मेरी नई चप्पल |
सच कहा गया है कि ईश्वर जो करता अच्छे के लिए ही करता है....हुआ यूँ कि कार की रजिस्ट्रेशन कराने के लिए एक कम्पनी से आए कर्मचारी को कार , पैसे और पेपर देने की जल्दी में बेटे के साथ हम अंडरग्राउंड पार्किंग की तरफ जा रहे थे...पूरे साल का ज़ुर्माना लगभग 1,250 दरहम था....स्पीडिंग करने और पार्किंग गलत करने या दस मिनट भी ऊपर हो जाने पर दुबारा टिकट न लगाने का हर्ज़ाना तो भरना ही था... रजिस्ट्रेशन की फीस भी देनी थी.....
पैसे कम पड़ गए थे इसलिए एटीएम मशीन से पैसे निकालने की जल्दी में ऊँची एड़ी की नई चप्पल पहन कर घर से निकले.......जाने क्या सोच कर ऊँची हील की चप्पल खरीद ली थी ...नए फैशन की नई चप्पल पहने हुए तेज़ गति से आगे बढ़ते जा रहे थे....एक पल के लिए भी नहीं लगा कि चप्पल कहीं धोखा दे जाएगी....दिखने में भी अच्छी और पहनने में भी सुविधाजनक.....पता नहीं क्यों हम ऊँचा होने की ललक नहीं छोड़ पाते.... पटक दिया उसने ज़मीन पर..... चप्पल ने ही सिखा दिया.....क्या ज़रूरत है ज़मीन से कुछ इंच भी ऊपर होने की...जहाँ हो, जैसे हो, वैसे ही रहो....!!
जैसे हैं वैसे ही क्यों नहीं रह पाते, यह समझ आ जाए तो फिर कोई गिरता ही नहीं... गिर कर फिर उठने की कला से भी वंचित रहता......ख़ैर .दूसरों की नकल करने का अंजाम क्या होता है आज गिरने पर जाना...विद्वानों ने सही कहा है कि नकल करने में भी अक्ल की ज़रूरत होती है.....मन ही मन ठान लिया कि हम जैसे हैं वैसे ही रहेंगे ...उसी रूप में जो स्वीकार ले वहीं अपना.........
ज़मीन पर पड़े पड़े सोच रही थी कि अगर मैं वही पहले जैसी छरहरी , पतली सी टुथपिक जैसी होती तो लाखों का नुक्सान हो जाता.....गिरते ही झट से हड्डी टूट जाती ...क्या पता कंधे, कूल्हे या घुटने पर प्लास्टर चढ़वाना पड़ता.... अस्पताल का भारी खर्चा उठाना पड़ता..बिस्तर पर पड़ जाते सो अलग......
मान भी लिया जाए कि पतले लोग सेहतमंद और मज़बूत होते हैं लेकिन धीरे धीरे पचास तक आते आते हडियाँ तो कमज़ोर होने ही लगती हैं... उस पर अगर माँस मज्जा की कमी हो तो पूछो नहीं कितना पैसा डॉक्टरों की जेब में जाने को आतुर हो जाए......
अब हम खाते पीते घर के हैं....वैसे ही भरे पूरे परिवार के दिखने भी तो चाहिए...... लेकिन घरवालों की रातों की नींद बेकार में ही ग़ायब हो जाती है....हमें देख देख कर दिन रात बस हमारी लम्बी उम्र की कामना करते हुए दिखते हैं...अब उन्हें कैसे समझाएँ कि हम जैसे सेहतमंद लोगों का दिल झट से चाबी की तरह शरीर से निकलता है और कार बन्द... :) होना भी यही चाहिए न.... सोते सोते ही निकल जाओ चुपके से...
खैर इतनी लम्बी भूमिका के बाद असल कहानी पर आते हैं कि आज सुबह सुबह हम गिर गए...पैर फिसला नहीं (शुक्र है)अचानक से बायाँ पैर मुड़ गया... दाहिना पैर आगे निकल गया... अब दोनों पैरों को दिमाग क्या आदेश देता...वह भी कंफ्यूज़ हो गया..... हम धड़ाम से ज़मीन पर...... लेकिन गिरते ही दिमाग ने दाएँ बाज़ू को संकेत दे दिया कि सहारा देकर गिरते हुए शरीर को सँभाल लेना .... बस दाईं बाज़ू के सहारे इतने ज़ोर से गिरे कि लगा जैसे भूचाल आ गया हो.... एक पल लेटे रहे...दो पल बैठे रहे.... इधर उधर देखने लगे कि कोई देख तो नहीं रहा....आज तक समझ नहीं आया कि गिरते हुए को देख कर लोग हँसते क्यों हैं.... मज़ा क्यों लेते हैं जैसे वे तो कभी गिरते ही न हों....
शुक्र था कि अंडरग्राउंड पार्किंग में सिर्फ दो कर्मचारी काम कर रहे थे....दौड़े आए....फर्श पर लाल रंग के रोग़न की चमकती दो तीन बूँदें देख कर घबरा गए...बैठे बैठे ही हमने बड़ी सी मुस्कान बिखेरते हुए कहा...'आए एम एन इंडियन वुमैन' ...दोनो कर्मचारी यह सुनते ही मुस्कुराते हुए वापिस लौट गए..... भारतीय औरत ही क्यों पूरी दुनिया की औरत का इतिहास किसी से छिपा नहीं........कभी कभी औरत लीची फल जैसी दिखती है...एक आवरण ओढ़े कोमल मन रसभरा फल जैसा.. जो अन्दर ही अन्दर सख़्त गुठली जैसे गज़ब का बल लिए रहती है...
उसी पल अपनी कार की तरफ बढ़ता बेटा पीछे पलटा... उसे समझ नहीं आया कि क्या करे....भागता हुआ मुझे उठाने की कोशिश करता उससे पहले ही हम आधे उठ चुके थे...(ऊपर के लिए नहीं...:) ) घुटनों के बल खड़े हुए तो बेटे ने हाथ देकर खड़ा कर दिया... वैसे वह न भी होता तो दो नहीं तो पाँच मिनट के बाद खुद ही खड़े हो जाते... वह तो सामने सुविधा देख कर हम कमज़ोर होने लगते हैं या दिखाने लगते हैं....
खैर खड़े हुए...चाहे हम ज़िन्दगी का आधा सफ़र पार कर चुके हैं फिर भी इतना तो यकीन था कि हड्डियाँ ज़मीन से बहुत दूरी पर थी... उनके टूटने का तो सवाल ही नहीं था ... बेटा परेशान देख रहा था... झट से कार की चाबी लेकर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया ..... काँपते हुए हम पेसेंजर सीट पर जा बैठे.....बार बार एक ही सवाल करता गया... .. 'आप ठीक तो है..... हाथ हिलाइए...पैर हिला कर दिखाइए... ' अच्छी भली कसरत करवा निश्चिंत हुआ कि सब ठीक है लेकिन उसे समझ न आया कि शरीर अन्दर तक कैसे हिल गया.....
अब उसे समझाने के लिए उनके बचपन के दिनों के एक खिलौने की चर्चा करनी पड़ी.....पंचिंग टॉय जिसे पंच मार मार कर बच्चे गिराते लेकिन फिर से वह उठ खड़ा होता ...उसके तल में मिट्टी का बैग अगर टूट कर अन्दर ही बिखर जाए तो बेचारा एक पंच खाकर भी फिर उठ नहीं पाता...शरीर के अन्दर के दर्द के लिए दिए गए उदाहरण को सुन कर वह ज़ोर से हँसने लगा..... उसे देख मैं भी खिलखिला उठी....
पंच खाने के इंतज़ार में |
25 टिप्पणियां:
Seedha-sada prasang,lekin aapkee shaili itnee rochak hai,ki,pahle shabd se leke aakharee tak padhe bina bina rok nahee paatee!
bete ke saath main bhi hans padi... ab samtal chappal hi pahna kijiye
लिखने का अंदाज़ बहुत रोचक है ...
अंत भला तो सब भला. वैसे ऊँचे-नुकीले हील पहन कर चलना भी कितना मुश्किल होता होगा !
शायद इसकी ही आदत हो जाती है पहनने वालों को...
सौ बात की एक बात... इस पोस्ट की पँचलाइन यही है,
"क्या ज़रूरत है ज़मीन से कुछ इंच भी ऊपर होने की...जहाँ हो, जैसे हो, वैसे ही रहो....!!
जैसे हैं वैसे ही क्यों नहीं रह पाते, यह समझ आ जाए तो फिर कोई गिरता ही नहीं... गिर कर फिर उठने की कला से भी वंचित रहता "
उत्कृष्ट चिन्तन !
शुक्र मनायें कि पेन्सिल हील नहीं पहनें थीं वरना तो.....
:)
उम्मीद की जाये कि हड्डी सलामत होगी..कल सुबह उठकर ही पता चलेगा..खबर करियेगा.
chapal me fuschia color strap naa hotaa to mae maang kar laeti
aagey sae high heel , pencil heel kuchh bhi lae to please brown beige colour ki hi lae taaki
aap kaa shauk puraa hotae hi yaa aap ko shock lagtey hee aap sae mae maang lun
vaese koi chappal maangtaa nahin haen meri himmaat ki daad to aap ko daeni padaegi
आपकी पोस्ट ने तो डरा ही दिया...
अब कभी हम अपनी बढती उम्र और शू-रैक में रखी हाइ-हील चप्पलों को देखते हैं..:(:(
पर ये क्या था, " फर्श पर चमकती लाल बूंदें "...यानि चोट लगी??...प्लीज़ अपना ख्याल रखिए....और ऐसी लापरवाही मत कीजिए..डॉक्टर की राय जरूर ले लीजिये
बहुत ही रोचकता से किस्सा बयां कर दिया।
उस हिल वाले चप्पल का क्या किया आपने ? हा हा हा ........रोचक बखान .
@क्षमाजी...उस वक्त चोट खाए थे..इसलिए शायद :)
@रश्मिजी..समतल ही है बस कुछ इंच ज़मीन से ऊँची..:)
@संगीताजी..शुक्रिया ..
@अभिषेक..ऊँची..नुकीली..समतल हील पहन कर बस थोड़ा सावधान रहने की ज़रूरत है..
@डॉअमर..आपकी पैनी नज़र को मान गए..शुक्रिया
@समीरजी..पेंसिल हील पहने तो सदियाँ गुज़र गई..औरतें सख़्त मिट्टी की बनी होती है इतनी जल्दी टूटती नहीं हैं:)
@रचना...पहली बार यह रंग चुना और चोट खा गई..बेज और ब्लैक ने कभी धोखा नही दिया था..खैर आपकी हिम्मत की दाद हम ही नहीं पूरा ब्लॉगजगत देता है... :) और हाँ पुरानी क्यों...नई चप्पल लाएँगे आपके लिए शौक और किसी को भी शॉक देने के लिए ...:)
@रश्मि...हाई हील या समतल हील...लापरवाही हुई दुर्घटना हुई...खून नहीं रोगन की बूँदे है वो..डॉ की जेब में पैसा क्यों डालना उतने में तो और कितनी चप्पले आ जाएँग़ी...:)
@वन्दना..दर्द हो तो शायद रोचकता भी बढ़ जाती है:)
@कुसुमजी..उसे तो हम फिर से पहनेंगे..लेकिन सावधानी से...दुख देने वाली चीज़ या लोगों को ऐसे ही फेंकने लगे तो हो गया गुज़ारा ..:)
आज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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vah keya kahe aap ko ,keya kamal ke leke hai,soch he nerale hai
ज़मीन पे पाँव रख के चलना चाहिए ... मजाक ही मजाक में गूढ़ बात कह दी ...
आशा है चोट ज्यादा नहीं आई होगी ... अपना ख्याल रखें ...
हाँ ,यह तो हमारे साथ भी हुआ है ,हील थोड़ी भी ऊँची हो तो एक तो चलना स्वाभाविक नहीं रहता और ज़रा से में पाँव एकदम मुड़ जाता है .
चलो अच्छा हुआ सस्ते में सबक मिल गया !
आपके इस बेहद रोचक शैली में लिखे वृतांत में बहुत से गहरे तथ्य भी छुपे दिखे.बरहाल होटों पर मुस्कान पसरी रही पूरी पोस्ट पढते वक्त :)
:) Muskurahat ke saath achcha kissa kah gayi aapki rochak post....
:) Muskurahat ke saath achcha kissa kah gayi aapki rochak post....
interesting and an oblique satire..
अब अगर किसी ने हमारे वजन को कुछ हल्के में लिया तो आपकी ये पोस्ट जरूर पढवा देंगे :)
Ant Bhala to sab bhala par apne upar hansna aur itana badhiya lekh likhna sabke bas ki bat nahee hai. Rochak lekh.
अत्यंत रोचक....
बहुत बढ़िया शिक्षापरक लेख, हर व्यक्ति को अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए ज़मीन से कुछ इंच भी ऊपर उठने की जरूरत क्या है, वाह मजा आ गया, किन्तु अपनी अवस्था का का ध्यान रखते हुए अपने जख्मो की उचित देखरेख भी करे...
रोचक अंदाज में कही गई गहरी बातें दिल को छू गई. आभार.
सादर,
डोरोथी.
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