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शनिवार, 9 अप्रैल 2011

अपने को बदलो....बदलाव नया इक आएगा....

अन्नाजी अनशन पर बैठे सपना सुन्दर लेकर

इक दिन ऐसा आएगा जब होगा भष्ट्राचार खत्म ....

होगा लोकपाल बिल पास, बंद होगा बेईमानी का खेल

भ्रष्टाचारी नेता जाएँग़ें जेल, जनता में जागी इक आस......


टीवी के हर चैनल में खबर यही थी...

अखबारों में भी चर्चा इसकी थी......

बेटा टीवी देख रहा था, सोच में अपनी डूब रहा था...

पापा से बोला.....

बिजली पानी का मीटर डायरेक्ट लगा है....

गेट हमारा सरकारी सड़क पर बना है....

हाउसटैक्स क्या भरा हुआ है...इंकम टैक्स .....

बात काट के पापा चिल्लाए......

चुप कर.....तू तो बच्चा है .... अक्ल का कच्चा है...

तू क्या जाने , समझेगा कैसे.....

दसवीं में पढ़ता हूँ , कुछ कुछ समझ रहा हूँ

सहमा सहमा सा बेटा समझ न पाया

पापा क्यों चिल्लाए...


मुझसे बोला, माँ सीख हमेशा देतीं तुम कहती हो

अपने को बदलो....बदलाव नया इक आएगा....


बदलेगा सब कुछ बाहर भी........



अनशन पर बैठे अन्नाजी क्या सब कुछ बदल सकेंगे.....

अनशन खत्म हुआ तो भी क्या कुछ बदलेगा..... !!!!!


सोच रही हूँ बस...... बस सोच रही हूँ ........ !

8 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Kya saraltase aapne apni baat kahee hai! Mai sahmat hun...sare bhrashtacharee hamare isee samaaj kee to den hain,jisme ham rahte hain!

Udan Tashtari ने कहा…

सार्थक रचना...

सबको अपने हिस्से का बदलना होगा...

Amit Chandra ने कहा…

ये बात सही है कि हम बदलेगें तो जग बदलेगा। पर हम बदलने के लिए तैयार ही नही होते। क्योंकि हमे दूसरो की गलतियॉ तो नजर आती है पर अपनी नहीं। सार्थक रचना। आभार।

Shah Nawaz ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन तरीके से सही मुद्दे की और ध्यान दिलाया है आपने... भर्ष्टाचार हमारे अन्दर से ही शुरू होता है, और जब तक आम जनता खुद इससे पीछा नहीं छुटाएगी, तब तक यह ज़हरीले सांप की तरह डसता ही रहेगा.... हम चाहते हैं कि दुसरे ठीक हो जाएं और हम वैसे के वैसे ही रहें.... दुसरे संघर्ष करें, भूख हड़ताल करें और हम बस दो शब्दों से उनकी वाहवाही करके इतिश्री पा लें.... इससे कुछ नहीं होने वाला... बल्कि बदलाव हमारे खुद को बदलने के प्रयास से ही आएगा...

अन्ना ने शुरुआत की है, यह हर एक के लिए अपने अन्दर के बदलाव का एक बेहतरीन समय है... उम्मीद है यह शब्दों से आगे बढ़कर यह बात दूर तलक जाएगी...

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सही है. केवल बिल से कुछ नहीं होगा, हर हिन्दुस्तानी को अपना दिल भी बदलना होगा. सुन्दर-सार्थक कविता.

rashmi ravija ने कहा…

बहुत बढ़िया तरीके से आपने बात सामने रखी है...
कितने ही बिल पास हो जाएँ....जबतक खुद को अंदर से नहीं बदलेंगे...कुछ भी नहीं बदलेगा...
पर इस आन्दोलन ने इस पर सोचने के लिए विवश तो किया.

Manish Kumar ने कहा…

भ्रष्टाचार की आधी लड़ाई तो हम अपने को सही कर जीत सकते हैं। बिल्कुल सही कहा आपने इस कविता के माध्यम से..

Unknown ने कहा…

sahjta or sateekta....kya baat hai !!! lakin mitra sochne se kuch nhi hoga ...kuch to karna hoga...kuch to badna hoga khud ko badlna hoga ...
Jai HO Mangalmay HO