शब्द शराब तो भाव नशा
शब्द शराब बन
आँखों के ज़रिए
उतरते हैं दिल
और दिमाग़ में
नशा ग़ज़ब चढ़ता
नस नस में उतरता
धीरे धीरे असर होता
शब्दों का, भावों का
इसीलिए तो शब्द सबके
और अपने भी पी जाती हूँ
जो नशा बन छा जाते
करते जादू सा मुझ पर
कर देते मुझे मूक-मुग्ध !