अभी तो सूरज दमक रहा है. दिन अलस जगा है.
चंदा के आने का इंतज़ार अभी से क्यों लगा है !
बस उसी चंदा के ख्यालों में मेरा मन रमा है
नभ की सुषमा देखने का अरमान जगा है !
कविता के सुन्दर शब्दो का रूप सजा है
अब ब्लॉगवाणी पर पद्य मेरा हीरे सा जड़ा है !
नील गगन के नील बदन पर
चन्द्र आभा आ छाई !
ऐसी आभा देख गगन की
तारावलि मुस्काई !
नभ ने ऐसी शोभा पाई
सागर-मन अति भाई !
कहाँ से नभ ने सुषमा पाई
सोच धरा ने ली अँगड़ाई !
रवि की सवारी दूर से आई
उसकी भी दृष्टि थी ललचाई!
घन-तन पर लाली आ छाई
घनघोर घटाएँ भी सकुचाईं !
नील गगन के नील बदन पर
रवि आभा घिर आई !
ऐसी आभा देख गगन की
कुसुमावलि भी मुस्काई !
नील गगन के नील बदन पर
चन्द्र आभा आ छाई !
Translate
छायावाद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
छायावाद लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सोमवार, 29 अक्टूबर 2007
गुरुवार, 18 अक्टूबर 2007
धरा गगन का मिलन असम्भव !
अम्बर की मीठी मुस्कान ने,
रोम रोम पुलकित कर दिया
उससे मिलने की चाह ने,
धरा को व्याकुल कर दिया .
मिलन असम्भव पीड़ा अति गहरी,
धरा गगन की नियति यही रहती
अंबर की आँखों से पीड़ा बरसती,
वसुधा अंबर के आँसू आँचल मे भरती
हरा आँचल लपेट सोई जब निशा के संग धरा
अम्बर निहारे रूप धरा का चन्दा के संग खड़ा
सूरज जैसा अम्बर का लाल हुआ रंग बड़ा
मिलन की तृष्णा बढ़ी , विरह का ताप चढ़ा
जब सूरज चंदा की दो बाँहें अम्बर ने पाईं
और प्यासी धरती को आगोश मे भरने आई
तब पीत वर्ण की चुनरी ओढ़े वसुधा शरमाई
यह सुन्दर छवि वसुधा की नीलाम्बर मन भाई.
रोम रोम पुलकित कर दिया
उससे मिलने की चाह ने,

धरा को व्याकुल कर दिया .
मिलन असम्भव पीड़ा अति गहरी,
धरा गगन की नियति यही रहती
अंबर की आँखों से पीड़ा बरसती,
वसुधा अंबर के आँसू आँचल मे भरती
हरा आँचल लपेट सोई जब निशा के संग धरा
अम्बर निहारे रूप धरा का चन्दा के संग खड़ा
सूरज जैसा अम्बर का लाल हुआ रंग बड़ा
मिलन की तृष्णा बढ़ी , विरह का ताप चढ़ा
जब सूरज चंदा की दो बाँहें अम्बर ने पाईं
और प्यासी धरती को आगोश मे भरने आई
तब पीत वर्ण की चुनरी ओढ़े वसुधा शरमाई
यह सुन्दर छवि वसुधा की नीलाम्बर मन भाई.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)