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गुरुवार, 18 अक्टूबर 2007

धरा गगन का मिलन असम्भव !

अम्बर की मीठी मुस्कान ने,
रोम रोम पुलकित कर दिया
उससे मिलने की चाह ने,
धरा को व्याकुल कर दिया .
मिलन असम्भव पीड़ा अति गहरी,
धरा गगन की नियति यही रहती
अंबर की आँखों से पीड़ा बरसती,
वसुधा अंबर के आँसू आँचल मे भरती

हरा आँचल लपेट सोई जब निशा के संग धरा
अम्बर निहारे रूप धरा का चन्दा के संग खड़ा

सूरज जैसा अम्बर का लाल हुआ रंग बड़ा
मिलन की तृष्णा बढ़ी , विरह का ताप चढ़ा

जब सूरज चंदा की दो बाँहें अम्बर ने पाईं
और प्यासी धरती को आगोश मे भरने आई

तब पीत वर्ण की चुनरी ओढ़े वसुधा शरमाई
यह सुन्दर छवि वसुधा की नीलाम्बर मन भाई.