Translate

ऊँची चप्पल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ऊँची चप्पल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 6 जुलाई 2011

आज लाखों का नुक्सान हो जाता ग़र.....!

 मेरी नई चप्पल 

सच कहा गया है कि ईश्वर जो करता अच्छे के लिए ही करता है....हुआ यूँ कि कार की रजिस्ट्रेशन कराने के लिए एक कम्पनी से आए कर्मचारी को कार , पैसे और पेपर देने की जल्दी में बेटे के साथ हम अंडरग्राउंड पार्किंग  की तरफ जा रहे थे...पूरे साल का ज़ुर्माना लगभग 1,250 दरहम था....स्पीडिंग करने और  पार्किंग गलत करने या दस मिनट भी ऊपर हो जाने पर दुबारा टिकट न लगाने का हर्ज़ाना तो भरना ही था... रजिस्ट्रेशन की फीस भी देनी थी.....
पैसे कम पड़ गए थे इसलिए एटीएम मशीन से पैसे निकालने की जल्दी में ऊँची एड़ी की नई चप्पल पहन कर घर से निकले.......जाने क्या सोच कर ऊँची हील की चप्पल खरीद ली थी ...नए फैशन की नई चप्पल पहने हुए तेज़ गति से आगे बढ़ते जा रहे थे....एक पल के लिए भी नहीं लगा कि चप्पल कहीं धोखा दे जाएगी....दिखने में भी अच्छी और पहनने में भी सुविधाजनक.....पता नहीं क्यों हम ऊँचा होने की ललक नहीं छोड़ पाते.... पटक दिया उसने ज़मीन पर..... चप्पल ने ही सिखा दिया.....क्या ज़रूरत है ज़मीन से कुछ इंच भी ऊपर होने की...जहाँ हो, जैसे हो, वैसे ही रहो....!! 
जैसे हैं वैसे ही क्यों नहीं रह पाते, यह समझ आ जाए तो फिर कोई गिरता ही नहीं... गिर कर फिर उठने की कला से भी वंचित रहता......ख़ैर .दूसरों की नकल करने का अंजाम क्या होता है आज गिरने पर जाना...विद्वानों ने सही कहा है कि नकल करने में  भी अक्ल की ज़रूरत होती है.....मन ही मन ठान लिया कि हम जैसे हैं वैसे ही रहेंगे ...उसी रूप में जो स्वीकार ले वहीं अपना......... 
ज़मीन पर पड़े पड़े सोच रही थी कि अगर मैं वही पहले जैसी छरहरी , पतली सी टुथपिक जैसी होती तो लाखों का नुक्सान हो जाता.....गिरते ही झट से हड्डी टूट जाती ...क्या पता कंधे, कूल्हे या घुटने पर प्लास्टर चढ़वाना पड़ता.... अस्पताल का भारी खर्चा उठाना पड़ता..बिस्तर पर  पड़ जाते सो अलग......
मान भी लिया जाए कि पतले लोग सेहतमंद और मज़बूत होते हैं लेकिन धीरे धीरे पचास तक आते आते  हडियाँ तो  कमज़ोर  होने ही लगती हैं... उस पर अगर माँस मज्जा की कमी हो तो पूछो नहीं कितना पैसा डॉक्टरों की जेब में जाने को आतुर हो जाए......
अब हम खाते पीते घर के हैं....वैसे ही भरे पूरे परिवार के दिखने भी तो चाहिए...... लेकिन घरवालों की  रातों की नींद बेकार में ही ग़ायब हो जाती है....हमें देख देख कर दिन रात बस हमारी लम्बी उम्र की कामना करते हुए दिखते हैं...अब उन्हें कैसे समझाएँ कि हम जैसे सेहतमंद लोगों का दिल झट से चाबी की तरह शरीर से निकलता है और कार बन्द... :) होना भी यही चाहिए न.... सोते सोते ही निकल जाओ चुपके से... 
खैर इतनी लम्बी भूमिका के बाद असल कहानी पर आते हैं कि आज सुबह सुबह हम गिर गए...पैर फिसला नहीं (शुक्र है)अचानक से बायाँ पैर मुड़ गया... दाहिना पैर आगे निकल गया... अब दोनों पैरों को दिमाग क्या आदेश देता...वह भी कंफ्यूज़ हो गया..... हम धड़ाम से ज़मीन पर...... लेकिन गिरते ही  दिमाग ने दाएँ बाज़ू को संकेत दे दिया कि सहारा देकर गिरते हुए शरीर को सँभाल लेना .... बस दाईं बाज़ू के सहारे इतने ज़ोर से गिरे कि लगा जैसे भूचाल आ गया हो.... एक पल लेटे रहे...दो पल बैठे रहे.... इधर उधर देखने लगे कि कोई देख तो नहीं रहा....आज तक समझ नहीं आया कि गिरते हुए को देख कर लोग हँसते क्यों हैं.... मज़ा क्यों  लेते हैं जैसे वे तो कभी गिरते ही न हों....  
शुक्र  था कि अंडरग्राउंड पार्किंग में सिर्फ दो कर्मचारी काम कर रहे थे....दौड़े आए....फर्श पर लाल रंग के रोग़न की चमकती दो तीन बूँदें देख कर घबरा गए...बैठे बैठे ही हमने बड़ी सी मुस्कान बिखेरते हुए कहा...'आए एम एन इंडियन वुमैन' ...दोनो कर्मचारी यह सुनते ही मुस्कुराते हुए वापिस लौट गए..... भारतीय औरत ही क्यों पूरी दुनिया की औरत का इतिहास  किसी से छिपा नहीं........कभी कभी औरत लीची फल जैसी दिखती है...एक आवरण ओढ़े कोमल मन रसभरा फल जैसा.. जो अन्दर ही अन्दर सख़्त गुठली जैसे गज़ब का बल लिए रहती है... 
उसी पल अपनी कार की तरफ बढ़ता बेटा पीछे पलटा... उसे समझ नहीं आया कि क्या करे....भागता हुआ मुझे उठाने की कोशिश  करता उससे पहले ही हम आधे उठ चुके थे...(ऊपर के लिए नहीं...:) ) घुटनों के बल खड़े हुए तो बेटे ने हाथ देकर खड़ा कर दिया... वैसे वह न भी होता तो दो नहीं तो पाँच मिनट के बाद खुद ही खड़े हो जाते... वह तो सामने सुविधा देख कर हम कमज़ोर होने लगते हैं या दिखाने लगते हैं.... 
खैर खड़े हुए...चाहे हम  ज़िन्दगी का आधा सफ़र  पार कर चुके हैं फिर भी  इतना तो यकीन था कि हड्डियाँ ज़मीन से बहुत दूरी पर थी... उनके टूटने का तो सवाल ही नहीं था ...  बेटा परेशान देख रहा था... झट से कार की चाबी लेकर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया ..... काँपते हुए हम पेसेंजर सीट पर जा बैठे.....बार बार एक ही सवाल करता गया...  .. 'आप ठीक तो है..... हाथ हिलाइए...पैर हिला कर दिखाइए... ' अच्छी भली कसरत करवा निश्चिंत हुआ कि सब ठीक है लेकिन उसे समझ न आया कि शरीर अन्दर तक कैसे हिल गया.....
अब उसे समझाने के लिए उनके बचपन के दिनों के एक खिलौने की चर्चा करनी पड़ी.....पंचिंग टॉय जिसे पंच मार मार कर बच्चे  गिराते  लेकिन फिर से वह उठ खड़ा होता ...उसके तल में मिट्टी का बैग अगर टूट कर अन्दर ही बिखर जाए तो बेचारा एक पंच खाकर भी फिर उठ नहीं पाता...शरीर के अन्दर के दर्द के लिए दिए गए उदाहरण को सुन कर वह ज़ोर से हँसने लगा..... उसे देख मैं भी खिलखिला उठी....
पंच खाने के इंतज़ार में