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बुधवार, 17 सितंबर 2014

उतरते सूरज की कहानी...



हर शाम जाते सूरज की बाँहों से
 किरणें मचल कर निकल जातीं...
नन्हीं रंगबिरंगी सुनहरी किरणें 
बादलों के आँचल से लिपट जातीं...








गुस्से में लाल पीला होता  
सूरज उतरने लगता आसमान से नीचे
गहराती सन्ध्या से सहमे बादल
 धकेल देते किरणों को उसके पीछे 

  
  


12 टिप्‍पणियां:

Saras ने कहा…

कितना प्यारा चित्रण ....हूबहू ...!!!

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

सुन्दर रचना !!

सदा ने कहा…

अनुपम भाव लिये बेेहतरीन प्रस्‍तुति

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

जीवंत भाव.... सुन्दर चित्र

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत बढ़िया आंटी !


सादर

Sanjay Kumar Garg ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति, आदरणिया मीनाक्षी जी!
धरती की गोद

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 19/सितंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अरब की एक ढलती हुयी शाम का नज़ारा .. कैमरे औएर शब्दों की जुगलबंदी क्या क्या कर जाती है ...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

सुंदर ...शब्द भी ..चित्र भी

Rohitas Ghorela ने कहा…

बेहतरीन ...
शब्दों के साथ हु-ब-हु चित्रण तो कमाल है
 पासबां-ए-जिन्दगी: हिन्दी

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बेहतरीन ......

Unknown ने कहा…

वाह