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बुधवार, 13 जुलाई 2011

रूठी कविता


जाने क्यों आज सुबह से ....
मेरी 'कविता' रूठी है मुझसे
दूसरी कविताओं को देख कर
वैसा ही बनने की चाहत जागी है उसमें...
मेरे दिए शब्द और भाव अच्छे नहीं लगते उसे
दूसरे का रूप और रंग मोहते हैं उसे
मेरी 'कविता' नहीं जानती, समझती मुझे
मैं भी उसे उतना ही दुलारती सँवारती हूँ
जितना कोई और ............

जाने क्यों उसे भी आज के दौर की हवा लगी है...
अपने पास जो है उससे खुश नहीं....
दूसरे का रूप-रंग देख कर ललचाती है...
उन जैसा बनने की आस करने लगी है...
जो अपने पास है , वही बस अपना  है...
यह समझती ही नही....

जाने क्यों हीन-भावना से उबरती  नहीं ...
अपने स्वाभाविक गुणों  को  पहचानती नहीं
पालन-पोषण में क्या कमी रह गई...
कविता मेरी क्यों कमज़ोर हुई...
मैं हैरान हूँ , परेशान हूँ , उदास हूँ  !!


देख मुझे मेरी रूठी कविता ठिठकी
उतरी सूरत मेरी देख के  झिझकी
फिर सँभली....रुक रुक कर बोली....
"कुछ पल को कमज़ोर हुई...
नए शब्द औ' भाव देख के 
आसक्त हुई... 
तुम मेरी जननी हो...
मैं तुमसे ही जनमी हूँ ...
जो हूँ , जैसी हूँ ..
यही रूप  सलोना मेरा अपना है !!"





26 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कविता भी तो बच्चों की तरह है ... सर्जन होता है .. वो बाहर की दुनिया में जाती है नयी चीज़ें देखती है ... रूठ जाती है ... फिर वापस लौट कर जहाज पे आ जाती है ... अपनों से कोई लंबे समय तक कहाँ रूठ के रह सकता है ...

Sunil Kumar ने कहा…

kavita kabhi kamjor nahi hoti yah pathhak ki sonch par nirbhar karti hai

vidhya ने कहा…

kave ke baho me hai ,lakin lekha bahut he sundar


आप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

अपनी कविता से वार्तालाप!
बहुत सुंदर!
भावपूर्ण!

monali ने कहा…

Jitne pyaar se aapne apni kavita ko samjha dia kaash utne pyar se log apni har 'rachna' ko samjha paate... na jaane kyu unhe bharosa nahihota k koshish karne par samajh jayegi...jaane kyu use chhod dete hain uske haal par... bas ye keh kar k ZIMMEDARI TUMHARI HOGI :(

Arvind Mishra ने कहा…

दूसरे की कमीज कितनी भी उजली हो आती अपनी ही काम में

शारदा अरोरा ने कहा…

apni khushboo hi to kavita ko alag banaati hai ...ye svabhavikta hi bejod hoti hai ..kavita achchhi lagi...

Abhishek Ojha ने कहा…

सलोनी है क्योंकि अपनी है.

रजनीश तिवारी ने कहा…

एक कवि का अंतर्द्वंद्व !बहुत सुंदर कविता ।

Vivek Jain ने कहा…

अति सुंदर,
साभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

अब जब सभी रूठते मनाते हैं - तो कवि और कविता के बीच यह खेल क्यों न हो ? आखिर रूठना मनाना भी तो अपनापन ही है न :)

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

क्या कहने, बहुत सुंदर रचना।
बधाई

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

अपनी कविता के रूप में खुद से बातें अच्छी लगीं ....

राजेंद्र अवस्थी ने कहा…

बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना...बहुत बढ़िया...

Udan Tashtari ने कहा…

दिल को छूती....ये भी एक तरीका रहा...

Satish Saxena ने कहा…

अलग सी है यह रचना मगर दिल को छूती है ...शुभकामनायें आपको !!

Pradip Kumar Sahni ने कहा…

bahut achchhe bhav, bahut achchhi kavita..

abhi ने कहा…

चार स्माईली - :) :) :) :)

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ruthe ko itna manaya ... jab na ruthi ho to, hai n jadui baat

सुनीता शानू ने कहा…

आपकी पोस्ट की चर्चा कृपया यहाँ पढे नई पुरानी हलचल मेरा प्रथम प्रयास

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत अच्छी लगी आपकी कविता और आपका ब्लॉग।

सादर

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत ही प्यारी रचना...

विभूति" ने कहा…

बेहतरीन अभिवयक्ति...

Asha Joglekar ने कहा…

रूठी कविता को आखिर मना ही लिया है आपने । माँ से न माने ऐसी बेटी होती ही नही ।

vijay kumar sappatti ने कहा…

दिल को छूती हुई कविता ,, शब्द अपनी गाथा कहते हुए से है .. बधाई

आभार

विजय

कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

Rajeysha ने कहा…

बहुत ही बेहतर अपनी सी कवि‍ताएं...