मैंने उसे देखा , मुझसे रहा न गया .......
मैं आगे बढ़ी और उसे बाँहों में भर लिया......
मैं उसे ही नहीं उसके दर्द को भी अपनी बाँहों में जकड़ रही थी........
धीरे धीरे उसका दर्द मेरे अन्दर उतरता जा रहा था ......
मेरी नस नस में पिघलता लावा सा....
मैं जड़ हो चुकी हूँ उसके दर्द से ........
लेकिन वह अभी भी दर्द में डूबा है....
दर्द ने उसके पूरे शरीर को अपने आग़ोश में ले रखा है....
मेरी बाँहों के घेरे से खुद को आज़ाद करता है....
पूरी तरह से दर्द की गिरफ़्त में है.......
उसे दानव सा दर्द भी अपना सा लगता है.....
मैं चकित सी देखती रह जाती हूँ ......
दर्द से उसका अद्भुत रिश्ता !
10 टिप्पणियां:
आप ने उस कहावत का अपवाद प्रस्तुत कर दिया कि दर्द बाँटने से कम हो जाता है।
और यह कटु यथार्थ है।
Wah! Kayee baar dard baantne se kam nahee hota!
किसी के दर्द को कौन समझा हैं
किसी के दर्द को कौन बाँट सका हैं
फिर नाल से जुडा हैं जो
दर्द उसका सालता ही हैं
कहीं कहीं दर्द ही नाल बन जाता हैं
और अटूट रिश्ते मे बाँध जाता हैं
मीनू कविता बढ़िया हैं , भाव उससे भी बढ़िया बस एक कमी हैं दर्द कुछ ज्यादा हैं
अपनों के दर्द को अहसासा है...सुन्दर कविता...
दर्द का रिश्ता बहुत ही गहरा होता है
दर्द का रिश्ता बहुत ही गहरा होता है
अच्छा लिखा!
:( :( :(
सार्थक और भावप्रवण रचना।
दर्द का रिश्ता ही घनिष्ट रिश्ता होता है -सार्थक रचना।
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