आवाज़ सृष्टि का अनमोल वरदान है
आवाज़ से ही सम्पूर्ण जगत में प्राण हैं
आवाज़ में तेरी आन और शान है
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
धूप में लहराती गेहूँ की बालियों सी
सोने की चमक और पैनापन लिए सी
ज़मीन पर पड़ी गुड़ की डली ढली सी
मीठी बहुत कोमल मिठास लिए सी
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
चूड़ी की नहीं खनक, है सोने के कंगन की धमक
बिछुओं की नहीं आवाज़, है पायल की सुरीली छनक
डफली का नहीं राग, है ढोलक की ढमक ढम-ढम
साँसों की तेरी सरगम पर वीणा के तार बजें पल पल
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
भीनी-भीनी बसंती हवा से महकते सुर तेरे
शीत-ऋतु की पवन जैसे थरथराते सुर तेरे
ग्रीष्म-ऋतु से गर्मी पाकर तापित सुर तेरे
पतझर के सूखे पत्तों से झरते कभी सुर तेरे
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
तेरी आवाज़ में सूरज की तपिश है
चंदा की आब है और शीतलता भी है
तेरी आवाज़ में तारों की मद्धिम आभा है
ओस में भीगी हरी दूब की कोमलता भी है
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
वर्षा की रिम-झिम बूंदों सा इक-इक अक्षर तेरा
पहाड़ी झरने सा झर-झर करता स्वर तेरा
चंचल नदी की नटखट धारा सा सुर तेरा
भेद भरे गहरे सागर का गांभीर्य लिए हर शब्द तेरा
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
आवाज़ सृष्टि का अनमोल वरदान है
आवाज़ से ही सम्पूर्ण जगत में प्राण हैं
आवाज़ में तेरी आन और शान है
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
रियाद में आयोजित मुशायरे में श्री बशीर बदर और श्री मंज़र भोपाली जी के साथ कविता-पाठ करने का सौभाग्य मिला तो 'आवाज़' कविता पढ़ी , उनके द्वारा सराहे जाने पर बाल-सुलभ खुशी से आज भी मन झूम उठता है।
आवाज़ से ही सम्पूर्ण जगत में प्राण हैं
आवाज़ में तेरी आन और शान है
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
धूप में लहराती गेहूँ की बालियों सी
सोने की चमक और पैनापन लिए सी
ज़मीन पर पड़ी गुड़ की डली ढली सी
मीठी बहुत कोमल मिठास लिए सी
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
चूड़ी की नहीं खनक, है सोने के कंगन की धमक
बिछुओं की नहीं आवाज़, है पायल की सुरीली छनक
डफली का नहीं राग, है ढोलक की ढमक ढम-ढम
साँसों की तेरी सरगम पर वीणा के तार बजें पल पल
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
भीनी-भीनी बसंती हवा से महकते सुर तेरे
शीत-ऋतु की पवन जैसे थरथराते सुर तेरे
ग्रीष्म-ऋतु से गर्मी पाकर तापित सुर तेरे
पतझर के सूखे पत्तों से झरते कभी सुर तेरे
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
तेरी आवाज़ में सूरज की तपिश है
चंदा की आब है और शीतलता भी है
तेरी आवाज़ में तारों की मद्धिम आभा है
ओस में भीगी हरी दूब की कोमलता भी है
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
वर्षा की रिम-झिम बूंदों सा इक-इक अक्षर तेरा
पहाड़ी झरने सा झर-झर करता स्वर तेरा
चंचल नदी की नटखट धारा सा सुर तेरा
भेद भरे गहरे सागर का गांभीर्य लिए हर शब्द तेरा
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
आवाज़ सृष्टि का अनमोल वरदान है
आवाज़ से ही सम्पूर्ण जगत में प्राण हैं
आवाज़ में तेरी आन और शान है
आवाज़ से ही तेरी पहचान है !
रियाद में आयोजित मुशायरे में श्री बशीर बदर और श्री मंज़र भोपाली जी के साथ कविता-पाठ करने का सौभाग्य मिला तो 'आवाज़' कविता पढ़ी , उनके द्वारा सराहे जाने पर बाल-सुलभ खुशी से आज भी मन झूम उठता है।
7 टिप्पणियां:
आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा.
ऎसेही लिखेते रहिये.
क्यों न आप अपना ब्लोग ब्लोगअड्डा में शामिल कर के अपने विचार ऒंर लोगों तक पहुंचाते.
जो हमे अच्छा लगे.
वो सबको पता चले.
ऎसा छोटासा प्रयास है.
हमारे इस प्रयास में.
आप भी शामिल हो जाइयॆ.
एक बार ब्लोग अड्डा में आके देखिये.
शब्दों के मनकों को बहुत खूबसूरती से पिरो कर तैयार की है आपने यह रचना... बधाई
बहुत सुन्दर, बधाई.
Thanks for yr comment on Bunokahani. I could not write to you as your email is not provided anywhere. Please send me an email at debashish at gmail dot com.
बहुत सुंदर!!
आपने तो आवाज़ की इतनी बढ़िया व्याख्याएं ही कर दी!!
वाकई बहुत खूब!!
आपने तो आवाज़ की इतनी गहरी पडताल कर रखी है. रश्क होता है.
अब तो मेरी भी ख़वाहिश हो गई कि काश इतनी विविधता भरी आवाज़ अपनी भी हो।
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