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बुधवार, 20 अप्रैल 2011
मंगलवार, 19 अप्रैल 2011
‘सॉरी’ कहने में सच्चाई दिख रही थी.
‘मैम,,,आपने पलट के जवाब नहीं दिया...क्यों?’ पोस्ट को लिखने का कोई न कोई कारण रहा होगा...उस पर ज़िक्र की ज़रूरत नहीं है...... बहरहाल इस पोस्ट पर आई टिप्पणियों को पढकर लगा कि उस घटना से जुड़ी दो और घटनाओं का ज़िक्र भी करना चाहिए.....वैसे भी आजकल रियाद में पुरानी यादों ने पूरी तरह से घेर रखा है.... पीछा ही नहीं छोड़तीं....
चार छात्र जो हिन्दी पढने के लिए बैठे थे...उनमें से एक छात्र को तीन दिन पहले एक अंग्रेज़ी अध्यापक के साथ बुरा बर्ताव करने पर बहुत बुरी तरह से डाँटा गया था.... उसके बाद भी उसने उन अध्यापक से सॉरी नहीं कहा था,,,,सभी बच्चों के मुताबिक टीचर की गलती थी......
हुआ यह था कि कोर्स पूरा कराने के लिए उन्होंने चार पीरियड एक साथ पढ़ाने की सोची....पढ़ाने के बाद जब वे दूसरी क्लास में पहुँचे तो वहाँ पिछली क्लास के एक छात्र को देख कर भड़क गए कि कैसे इसने बंक किया....बस आव देखा न ताव कॉलर पकड़ कर क्लास से बाहर ले आए और.... “हाऊ डेयर यू.... यू ब्ल.....बा.....तुम लोगों के लिए सिर खपाओ और तुम ऐश करो” कह कर उसे लगा दिए दो तमाचे.....गुस्से में और मारते उससे पहले ही लड़के ने हाथ पकड़ लिया....बस फिर क्या था..... तहलका मच गया.....
तब्बू टीचर का भी रवैया कुछ ऐसा ही रहता है.... बच्चे अपमानित महसूस करते हैं और गुस्से में कुछ का कुछ कर बैठते हैं......
“कोई भी टीचर क्लास के अन्दर दाखिल हों तो खड़े होकर विश करना ज़रूरी है...हर रोज़ कहती हूँ फिर भी कान पर जूँ नहीं रेंगती........अपने सहकर्मी के लिए बुरा भला सुनकर कहना चाहती थी....’माइंड योर ऑन बिज़नेस’ ... उस वक्त अगर कुछ भी कहती तो बच्चों के भन्नाए दिमाग पर कोई असर नहीं होता सो चुप्पी लगाना सही समझा था .......
बच्चों को काम देकर मैं स्टाफरूम चली गई थी... एक घंटे बाद जब वापिस आई तो सभी लड़के एक साथ बोल उठे..... “सॉरी मैम.... वी आर रीयली सॉरी... आपसे हमें ऐसे नहीं बोलना चाहिए था....”
मुझे उनके ‘सॉरी’ कहने में सच्चाई दिख रही थी.... जानती हूँ आजकल के बच्चे हमारी हरकतों की ज़रूरत से ज़्यादा स्क्रूटनी करते हैं....उन्हें सब समझ आता है....यह अलग बात है कि जो उन्हें भाता नहीं या जिसका लॉजिक समझ नहीं आता उसे नज़रअन्दाज़ कर देते हैं....
उनमें से एक चुपचाप नज़रें नीची किए खड़ा रहा...उसके पास पहुँची.....’क्या हुआ शोहेब... समथिंग इज़ बॉदरिंग यू? प्लीज़ शेयर विद मी...’ पूछने पर धीरे से बोला....’मैम... डू यू थिंक आई शुड गो टू इंग्लिश टीचर एंड से सॉरी...?’
सुनकर मुझे जितनी खुशी हुई ...उसकी कोई इंतहा नहीं थी....
रविवार, 17 अप्रैल 2011
मैम.. आपने पलट के जवाब नहीं दिया...क्यों ?
’बस भी करो, जल्दी आओ स्टाफरूम में...सारा साल पढे नहीं तो अब क्या तीर मार लेंगे....’ आदत से मजबूर तब्बू ऊँची आवाज़ में बोलती हुई इधर ही आ रही थी...
मैं मुस्करा रही थी लेकिन लड़कों के चेहरों के बदलते रंग भी देख रही थी...राघव कुछ कहते कहते चुप रह गया.... चारों छात्र सिर झुकाए अपनी अपनी किताबों पर नज़र गड़ाए चुप बैठे रहे....
दसवीं के क्लास रूम में तब्बू दाखिल हुई, मेरे साथ ही सीनियर सेक्शन को सोशल पढ़ाती थी....हम दोनों एक ही स्टाफरूम में बैठते थे.. उसे अनदेखा करके बच्चों के सिर नीचे ही झुके रहे...
एक टीचर को विश न करना अच्छा तो नहीं लगा लेकिन उस वक्त डाँटना भी सही नहीं लगा सो चुप लगा गई....
उधर तब्बू बोले जा रही थी.....’इन पर मेहनत करके कुछ नहीं मिलेगा...इन्हें तो बस टीचर को बिज़ी करने का बहाना चाहिए.....और पैरेंटस को बेवकूफ बनाने का....तुम्हें बड़ा शौक है अपना वक्त इन पर बरबाद करने का’
‘तुम चलो....मैं अभी आती हूँ बस दस मिनट और’ मुस्कुराते हुए हल्की आवाज़ में कहा.....
‘टेबल लग चुका है.... सब तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे हैं, जल्दी आओ’ कह कर वह निकल गई....
तब्बू के बाहर निकलते ही शोहेब से रहा नहीं गया..... ‘वाय मैम...वाय... होऊ कैन यू बीयर हर?’
(विदेशों के बाकि स्कूलों का तो पता नहीं लेकिन यहाँ के स्कूलों में टीचर और स्टूडैंट्स में बहुत अपनापन होता है. टीचर, अभिवावक और दोस्त सभी उन्हें एक ही टीचर में चाहिए..... वन इन वन इंट्रैक्शन - जिससे वह उन सभी अभावों को भूल पाएँ जो अपने देश में आराम से पा सकते हैं.)
राघव भी बोल उठा...’ मैम... तब्बू टीचर आपको इतना कुछ कह गईं और आपने पलट के जवाब नहीं दिया...क्यों’
चुप रहने वाला जमाल भी बोल उठा... ‘कम से कम हमारे लिए ही बोलना था.....दसवीं बोर्ड के एग्ज़ाम्ज़ में तो सभी टीचर हैल्प करते हैं.’
राघव बड़े दार्शनिक अन्दाज़ में बोला....’मैम, यू शुड लर्न हाऊ टू से ‘नो’’ सच कह रहा हूँ ....आप कभी किसी भी स्टूडैंट को ‘ना’ नहीं बोलतीं...’
’हाँ मैम...आज अगर स्टाफ पार्टी थी तो मना कर देतीं....’ अमित बोला.
राघव ‘सॉरी मैम’ कह कर उठ गया....उसी के साथ ही बाकि तीन बच्चे भी सॉरी कहते हुए उठ खड़े हुए...
अच्छी तरह से जानती थी कि तब्बू कभी किसी स्टूडैंट को एक्स्ट्रा नहीं पढ़ाती और न ही नोटस बनाने या चैक करने में मदद करती...बिन्दास वह शुरु से ही थी....बिना सोचे समझे किसी के लिए भी कभी भी कुछ भी कह देती.... कुछ लोग बहस करने से रोक नहीं पाते लेकिन कुछ चुप लगाना सही समझते ..... खासकर मुझे तो समझ नहीं आता कि रिऐक्ट किया कैसे किया जाए....!
मन ही मन गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन जाने क्यों उस वक्त मैं कुछ बोल न पाई....कभी कभी अपने आप पर ही मन खीजता है कि एक दम पलट कर वैसी ही तीखी प्रतिक्रिया क्यों नहीं कर पाती...
लेकिन जो अपने आप को कंट्रोल नही कर पाते और बात को तूल दे देते हैं... उन्हें इच्छा होती है कि काश वे अपने आप को काबू में कर पाएं.....
दरअसल दोनों तरह के रिएक्शन ही गलत हैं....सही वक्त पर सही जवाब देना और नज़ाकत समझ कर चुप रहना....दोनों तरह का संतुलन बनाना ज़रूरी होता है.....
बच्चों के साथ दोस्ताना बर्ताव मुझे उनकी दुनिया में घूमने की इजाज़त दे देता है.... सरल मन के बच्चे सहज भाव से दोस्ती कर लेते हैं और अपने मन के अंजाने कोनों को भी दिखाने में झिझकते नहीं... खेल खेल में बहुत कुछ सीखना सिखाना हो जाता है....बस यही कारण है कि सख्ती से पेश आने की बात कभी सोची ही नहीं....
जाने अनजाने यही आदत धीरे धीरे व्यक्तित्त्व का हिस्सा बन गई शायद !
शनिवार, 16 अप्रैल 2011
शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011
गुरुवार, 14 अप्रैल 2011
मंगलवार, 12 अप्रैल 2011
मेरे त्रिपदम (हाइकु)
क्षमा चाहिए
त्वरित वेग था वो
बाँध लिया है
होती गलती
सुधार भी संभव
आधार यही
नित नवीन
सोच के फूल खिलें
महकें बस
त्वरित वेग था वो
बाँध लिया है
होती गलती
सुधार भी संभव
आधार यही
नित नवीन
सोच के फूल खिलें
महकें बस
दम घुटता
तोड़ दे पिंजरे को
मन विकलकल न पड़े
मन-पंछी आकुल
उड़ना चाहे
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