आजकल वरुण का कज़न साहिल (नाम बदला हुआ) दक्षिण सूडान में है सयुंक्त राष्ट्र की तरफ से शांति की बहाली के लिए वहाँ नियुक्त हुआ है... अक्सर रोज़ ही बात हो जाती है... एक दिन भी खबर न आए तो पूरा परिवार चिंता करने लगता है ...साहिल का कहना है “ यहाँ आकर मुझे लगा मेरा देश तो हज़ारो लाखों मे एक है... यहाँ के लोगो की हालत देख कर बहुत दुख होता है” याद आ जाती हैं....विभाजन के दौर की सुनाई गई दादी की कहानियाँ “ साहिल की बातें मेरे लिए दुनिया के एक ऐसे कोने की जानकारी है जो रोचक भी है और बेहद भयानक भी
उतर और दक्षिण सूडान में सालों से गृहयुद्ध चल रहा था...अब जाकर कुछ आशा की किरण दिखाई दी है... पूरी दुनिया से स्वयंसेवी संस्थाएँ वहाँ काम कर रही हैं..सयुंक्त राष्ट्र तो है ही....सबकी अपनी अपनी कहानियों का सच और उनसे जुड़े अनुभव है...
जहाँ साहिल है वहाँ बिजली नहीं हैं..कोई बाज़ार नहीं है....वे लोग यू एन के कैम्पस में ही रहते हैं...खूबसूरत हरे भरे देश का मौसम भी अच्छा रहता है.... यहाँ शरिया का कानून भी नहीं है लेकिन कई सालों से हो रही लड़ाई के कारण रहने के लिए न घर है... न पेट भर खाना... औरतें और बच्चे सड़क के किनारे ही गुज़र बसर कर रहे हैं...उनकी हालत सबसे ज़्यादा खराब है....बच्चों को समय पर मेडिकल सुविधा न मिलने पर वे जल्दी ही दुनिया से कूच कर जाते हैं... उन्हें ज़िन्दा रखने की भरपूर कोशिश की जा रही है ...धीरे धीरे शिक्षा , मेडिकल सुविधाएँ , घर और खाने की ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश की जा रही है. झुग्गी झोपड़ी की तरह के घरों को टुकलू कहा जाता है उनमें रहने वालों के लिए अब घर बनाए जा रहे हैं..
आजकल साहिल किसी दूसरे राज्य में हैं जहाँ सब कुछ शांत था लेकिन फिर से वहाँ लड़ाई हुई और उस दौरान 4000 शरणार्थी और आ गए जिनके लिए खाने पीने और रहने की व्यवस्था की जा रही है..
आजकल बहुत बारिश हो रही है...ऊपर से कच्ची सड़कें , बार बार गाढ़ियाँ गड्ढों में फँस जाती हैं..लोगों के लिए खाने पीने का सामान पहुँचाना बहुत मुश्किल हो रहा है ...
हैरानी वाली बात यह दिखी कि यहाँ के लगभग सभी लोगों के हाथ में AK47 गन दिखाई देती है.... भेड़ बकरियाँ चराने वाले चरवाहों के हाथ में भी लाठी की जगह गन होती है लेकिन उसे चलाना किसी एक को भी नहीं आता. एक नया देश बनेगा उसकी सुरक्षा के लिए वहाँ की सेना और पुलिस में अनपढ़ और अनट्रेंड लोग हैं जिन्हें कई कई दिनों तक खाना नसीब नहीं हुआ ... छोटे छोटे बच्चे भी वहाँ की सेना का हिस्सा हैं उनके हाथ में भी वही गन देख कर मन बहुत खराब हो होता है....
साहिल का कहना है “अच्छा लगता है जब आप यहाँ के हालातों के बारे में पूछती हैं...मानसिक बल मिलता है कि हम कुछ न कुछ तो कर ही पाएँगे इन लोगो के लिए....खासकर औरतों और बच्चों के लिए सब सुविधाएँ जुटाने की भरसक कोशिश होती है....
गृहयुद्ध के दौरान औरत की जो दुर्दशा होती है उसे शब्दों में ढाला ही नहीं जा सकता... किसी घटना के लिए ‘रौंदी हुई ज़मीन’ शीर्षक सोच कर ही सिहर उठी थी.....उसे ‘ज़मीन और जूता’ नाम देकर अपनी कल्पना से ज़मीन जूते और नाख़ून के निशान सोचना भी तकलीफ़देह था...सोचती हूँ जो मुक्तभोगी हैं उनके दर्द का क्या.... कैसे वे अपना दर्द झेलतीं होंगी....!!!!
15 टिप्पणियां:
यहाँ तो बच्चे मुस्तंड लग रहे हैं
चलिये, एक आशा की किरण बाकी है..शायद जल्द ही सब सामान्य हो लेकिन पूर्ण बहाली तो वर्षों की बात है...एक पूरी जनरेशन की.
बड़ी ही दुखद सी बात है...शुक्र है कि इंसानियत बाकी है। भरपेट खाना मिल जाए वही बड़ी बात है, बाकी सुविधाएं तो मिल जाएँगी। साहिल को हमारी शुभकामनाएँ भेजना।
अरविंद जी, बच्चों की शक्ल और जाति ही ऐसी है कि मुस्तंडे लग सकते हैं पर असल में तो हड्डियों का ढाँचा होते हैं ये।
aapke dwaara ek varg ko achhi tarah jaan rahi hun, aapka yah prayaas sarahniy hai aur yah bekaar nahin jayega
आदमी के मन की हिंसा कितने प्राणियों का जीवन छीन लेती है। काश लोग समझ पाते।
@अरविन्दजी...सही वक्त पर खाद पानी मिलने पर यह फूल खिल उठे हैं..
@समीरजी...आशा की यही किरण बहाली में मदद करेगी...
@अर्बुदा..अच्छा लगता है तुम्हारी टिप्पणी पढ़कर...साहिल को शुभकामनाएँ पाकर अच्छा लगेगा.
@रशिमजी..अपने ही देश के कुछ लोग मदद के लिए वहाँ है यही जानकर सुकून मिलता है...
@अजितदी...अगर इन्सान समझ ले तो जाने कैसी दुनिया बन जाए ...
हालात के आगे सब मजबूर हो जाते हैं।
क्या हम सभ्य सँसार के बाशिन्दे हैं...
या इनका खुदा ही कोई और है ?
परेशान करने वाला वृताँत !
इस क्षेत्र के देशों में जनसंहारों के समाचार वास्तव में ही दुख देते हैं. दुनिया इस हिस्से को भुलाए ही बैठी है इसीलिए यहां कि निरंकुशता के चलते आम आदमी की हालत चींटिओं की सी भी नहीं है.
@वन्दना...हालात भी हम इंसान ही पैदा करते हैं..
@डॉअमर...लगभग हम सभी सभ्य संसार के असभ्य जीव है...
@काजलजी..सही कहा आपने... कई ऐसे देश है जिन्हें इसी तरह से ही नज़रअन्दाज़ किया जाता है और वहाँ निरंकुशता बढ़ती रहती है..
मन भर आया..यह सब पढ़कर...कुछ अंदाज़ा तो था ही..अखबारों के द्वारा...पर आपने तो आँखों-देखी रिपोर्ट दी है.
गृहयुद्ध ने कई देशों की स्थिति बदतर कर दी है.
साहिल एक बहुत ही नेक काम में जुटा हुआ है...अपनों के लिए तो सब करते हैं..गैरों के लिए कुछ करने का ज़ज्बा रखनेवाले को असीम शुभकामनाएं
मानव सोच बड़ी जटिल है. मानव जनित समस्याएं मानव को ही लील जाती हैं.
कई मामलों में हम खुशनसीब हैं...
ये जीवन बडा़ विचित्र है।
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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
भ्रष्टाचार के इस सवाल की उपेक्षा क्यों?
काश लोग बंदूकें खा पाते. कभी समझ नहीं आता कि मनुष्य चैन से क्यों नहीं रह सकता. शायद हम बने ही आदमखोर होने को हैं. खाते नहीं तो मारने को तो उतारू रहते हैं. साहिल व उस जैसों का प्रयास रंग लाए.
घुघूती बासूती
दुखी करने वाली जानकारी सुखद भविष्य की आशा !!
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