ऊँची ऊँची दीवारों के उस पार से
विशाल आसमान खुले दिल से
मेरी तरफ सोने की गेंद उछाल देता है
लपकना भूल जाती हूँ मैं
टकटकी लगाए देखती हूँ
नीले आसमान की सुनहरीं बाहें
और सूरज की सुनहरी गेंद
जो संतुलन बनाए टिका मेरी दीवार पर
पल में उछल जाता फिर से आसमान की ओर
छूने की चाहत में मन पंछी भी उड़ता
खिलखिलातीं दिशाएँ !!
छूने की चाहत में मन पंछी भी उड़ता
खिलखिलातीं दिशाएँ !!
3 टिप्पणियां:
ये गेंद उछलती रहे तभी मन भी चंचल हो के झूमता रहेगा ... जहाँ इसको पकड़ा गति रुक जायेगी ...
वाह बेहतरीन..... जीवन के करीब से गुजरते शब्द ॥ एक एक शब्द ... .....बधाई
सूरज के लिए सोने की गेंद का बिम्ब अच्छा लगा. उगते सूरज से अधिक प्रेरणादायक कौन !!
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