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मंगलवार, 14 जून 2016

अम्माजी के छोटे-छोटे सपने


ऑफिस से नीचे उतरते ही मैट्रो स्टेशन है. जहाँ से घर की दूरी चालीस मिनट की है. घर के पास वाला स्टेशन भी नज़दीक ही है. हर शाम पाँच बजे सीमा मदर डेरी में होती है. दूध , दही, सब्ज़ियाँ और फल लेकर ही घर जाती है. घर जाते ही फ्रेश होकर पहले अम्मा और अपने लिए चाय बनाती है. दोनों एक साथ चाय पीते हुए एक दूसरे से सारे दिन का हालचाल पूछते  हैं. 'बहू, आज भी सेब की सब्ज़ी बनाना. रात के खाने के लिए'. सास के इतना कहते ही सीमा बोल उठती है, 'अरे अम्मा कल तो कुछ था नहीं घर में. दाल से आपका यूरिक एसिड बढ़ जाता है इसलिए सेब की रसेदार सब्ज़ी बना ली थी, आज तो मैं आपकी पसन्द की सारी सब्ज़ियाँ ले आई हूँ.' अम्मा का झुर्रीदार चेहरा चमक उठता है. 'तो फिर सीताफल बनाना आज' कह कर चाय का लम्बा घूँट भरते हुए सीमा को प्यार भरी नज़र से देखती हैं.

'अम्मा, बस अभी आई, सीतफल यहीं ले आती हूँ' सीमा कहती हुई चाय के खाली प्याले लेकर किचन के सिंक में रख कर सीताफल थाली में ले आती है. इधर उधर की बातें करते हुए सीताफल कट जाता है. अम्मा को भी चाय पीते हुए सीमा से बात करना बहुत अच्छा लगता है. बुज़ुर्गों को सिर्फ इतना ही तो चाहिए कि बच्चे कुछ पल उनके साथ बैठे, यही पल उन्हें खुशी तो देते ही हैं साथ ही जीने के लिए नई उर्जा भी दे जाते हैं. आज स्कूल की पिकनिक के कारण बच्चे शाम छह बजे से पहले घर लौटने वाले नहीं थे इसलिए सीमा कुछ बेफिक्र थी .  इत्मीनान से अम्मा के पास बैठ कर बतियाते हुए सब्ज़ी काट रही थी.

सीमा के छोटे से घर परिवार में सुख-शांति है. एक दूसरे के लिए प्रेम और आदर है. सभी एक दूसरे की ज़रूरतों और सुविधाओं का ख्याल रखते हैं. इस घर में कलह होता है तो सिर्फ एक ही बात पर कि राजेश परिवार को लेकर कहीं बाहर घुमाने नहीं ले जाता. उसकी अपनी मजबूरियाँ हैं. दो साल से नई नौकरी की तलाश में जुटे राजेश को बस इंतज़ार है एक अच्छी नौकरी का. जिस दिन उसके मनपसन्द की नौकरी मिलेगी, पहली छुट्टी में सभी मनाली घूमने जाएँग़ें. सीमा भी यह जानती है इसलिए गुस्से पर जल्दी ही काबू पा लेती है.

इस बात को ध्यान में रखते हुए राजेश ने पिछले साल अम्मा के जन्मदिन पर उन्हे टचपैड लेकर दिया था जिस पर वे कुछ गेम्ज़ बड़े शौक से खेलती हैं. उन्हें हिन्दी के सीरियल पसन्द नहीं. टीवी पर संगीत के कार्यक्रम अच्छे लगते हैं या नेशनल जीयोग्राफ़ी देखने का शौक रखती हैं . कुछ दिन बाद राजेश ने सीमा के लिए भी होम थिएटर खरीदा. राजेश अच्छी तरह जानता है कि संगीत सीमा में गजब की मस्ती भर देता है. उसे कितनी भी थकावट होगी अच्छे म्युज़िक सिस्टम पर संगीत सुनते ही दूर हो जाएगी.

'अम्मा, बच्चे आने वाले हैं, जल्दी से खाना पका लूँ नहीं तो उनके ऊधम से काम रुक जाएगा' सीमा कहते हुए उठ जाती है. पीछे पीछे अम्माजी भी किचन में आ जाती हैं. जानती हैं कि किचन में काम करते हुए सीमा को ऊँची आवाज़ में म्युज़िक सुनने की आदत है इसलिए अम्मा अपने कानों पर ईयर प्रोटेक्टर लगा कर म्युज़िक सिस्टम ऑन कर देती हैं. सीमा के मना करने पर भी आटा गूँदने वाली  मशीन में आटा गूँदने लगती हैं. उधर सीमा एक तरफ कुकर में दाल और दूसरी तरफ सीताफल पकने के लिए रख देती है.

ऊँची आवाज़  में संगीत सुनते हुए सीमा के हाथ फुर्ती से चलने लगते हैं. फटाफट सलाद काट कर डाइनिंग टेबल पर रखती है और अम्मा के लिए गाजर कद्दूकस करके उसमें नींबू की दो चार बूँदें भी डाल देती है. म्यूज़िक की ऊँची आवाज़ के कारण दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनाई नहीं देती...हमेशा की तरह राजेश कुछ कहते  उससे पहले ही सीमा खिलखिलाते हुए उसकी नकल करते हुए कहती है, " चोर की मौसी , चोरों का काम आसान कर देती हो " बेटा बहू को हँसते हुए देख कर अम्मा के मुहँ पर भी ढेर सारी हँसी फैल जाती है. बिना कुछ सुने ही बस बहू बेटा को मुस्कुराते खिलखिलाते देख उनका झुर्रीदार चेहरा भी खिल उठता है.

हमेशा की तरह फ्रेश होने के बाद राजेश भी किचन में आ जाता है. 'हैलो अम्मा.....ठीक हो?'  इशारे से ही मुस्कुराती अम्मा थम्ज़अप का इशारा कर देती हैं. घर आकर सीमा और राजेश ऑफिस का कम ही ज़िक्र करते हैं. बच्चों के बारे में राजेश कुछ पूछते कि डोरबेल बज उठती है... पिकनिक से थके दोनो बच्चे घर पहुँचते ही फिर से जोश में आ जाते हैंं. बड़ी पोती सारे दिन का लेखाजोखा सुनाने के लिए  दादी को उनके कमरे में खींंच कर ले जाती है. छोटी पोती भी पीछे पीछे पहुँच जाती है. राजेश तब तक हाथ मुँह धोकर वापिस किचन में आता है सीमा का हाथ बँटाने. दोनों मिल कर डाइनिंग टेबल पर खाना लगाते हैं. सीमा जानती है कि राजेश को आजकल के नए गाने बिल्कुल पसंद नहीं इसलिए खाना खाते वक्त कम आवाज़ में ग़ज़लें लगाना नहीं भूलती.
खाते हुए बोलना अम्माजी को कतई पसंद नहीं लेकिन अपनी बातों से एक दूसरे को पछाड़ती पोतियों के मुस्कुराते चेहरे देख कर खुद भी मुस्कुराने लगतींं हैं. खाने के बाद दोनों पोतियाँ बेफिक्री और मस्ती से डाइनिंग टेबल को साफ करती हैं. बचे  हुए काम को समेटते हुए बेटा बहू कब अपने कमरे में जाते हैं उन्हें नहीं पता. खाना खत्म करते ही हमेशा की तरह बच्चों को शुभरात्रि कह कर वे अपने कमरे में लौट आती हैं.  
अक्सर उदासी की चादर ओढ़े रात के अंधेरे में अकेली तन्हा कभी कभी सिसकती हैं अपने साथी को याद करते हुए फिर भी एक सुकून की नींद सोती अपने छोटे छोटे सपनों की दुनिया में खुश हैं अम्माजी  !

2 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " किताबी संसार में ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Archana Chaoji ने कहा…

अहा!छोटे और सुखी परिवार की बढ़िया कहानी और प्यारी सी अम्माजी ।
बहुत अच्छा लगा पढ़ना