Translate

शुक्रवार, 24 जून 2011

खिड़की के बाहर खड़े पेड़




खिड़की के बाहर खड़े पेड़
हमेशा मुझे लुभाते हैं....
उनकी जड़ें कितनी गहरी होगीं..
मानव सुलभ चाहत खोदने की ...
उनका तना कितना मज़बूत होगा ...
इच्छा होती छूकर उन्हें कुरेदने की ...
उनकी शाखाओं में कितना लचीलापन होगा...
पकड़ कर उन्हें झुका लूँ
या झूल जाऊँ उन संग
खिड़की के बाहर खड़े पेड़
हमेशा मुझे बुलाते हैं..
कभी सर्द कभी गर्म
हवाओं का रुख पाकर

अचानक शाख़ों में छिपे पंछी चहचहाते
जबरन ध्यान तोड़ देते हैं मेरा.....!!! 

13 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत सी चाहत ..

Manish Kumar ने कहा…

ऐसी ही फ़ितरत कभी कुछ इंसानों को देख कर उठती है दिल में..

rashmi ravija ने कहा…

ये तस्वीर तो हमें भी उतना ही लुभा रही है..:)
ख़ूबसूरत ख़याल...

Abhishek Ojha ने कहा…

कभी कभी मेरे दिल में...

Udan Tashtari ने कहा…

मुए ये पंछी.....बेवक्त कितना चहचहाते हैं!!! हूंह्ह!!!

डा० अमर कुमार ने कहा…

.श्श्श ! गौर से सुनिये,
पँछी आपको अपनी सीमाओं में रहने की सलाह दे रहे हैं ।

अजित वडनेरकर ने कहा…

बनी रहे ये मासूम सी चाहत...

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

शाम को जब लौटते हैं पंछी अपने नीड़ को तो कितना बतियाते हैं?

Patali-The-Village ने कहा…

बशुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

निर्मला कपिला ने कहा…

सुन्दर एहसास्!

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव समन्वय्।

डॉ .अनुराग ने कहा…

जिस दिन लुभाना छोड़ दे ..समझ जाए कुछ गड़बड़ है ....

Asha Joglekar ने कहा…

यह प्रकृती ही है जो नित नये रूप से हमें लुभाती है ।