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शनिवार, 19 जनवरी 2008

जब भी हमें शायर पुकारा जाता !

कभी कभी पुरानी यादें दौड़ती चली आती हैं और गले लग जाती हैं जिनसे मिलकर हम मस्ती में डूब कर उनके संग खेलने लगते हैं. हिन्दी के बुज़ुर्ग अध्यापक सिद्दिकी साहब जो अब रिटायर होकर भारत लौट चुके हैं कभी अपने हिन्दी ज्ञान से और कभी शायरी से मालामाल कर देते. उनकी शायरी को पचाने का मादा किसी किसी में ही होता. उनके चाहने वालों में अव्वल नम्बर पर आते थे हमारे प्रिंसिपल साहब जो स्कूल के लगभग हर जश्न का आग़ाज़ उनकी शायरी से करवाते. प्रिंसिपल साहब से अपनी तारीफ़ सुनकर उनके चेहरे की रौनक देखने वाली होती थी. उन्हीं दिनों की एक रचना आज अचानक याद आ गई.

जब भी हमें शायर कहकर पुकारा जाता
दिल हमारा बाग़-बाग़ हो जाया करता !

तन से पहले मन मंच पर पहुँच जाया करता
शायरी करने को जी मचल मचल जाया करता !

लेकिन ------------

नाम हमारा सुनते ही श्रोताओं पर गिरते कई बम
उनका रुख देखते ही हमारा भी निकल जाता दम !

हिम्मत कर फिर भी बढ़ाते कदम
सीधा पहुँचते मंच पर हम !
एक ही साँस में पढ़ जाते लाइनें दस
फिर लेते थोड़ा हम दम !

कुछ श्रोताओं का होता सब्र कम
शोर कुछ श्रोताओं का जाता बढ़ !

कुछ श्रोताओं की बेरुखी सहते हम
कुछ श्रोताओं की मुस्कान भी पाते हम !

फिर भी मैदान में डटे सिपाही से हम
पीछे न हटते, हार न मानते हम !

सब्र से बैठे हुए लोगों पर
अपनी शायरी का सिक्का जमाते हम

7 टिप्‍पणियां:

Sanjay Karere ने कहा…

एक एक शेर लगा एटमी बम
पर दम लगा के पढ़ गए हम.

सुनिए अब हमारे भी दो बोल,
नायाब शायरी पढ़ाने का शुक्रिया.
सबके सामने खोली हमारी पोल,
यह आपने बहुत बुरा किया.

Pankaj Oudhia ने कहा…

हम्म्ममम पक्के शायर के यही लक्ष्ण है।


(आपकी यात्रा शुभ हो।)

Dr Parveen Chopra ने कहा…

एक सीधी सादी हल्की फुल्की हर बंदे की समझ में आ जाने वाली कविता......आभार।

Prabhakar Pandey ने कहा…

सहज और गंभीर रचना। साधुवाद।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

क्या बात है!!
पसंद आया!

अजय कुमार झा ने कहा…

meenakshi jee,
saadar abvivaadan. aaj shaayaree bhee padhwaa dee shukriyaa. waise apke liye to shaayad itna hee kaafi hai

kaatil hai,
kalam unki,
hum roz marte hain.

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

):