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गुरुवार, 2 जून 2011

बादलों का आंचल

 साँझ के वक्त आसमान से उतरते सूरज की कुछ तस्वीरें लीं....कुछ भाव भी मन में आ गए बस उन्हें इस तरह यहाँ उतार दिया.... चित्र को क्लिक करके देखिए...शायद अच्छा लगे..... 






11 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! बधाई!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

rashmi ravija ने कहा…

चित्र तो ख़ूबसूरत है ही...
पंक्तियाँ भी एकदम नवीन भाव लिए हुए हैं...अति सुन्दर

रश्मि प्रभा... ने कहा…

thik se padh nahin paa rahi hun

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव्।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

क्‍या कहने?

मीनाक्षी ने कहा…

पिछली दो पोस्ट मन को उदास कर गई थी...मन को बदलने के लिए कुछ नया प्रयोग किया और वैसे भी इंसान और इंसानियत से जुड़ी उदासी प्रकृति के साथ से कम तो हो ही जाती है ...

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना| धन्यवाद|

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

सीधे-सादे शब्दों में सरल से भाव अच्छे लगे ....

Urmi ने कहा…

आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए धन्यवाद!

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर भावपूर्ण रचना.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीया दीदी मीनाक्षी जी
सादर प्रणाम !

बहुत अच्छी कविता है
गुस्से से लाल पीला सूरज
गहराती संध्या …

प्रकृति की छटा बिखेरती यह छायावादी रचना अच्छी लगी … आभार !

पिछली पोस्ट की रचना ज़मीन और जूता भी बहुत भावपूर्ण है …
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार