खिड़की के बाहर खड़े पेड़
हमेशा मुझे लुभाते हैं....
उनकी जड़ें कितनी गहरी होगीं..
मानव सुलभ चाहत खोदने की ...
उनका तना कितना मज़बूत होगा ...
इच्छा होती छूकर उन्हें कुरेदने की ...
उनकी शाखाओं में कितना लचीलापन होगा...
पकड़ कर उन्हें झुका लूँ
या झूल जाऊँ उन संग
खिड़की के बाहर खड़े पेड़
हमेशा मुझे बुलाते हैं..
कभी सर्द कभी गर्म
हवाओं का रुख पाकर
अचानक शाख़ों में छिपे पंछी चहचहाते
जबरन ध्यान तोड़ देते हैं मेरा.....!!!
13 टिप्पणियां:
खूबसूरत सी चाहत ..
ऐसी ही फ़ितरत कभी कुछ इंसानों को देख कर उठती है दिल में..
ये तस्वीर तो हमें भी उतना ही लुभा रही है..:)
ख़ूबसूरत ख़याल...
कभी कभी मेरे दिल में...
मुए ये पंछी.....बेवक्त कितना चहचहाते हैं!!! हूंह्ह!!!
.श्श्श ! गौर से सुनिये,
पँछी आपको अपनी सीमाओं में रहने की सलाह दे रहे हैं ।
बनी रहे ये मासूम सी चाहत...
शाम को जब लौटते हैं पंछी अपने नीड़ को तो कितना बतियाते हैं?
बशुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
सुन्दर एहसास्!
बहुत सुन्दर भाव समन्वय्।
जिस दिन लुभाना छोड़ दे ..समझ जाए कुछ गड़बड़ है ....
यह प्रकृती ही है जो नित नये रूप से हमें लुभाती है ।
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