चंदा का सितारों से जड़ा प्रकाशित आँचल जब छाया धरती पर
सुषमानुभूति से मदमस्त हुआ फिर नशा सा छाया सागर पर !
लहरें बाँहें फैलाए उचक उचक कर चढ़ गईं चट्टानों के कंधों पर
नज़र थी उनकी शोभामय आकाश के जगमग करते तारों पर !
जलधि के उर पर देखके तारों का प्रतिबिम्ब लहरें चहक रहीं थीं
चंदा की चंचल किरणें लहरों के संग खेल-खेल में बहक रहीं थीं !
छू लेने की, आँखों में सुषमा भरने की चाहत सी उनमें जाग गई थी
छवि सुन्दर विस्तृत नभ की, मनमोहती मानस-पट पर छा सी गई थी !
गर्वित गगन से आती-जाती शीत-पवन सी साँसें मुझको छू सी रही थीं
महकी-महकी साँसों से दिशाएँ बहकीं, मैं भी उन संग बहक सी रही थी !
15 टिप्पणियां:
सारे शब्द चुनकर रखने का मन करता है. मै तो इतने सालो मे हिन्दी भूल सी गयी हू. शायद ब्लोग से वापस पा सकू.
this is simply marvolous,main bhi ab behek rahi hun ise padhne ke baad.beautiful.
beautiful.
मीनाक्षी जी,बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
बसंत पूर्व ही बसंत खिलने लगा……।
थामिए थामिए अपने को, बहकना ठीक नही जी :)
सुंदर!!!
गर्वित गगन से आती-जाती शीत-पवन सी साँसें मुझको छू सी रही थीं
महकी-महकी साँसों से दिशाएँ बहकीं, मैं भी उन संग बहक सी रही थी !
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने ..दिल मैं उतर गई यह कविता ..
छू लेने की, आँखों में सुषमा भरने की चाहत सी उनमें जाग गई थी
Bahut sundar bhavpurn panktiyan. Waah.
Neeraj
आप सब का धन्यवाद. प्रकृति के संग बैठकर ऐसे ही हम बहक जाते है और शायद आप सब भी...
मीनाक्षी दी लगता है शब्दकोश के खूबसूरत शब्द आप बटोर लाई हैं...बहुत सुन्दर भावप्रद रचना है...
शब्द कितना अनमोल है , इस रचना को पढ़कर सहज अनुमान लगाया जा सकता है , बहुत सुंदर रचना , बधाईयाँ !
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासुती
देर से आने की माफी - समुद्र और रात्रि की जुगलबंदी पर "स्टिल लाईफ" - बहुत बढ़िया - अलंकृत - सादर - मनीष
Beautiful selection of words see & stars of sky in your poet.
Sanjay Rajpoot, Jaipur
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
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