा.. शाम होते होते लिडा और आर्यन सैर करने के बहाने बाहर निकल गए .... वापिस लौटे तो एक् के हाथ में केक और दूसरे के हाथ में फूल थे.... बहुत अच्छा लगा देख कर.....!

नन्हें आर्यन के हाथों केक कटवाया गया.....केक काटने के बाद अब उसे हिन्दी और फारसी संगीत पर डांस करना था...खुद तो नाच ही रहा था...सबको नचा दिया....बच्चों की मासूम हरकतें....उनकी छोटी छोटी खुशियाँ उनकी आँखों में चमक पैदा कर देती हैं जिसकी रोशनी से हम भी चमकने लगते हैं.... एक साथ बैठ कर पुरानी यादों को सहेजना फिर संगीत की लय पर झूमना.... यही तो चाहिए था....खाना बाहर से मँगवा लिया था... ऐसे मौके पर हुक्का न हो तो सैलिब्रेशन जैसे पूरा ही नहीं होता.... (इसे आदत न बनने दिया जाए तो मस्ती है...) गुड़गुड़ की आवाज़ और धुएँ के छ्ल्लों में कुछ देर के लिए ज़िन्दगी की पेचीदगी गुम हो जाती है........ और संगीत तो जैसे संजीवनी का काम करता है...

पच्चीसवीं सालगिरह पन्द्रह दिन तक ऐसे ही मनाते रहे....विद्युत को भी एक हफ्ते की छुट्ठी हो गई थी....हम सभी रोज़ लिडा और् नन्हें आर्यन के साथ नई नई जगह तलाशते घूमने के लिए.... छोटा सा बच्चा आर्यन जानता था कि कैसे अपनी बात मनवानी है...नमस्ते करते हुए बस प्लीज़ कहता और जो उसे चाहिए, वह पा जाता... सबसे ज़्यादा उसी ने ही इन छुट्टियों में मस्ती की....पहली बार स्कूल जाने की तैयारी में खरीददारी भी उसी की हुई...

दुबई का जे.बी.आर(जुमैराह बीच रेज़िडैंस) हर तरह से लाजवाब लगा.... जहाँ आधी रात को भी जाओ तो दिन जैसा लगता है..सड़क के किनारे के रेस्तँरा में राहत के साथ बैठा जा सकता है क्योंकि कारें न धुँआ उगलती हैं और न ही हॉर्न बजाती हैं....धीरे धीरे रुक रुक कर राहगीरों को सड़क पार करने की राह देती हुई चुपचाप चलती रहती हैं....

कब पन्द्रह दिन बीते और लिडा के जाने का वक्त आ गया पता ही नहीं चला...लिडा ईरान के लिए निकली.... दो दिन बाद हम रियाद के लिए निकले क्यों कि गल्फ में नागरिकता मिले न मिले लेकिन छह महीने के अन्दर अन्दर वापिस उस देश में दाख़िल होना होता है.....तीन दिन रियाद रह कर फिर लौटे दिल्ली....


क्रमश:

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

दर्द से अद्भुत रिश्ता


मैंने उसे देखा , मुझसे रहा न गया .......
मैं आगे बढ़ी और उसे बाँहों में भर लिया......

मैं उसे ही नहीं उसके दर्द को भी अपनी बाँहों में जकड़ रही थी........ 
धीरे धीरे उसका दर्द मेरे अन्दर उतरता जा रहा था ......
मेरी नस नस में पिघलता लावा सा.... 

मैं जड़ हो चुकी हूँ उसके दर्द से ........
लेकिन वह अभी भी दर्द में डूबा  है....
दर्द ने उसके पूरे शरीर को अपने आग़ोश में ले  रखा है....

मेरी बाँहों के घेरे से खुद  को आज़ाद करता है....
पूरी तरह से दर्द की गिरफ़्त में है....... 
उसे दानव सा दर्द भी अपना सा लगता है..... 

मैं चकित सी देखती रह जाती हूँ ......
दर्द से उसका अद्भुत रिश्ता ! 

रविवार, 3 अप्रैल 2011

मेरे बहते जज़्बात -2


पिछली पोस्ट में मेरे सब्र का बाँध जाने कैसे टूट गया और उस बहाव में छिपे जज़्बात बह निकले...दिल और दिमाग ऐसे खिलाड़ी हैं जो हर पल हमसे खेलते हैं.... कभी खुद ही हार मान लेते हैं और कभी ऐसी मात देते हैं कि इंसान ठगा सा रह जाए...
मुझे शब्द शरीर जैसे दिखाई देते हैं तो उनके अन्दर छिपे भाव उनकी आत्मा....  अनगिनत भावों को लिए शब्द सजीव से होकर हमारे सामने आ खड़े होते हैं....उनके अलग अलग रूप और उनमें छिपे अर्थ कभी उल्लास भर देते हैं तो कभी उदासी.....
कल कुछ ऐसा ही हुआ...’ज़ील’ की पोस्ट ने अतीत में की कई गलतियों को याद दिला दिया जिन्हें सुधार पाना अब सपना सा लगता है.....मन बेचैन हो गया...उधर ‘उड़नतश्तरी’ की कविता पढ़कर दिल और दिमाग ने ऐसा खेल खेला कि मैं कमज़ोर पड़ गई....अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई...बस जो दिल में आया लिखती चली गई....
नाहक उदास पोस्ट लिख कर अपने ब्लॉग़ मित्रों को दुखी कर दिया ... सबसे माफी चाहूँगी......खासकर समीरजी से...... वास्तव में उनकी कविता तो एक साधन बन गई अन्दर के दबे दर्द को बाहर निकालने में.....असल में हम हरदम हँसते हुए ऐसा दिखाना चाहते हैं कि सब ठीक ठाक है लेकिन अन्दर ही अन्दर कहीं गहराई में दर्द का सोता बह रहा होता है....जो कभी कभी बह निकलता है और हम बेबस होकर रह जाते हैं....
ऐसी बेबसी मुझे कभी अच्छी नहीं लगी.....ज़िन्दगी हमेशा एक बगीचे सी दिखी.... जिसमें सुख के खुशबूदार रंग बिरंगे फूल हैं तो दुख के अनगिनत झाड़ झंकाड़ भी हैं......दोनो को साथ लेकर चलने में ही ज़िन्दगी का असली मज़ा है....अगले पल का भरोसा नहीं , मिले न मिले... इसी पल को बस भरपूर जी लें.......

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

मेरे बहते जज़्बात


आज सुबह सुबह पहला ब्लॉग ‘ज़ील’ खुला जिसमें पहली अप्रेल को सुधार दिवस का नाम दिया. बहुत अच्छा किया. इसी बहाने अपने अन्दर भी झाँकने का मौका मिल गया...अपने आपको गलतियों का पुतला ही मानती हूँ लेकिन कोशिश यही रहती है कि एक ही गलती दुबारा न करूँ पर भी हो ही जाती है.....
खैर दूसरा ब्लॉग़ ‘उड़नतश्तरी’ खुला. उनकी कविता की कुछ् पंक्तियों ने जैसे पुराने ज़ख्मों को ताज़ा कर दिया....शुक्र है कि शुक्र की छुट्टी होने पर भी विजय ऑफिस चले गए किसी ज़रूरी काम से... और बेटा अभी सो रहा है...बहते दर्द को रोका नहीं....बेलगाम सा, बेतरतीब सा गालों पर बहने दिया...जो मेरे ही दामन को भिगोता रहा...

दर्द, छटपटाहट, बेबसी के ज्वालामुखी में पूरा बदन पिघलने लगा... आँखें अँगारे सी जलने लगीं... कानों में बार बार कोई जैसे  पिघलता लावा डाल रहा हो... कुछ देर के बाद ही गहरी उदासी और शिथिलता ने जकड़ लिया...दिल भारी हो गया.. गले में कुछ अटकने सा लगा और उस दर्द में आँखें धुँधली होने लगी...एक दर्द का सैलाब उमड़ आया जो सँभाले नहीं सँभला...

एक मासूम से बच्चे को दर्द से जूझते हुए देख कर कैसे कह दूँ कि  ‘अपने ही कर्मों के फल का अभिशाप’ है....सिर्फ 12 साल का बच्चा जिसे बेसब्री से ‘टीन’ में जाने का जोश था...जिसे अभी किशोर जीवन की सारी मस्तियों का मज़ा लेना था... उसे एक अंजाने से दर्द ने जकड़ लिया था...
ठंडी साँस लेकर लोग कहते.....पिछले कर्मों का फल है....अपने कर्मों का फल है... इस अभिशाप को कैसे टालोगे.... यह तो भुगतना पड़ेगा....मेरा मन ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगता.... कैसा अगला पिछला जन्म...जो है बस यही है...यही एक जन्म है...जो दुबारा नहीं मिलेगा....सब जन्मों का हिसाब किताब बस इसी जन्म में ही हो जाता है ....

अगर ऐसा भी है तो उस अबोध बालक को क्या बतलाऊँ .... अपने किन कर्मों का अभिशाप है ये दर्द....नहीं........यह अभिशाप नहीं......जैसे माता-पिता अपने बच्चों को जानबूझ कर तकलीफ़ नहीं पहुँचाते तो फिर भगवान ऐसा क्यों करेंगे.... कोई न कोई कारण तो रहता ही होगा.....
बेटा दर्द में छटपटाते हुए पूछता – वाय मीईईई....... वाय मम्मीईई....वाय मीईईई... मैं ही क्यों ..मुझे ही क्यों यह दर्द  मिला....!!!!!
मुस्कुरा कर कहती कि अभी आकर बताती हूँ और बाथरूम जाकर खूब रोकर दिल को काबू  में करती और एक नई मुस्कान के साथ आकर उसके पास बैठ जाती......

”बेटा, क्या तुमने अपने आपको कभी आइने में देखा है..कितनी प्यारी मुस्कान है तुम्हारी...भगवान तुम्हारी इसी मुस्कान पर फिदा हो गए...तुम्हें अपना खास बेटा मान लियाजिन पर वह ज़्यादा हक मानता है उन्हें ही अपने ख़ास ख़ास कामों के लिए चुन लेता है.”

अपनी तारीफ सुनकर बेटा मुस्कुरा दिया...”मम्मी, आप बहुत चालाक हो और बातें भी खूब बनाती हो.””नहीं नहीं...सच कह रही हूँ ..सुनो कैसे... उन्हें तुम पर पूरा भरोसा है कि इस दर्द में भी तुम मुस्कुराते रहोगे... अपने दूसरे कमज़ोर बच्चों को हौंसला और हिम्मत देने के लिए तुम्हें उनके सामने खड़ा करना चाहते हैं जो छोटे छोटे दुख - दर्द से रोने लगते हैं...तुम्हें दर्द में मुस्कुराते देख कर अपना दर्द भूल जाएँगे.......”
बीच बीच में वह अपने घुटने को दबाता , दर्द को पीता हुआ मेरी बातें सुनता जाता... अपनी तारीफ सुनना किसे अच्छा नहीं लगता... मेरे रुकने पर फिर कह देता... “मम्मी यू आर क्लेवर, बहुत चालाक हो.. बातें बनाना तो आपसे कोई सीखे...”. मैं भी कहाँ रुकती...झट से कह दिया.... “अरे भगवानजी ज्यादा चालाक हैं इसी बहाने तुम्हारा टेस्ट भी ले रहे हैं कि तुम दर्द में भी मुस्कुराते रहोगे या रोना शुरु कर दोगे..”
मासूम आँखों में एक अजीब सी चमक देखी जिसने मेरे दिल पर मरहम लगा दिया..

क्रमश....