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शनिवार, 30 मई 2009

रियाद की शान -- बुलन्द ईमारतें


खाड़ी के देशों में साउदी अरब सबसे अलग अपने ही कानूनों के साथ चलने वाला देश है. मक्का-मदीना जैसे पवित्र तीर्थ स्थान वाले इस देश में दुनिया भर से हज करने के लिए लोग आते हैं...यहाँ पर्यटन के लिए वीज़ा की कोई गुंजाइश नहीं है.. हज और उमरा के अलावा लोग यहाँ सिर्फ नौकरी के लिए आते हैं...आसानी से वीज़ा न मिलने के कारण इस देश के बारे में जानने की जिज्ञासा लोगों मे बनी रहती है....

होटल की खिड़की से फैसलिया टॉवर और किंग़डम सेंटर दिखा तो सोचा कि आज इन बुलन्द ईमारतों की ही चर्चा की जाए.. यू.के. बेस्ड आर्चिटेक्ट फॉस्टर एंड पार्टंनर्ज़ द्वारा डिज़ाईन किया गया फैसलिया टॉवर रियाद की शान माना जाता है.. साउदी अरब की राजधानी रियाद के बीचों बीच बना यह टॉवर व्यापार का केन्द्र तो है ही इसमें शॉपिंग मॉल भी है जिसमें दुनिया भारत के मशहूर ब्रैंडज़ देखने को मिलते हैं...

दूर से यह ईमारत एक बॉलपॉएंट पेन की तरह दिखता है...जिसके चार मज़बूत बीम सबसे ऊपर पहुँच कर एक गोल्डन टिप से जुड़े दिखते हैं... एक गोल्डन टिप एक बॉल है..या कहिए कि एक ग्लोब है जो एक रिवोलविंग रेस्टोरेंट है....जिसमें बैठकर पूरे रियाद की खूबसूरती देखी जा सकती है...वहीं से रियाद की दूसरी खूबसूरत ईमारत किंगडम सेंटर दिखाई देता है....
किंग़डम सेंटर को बुर्ज अल ममलका भी कहा जाता है... 311 मीटर ऊँची ईमारत दुनिया की 45वीं ऊँची ईमारत है जिसे बेस्ट स्काईस्क्रेपर का एवार्ड भी मिला है... 99 फ्लोर्ज़ में 4 बेसमेंट भी हैं...व्यापार के इस केन्द्र में भी खूबसूरत शॉपिंग मॉल है..सबसे ऊपर 100 मीटर लम्बा डैक है, जहाँ से खड़े होकर पूरे रियाद को देखा जा सकता है... एक और खास बात है इस टॉवर में.... इसकी दूसरी मज़िल को लेडीज़ किंगडम कहा जाता है, जहाँ पुरुष दाखिल नहीं हो सकते...अल ममलका शॉपिंग मॉल और सिर्फ और सिर्फ औरतों के लिए है... जहाँ जाने माने 40 स्टोर्ज़ है ...लगभग 160 शोरूम्ज़ हैं जो औरतों द्वारा ही मैनेज किए जाते हैं... साम्बा बैंक की लेडीज़ ब्रांच ...लेडीज़ मॉस्क...रेस्टोरेंट ...कुल मिला कर औरतों से जुडी हर ज़रूरत को पूरा करता हुआ फ्लोर एक अलग ही मस्ती का माहौल दिखाता है....

शुक्रवार, 29 मई 2009

रेगिस्तान का रेतीला आँचल



धरती माँ के बेलबूटेदार हरयाले आँचल की अपनी ही सुन्दरता है....खुश्बूदार रंगबिरंगे महकते फूल, तने खड़े छायादार पेड़, आँखों को सुकून देती हरी भरी नर्म दूब धरती के आँचल की निराली छटा है....

अरब पहुँचते पहुँचते धरती के आँचल के रूप रंग दोनो ही बदल जाते हैं.. कहीं लाल तो कहीं सफेद कहीं भूरा सा रेतीला रूप मन को लुभाने लगता है....
दूर तक लम्बी काली सड़क बलखाती चोटी सी लगती है... उस पर लहराती रेत सा दुपट्टा सरक सरक जाता.... जिसे इंसान अपने मशीनी हाथ से एक तरफ सरका देता ....

निगाहें क्षितिज के उस छोर तक जाना चाहती हैं जहाँ आसमान रेगिस्तान की गहराई में डूबता दिखाई
देता है...उसी डूबते आसमान से सूरज कूद कर बाहर निकल आता है....

बिजली की तारों पर नट जैसे करतब दिखाता चलने लगता.... उधर रेत की नटखट लहरें चक्रवात्त सी हलचल करके सूरज को गिराने की भरपूर कोशिश करतीं.... तो कहीं रेत अपनी झोली फैला कर लपकने को तैयार दिखती.....
दौड़ता कूदता थका सूरज कब उस झोली में आ दुबकता ,,,पता ही नहीं चलता...उसी पल दिशाएँ भी शांत सी हो जाती,,, हवा भी थम जाती जैसे रुक रुक कर धीमे धीमे साँस ले रही हो... हम भी अपने सफ़र के खत्म होने और मज़िल तक पहुँचने का इंतज़ार करते करते निढाल से हो जाते लेकिन सहरा में संगीत के मधुर सुर एक नई उर्जा शक्ति देने लगे....!!

गुरुवार, 21 मई 2009

किसके दिल में है क्या किसे पता

उड़न तश्तरी की आज की पोस्ट ने इस गीत की याद दिला दी .....यह गीत सुन रहे है जो समीरजी की आज की पोस्ट पर सही लगा.....आप भी सुनिए लेकिन वहाँ से लौटते हुए ..... अबूझमाड़! --- मात्र यह टिप्पणी किस ब्लॉगर का हो सकती है....यह भी बताइए.....




देखो जो गौर से

चेहरे के पीछे भी – 2 चेहरा है
सोचो जो गौर से
पर्दे के पीछे भी – 2 पर्दा है
गहरा गहरा राज़ गहरा बड़ा
किसके दिल में है क्या किसे पता – 2
0000000......


देखो जो गौर से
चेहरे के पीछे भी – 2 चेहरा है
सोचो जो गौर से
पर्दे के पीछे भी – 2 पर्दा है
गहरा गहरा राज़ गहरा बड़ा
किसके दिल में है क्या किसे पता – 2
000000.......


डूबा कोई सोच में, कोई धन दौलत से यहाँ मगरूर है
कोई फसाँ चाल में, कोई तो शोहरत से यहाँ मश्हूर है
जुदा सबकी मज़िले, जुदा सबकी राहें
जुदा सबकी चाहतें जुदा
गहरा गहरा राज़ गहरा बड़ा
किसके दिल में है क्या किसे पता – 2
0000000.....


टूटा नशा प्यार का, झिलमिल शमाँ जो जल रही बेनूर है
झूठा यकीन यार का, लोगों ज़माने का यही दस्तूर है
ज़रा सी है बेअसर दिलों की आहें, वफा में भी तो है ज़फा
गहरा गहरा राज़ गहरा बड़ा
किसके दिल में है क्या किसे पता – 2

बच्चों का दुस्साहस या उत्सुकता

हर उम्र में बच्चे कुछ न कुछ नया जानना चाहते हैं...ज्यों ज्यों बच्चे बड़े होते है...उनकी उत्सुकता भी बढ़ती जाती है...किशोरावस्था में तो दुस्साहसी हो जाते हैं.... डर तो जैसे जानते ही नही........ इस उम्र में जोश तो होता है लेकिन होश खो बैठते हैं।
विद्युत के बचपन का दोस्त अदनान कनाडा से रियाद जाते वक्त दुबई दस दिन हमारे पास ठहरा... द्स दिन में दस कहानियाँ ....हर दिन की एक नई दास्तान...

दुबई शहर से दूर रेगिस्तान में बाबलशाम नाम का एक रिसोर्ट है जहाँ दोनो बच्चे अपने दोस्तों के साथ गए....कुछ देर बाद वहाँ से और आगे रेगिस्तान में ज़हरीले साँपों को देखने निकल गए...अंधेरी रात...लेकिन साँपों को देखने की चाहत ....... आधी रात तक रेतीले टीलो के आसपास घूमते रहे कि शायद एकाध साँप दिख जाए... आखिरकार बच्चों को सफलता मिली........

विद्युत के लैपटॉप में दो फिल्में देख ली...जो देखा उसे आप सबके साथ बाँटना चाहती हूँ......
बच्चे साँप को देख कर जितने खुश हुए...उतना ही उनकी आवाज़ में हैरानी , खुशी और डर भी महसूस किया...





(विद्युत ने फिल्म ली, आवाज़ अदनान की है... कार चलाने वाला दोस्त राहिल जो कार की हैडलाइट्स से रोशनी कर रहा था. )

सोमवार, 18 मई 2009

अपने वजूद के होने का एहसास एक नई उर्जा भर देती है.

दुबई से निकलते वक्त हमने पति महोदय से कहा कि साउदी के बॉर्डर तक हम ड्राइव करते हैं...लेकिन मना करते हुए खुद ड्राइव करने लगे.... हमने भी बहस न करते हुए चुप रहना बेहतर समझा और दूसरी सीट पर जा बैठे... मन ही मन सोचने लगे कि यह भी एक तरह से ताकत का खेल है......हम क्यों चुप रह गए..फिर सोचा..मौन में भी ताकत होती है.... ज़रा देखे हमारा 'साइलैंस गोल्ड' का काम करता है कि नही.... उधर भी शायद मन में कुछ ऐसी हलचल हो रही थी ......
शहर से बाहर निकलते ही पैट्रोल डलवाने के बाद अचानक कार की चाबी हमें दे दी .....सच में साइलैंस गोल्ड होता है...इस बात को आप भी आजमाइए....
फौरन पति की ताकतवर कार की ड्राइविंग सीट पर आ बैठे..... ताकतवर कार इसलिए कि हमारी कार का इंजन कम पावर का है.... 1.3 सीसी...... और इधर 3.4 ....
हल्का सा पैर दबाते ही 140 की स्पीड..... 140...... 150....160...... हमारा इस तरह से ताकत के नशे में झूमना...... कुछ पल के लिए पति और बेटा दोनो विचलित हुए फिर हमारी विजयी मुस्कान का आनन्द लेने लगे... ......
बेटे ने तो कुछ नही कहा लेकिन विजय धीरे से बोल उठे .... 150 काफी है.... डस्ट स्ट्रोम कभी भी आ सकता था...हमारी मुस्कान थोड़ी फीकी हो गई..... लेकिन कहा मानकर फौरन स्पीड कम कर दी...
उस वक्त जो गाड़ी भगाने का आनन्द आया उसका बयान नहीं कर सकते..... ताकत का नशा ... अपने वजूद के होने का एहसास एक नई उर्जा भर देती है....यही उर्जा शक्ति हमें अपने आपको किसी से भी कमत्तर समझने नहीं देती...

शुक्रवार, 15 मई 2009

नीर क्रीड़ा

छोड़ो कल की बातें , कल की बात पुरानी.... आज हम दुबई के सबसे बड़े दुबई मॉल में 'डांसनिंग फाउण्टैन' देख कर आए, दुबई की सबसे ऊँची ईमारत बुर्ज दुबई के सामने अलग अलग भाषाओ के गीतों पर झूमते हुए पानी को देख कर हम भी झूम उठे...
नीर क्रीड़ा कहें या नीर नृतक अभी पोस्ट का नाम सोच ही रहे थे कि वरुण की याद आई जो इसकी गहराई में जाकर सोचेगा कि सबसे पहले तो इंसान की लयाकत को सलाम करता , फिर इलैक्ट्रिक आर्ट का शीर्षक देने की बात करता क्यों कि बिजली और संगीत की धुन पर पानी की खूबसूरती को चार चाँद जो लग गए...
इंसान ने ही अरब सागर को दुबई के अन्दर खींचकर कैनाल को और सुन्दर रूप दे दिया .... फिर छोटी छोटी बातों पर किसका ध्यान जाता है....
आप विद्युत द्वारा बनाई गई इस नीर नृतक की फिल्म ज़रूर देखिए...

दूर के ढोल सुहावने.....!

आज बस जी चाहा कि किसी अनाम की टिप्पणी पर हम भी कुछ कहें....
काश ... सरहदें न होतीं.....सिर्फ अपने परिवार से दूर होने की चाहत से नहीं बल्कि कई ऐसे बिखरे परिवारों के दर्द को देख कर....जो चाह कर भी एक साथ नहीं रह सकते.....

पिछली पोस्ट पर एनोनिमस महोदय/महोदया लिखते हैं.......
"अपना देश क्यों छोड़ा ? क्या कोई ढकेलने वाला था या केवल अधिक पैसे के लिए
तो फिर आप क्यों रो रहे हो "
सबसे पहले तो आप इस भ्रम से निकले..... कि विदेश में अधिक पैसा मिलता है....सुविधाएँ ज़रूर आकर्षित करती है.....खैर पहला सवाल....अपना देश क्यों छोड़ा.....? देश छोड़ने के अलग अलग पारिवारिक कारण हो सकते हैं..... सिताह जैसे लोग तो हज़ारों की तादाद में मिलेंगे....
हमारे जैसे लोग भाग्य द्वारा बाहर ढकेले जाते हैं.... आप को यह रोना लगा....हमें यह बाँटना लगा.....
इस पोस्ट को लिखने का एक ही मकसद है कि विदेश में अधिक पैसा मिलता है इस भ्रम को तोड़ा जाए....जानते हुए भी कई लोग बाहर का रुख करते हैं इसके पीछे भी कई कारण है....
हमारे देश की बात ही नहीं... एशिया के लगभग सभी देशों में यही समस्या है....बेरोज़गारी से जूझते लोग...अपने परिवार के पालन पोषण के लिए देश से बाहर किसी भी काम को करने के लिए तैयार रहते हैं....

सरकार का ढाँचा...जनसंख्या... बेरोज़गारी...... रोज़गार न होने के कारण कई परिवार भूखों तड़पते देखे जा सकते हैं लेकिन हमारी मानसिकता ऐसी है कि हम अपने ही देश में वेटर या 'बेबी सिटिंग' का काम नहीं करेंगे... विदेश में कर लेंगे...क्यों.... वहाँ हर काम को इज़्ज़त की नज़र से देखा जाता है...
अपने आस पास कितने ही लोगों को देखा जो विदेश जाकर कोई भी काम करने के लिए तैयार रहते हैं लेकिन अपने देश में अपने ही घर का कूड़ा फेंकने के लिए जमादार चाहिए....
अच्छे घर परिवार की पढ़ी लिखी बहू घर बैठे बैठे ही बेबी सिटिंग करने के काम के बारे में सोच भी नहीं सकती....
पढ़ने वाले बच्चों को उधार ले लेकर पढ़ाने का बोझ माँ बाप अकेले ढोते हैं....बस तुम पढो... अच्छी नौकरी पा लो... कह कर अपने दर्द में बच्चों को हिस्सेदार नहीं बनाते.....वही बच्चे बड़े होकर अगर बूढ़े होते माँ बाप को एक तरफ छिटक दें तो फौरन उन्हें बुरा भला कहना शुरु कर देते हैं..... जबकि हम यह नहीं जानते कि बचपन से ही उन्हें एक दूसरे के दर्द में भागीदार बनाने पर ही वे परिवार से जुड़े रह पाएँगे.
विकासशील देश बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रहे हैं....दुबई जैसे छोटे से देश में ही भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका के लगभग 700,000 मज़दूरों को रोज़गार मिला हुआ है.
सुबह की चाय के वक्त इतना नीरस विषय.... बस बैठे बैठे यूँ ही लिख लिया तो अब पोस्ट तो ज़रूर करेंगे....
पूजा पाठ करते नहीं लेकिन नास्तिक भी नहीं....एक असीम शक्तिपुंज है जिसकी मर्जी के खिलाफ एक पत्ता भी नहीं हिलता.... यह सोच तो अटल है...
कर्म करने पर विश्वास रखते है तो भाग्य को भी मानते हैं....

(एनोनिमस महोदय/महोदया..... आपके कारण हम एक पोस्ट लिख पाए..आपका बहुत बहुत शुक्रिया .......)