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शनिवार, 29 मई 2010

गुस्सा बुद्धि का आइडेंटिटी कार्ड है







इस पोस्ट का शीर्षक फुरसतिया ब्लॉग़ की पोस्ट ‘एक ब्लॉगर की डायरी’ से लिया गया है. नेट की परेशानी के कारण कुछ रचनाओं के प्रिंट आउट करवा कर पढ़ते हैं सो फुरसतिया पोस्ट को तो फुरसत होने पर ही पढ़ा जा सकता है.. पढती जा रही हूँ और सोचने के लिए कई विषय मिलते जा रहे हैं...

सबसे रोचक लगा ‘गुस्सा डीलर’ के बारे मे जानकर.... जब पढ़ा कि गुस्सा बुद्धि का आइडेंटिटी कार्ड हो गया है तब से सोच रहे हैं कि जितना गुस्सा कम, उतनी बुद्धि कम .... अब क्या करें कैसे उबाल आए कि हम भी बुद्धिजीवी बन जाएँ एक दिन में... गुस्सा होने की लाख कोशिश करने लगे...... पहले अपने ही घर से शुरु किया....पति शाम को ऑफिस से आते हैं...जी चाहता है कि बाहर घूम आएँ ...ताज़ी हवा में टहल आएँ ...इंतज़ार करने लगे कि आज तो बाहर बाहर से ही निकल जाएँग़े...आदत से मजबूर दरवाज़ा खोल दिया...मुस्कुरा कर स्वागत भी किया... हम कुछ कहते उससे पहले ही महाशय के चेहरे पर मन मन की थकावट देख कर चुप रह गए ... गुस्सा भी अन्दर ही अन्दर मन मसोस कर रह गया कि थके मानुस को क्यों परेशान करना....

बच्चों की बारी आई... उन पर आजमाना चाहा ...युवा लोग तो वैसे भी बुर्ज़ुगों के कोप का निशाना बने ही हुए है....दोनो बच्चे दुबई में हैं..अकेले रहने का पूरा मज़ा ले रहे हैं... दो दो दिन बीत जाते हैं बात किए हुए...आधी आधी रात तक घर से बाहर होते हैं लेकिन न जाने चिल्ला नहीं पाते कि शादी हो जाएगी तब तो बिल्कुल नहीं पूछोगे.... अभी से यह हाल है....फोन किया...बात सुनी..छोटे ने कहावत एक बार सुनी थी नवीं या दसवीं की हिन्दी क्लास में कि ‘बेटा बन कर सबने खाया बाप बन कर किसी नहीं’ बस तो ऐसा मीठा बन जाता है कि प्यार आने लगता है....गुस्सा कहाँ आता... बल्कि सोचने लगेगी कि यही वक्त है उनका मस्ती करने का..क्या करते हैं, कहाँ जाते हैं इतनी खबर ही बहुत है....

दोस्तों और रिश्तेदारों की बारी आई....कोई तो भला मानुस हो जो गुस्सा दिलवा दे ताकि बुद्धिजीवी होने का सपना इसी जन्म मे पूरा हो सके.... स्काइप, जीमेल, फेसबुक आदि पर कई रिश्तेदार और दोस्त होते हैं जो नज़रअन्दाज़ कर जाते हैं......हरी बत्ती हो तो बड़ों को नमस्कार कर देते हैं लेकिन छोटों की नमस्ते का इंतज़ार करते ही रह जाते हैं... किसी को मेल की...उसके जवाब के इंतज़ार में कई दिन बीत जाते हैं...सोचते रह जाते हैं कि काश गुस्सा आ जाए... दिल कहता है किसी को मेल का जवाब देने के लिए जबरदस्ती थोड़े ही कर सकते हैं. ब्लॉग़जगत के बारे में सोचने लगे... वहाँ अपनी बिसात कहाँ ..... सभी बुद्धिजीवी हैं...उनके पास तो बहुत गुस्सा है...और बुद्धि भी.... या कहूँ कि बहुत बुद्धि है इसलिए गुस्सा है... अब आप ही सोचिए कि क्या समझना है...

अब मन कुछ हल्का हुआ है... तसल्ली हुई है कि हम भी कुछ कुछ बुद्धि वाले हो गए हैं क्यों कि हल्का हल्का गुस्सा अपने आप में महसूस कर रहे हैं तभी तो यह पोस्ट लिख पाने में समर्थ हुए हैं.... लिखा हमने है...पढ़ना आपको है..........:)

34 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

मैं तो सोचता था कि बुद्धि और गुस्से में व्युत्क्रमानुपाती रिश्ता है। यहाँ तो मामला कुछ उलटा ही निकला।

डॉ .अनुराग ने कहा…

शीर्षक सच में पेटेंट कराने जैसा है .......इन दिनों गुस्से की बोर्डर लाइन दिनों दिन नजदीक आती जा रही है ...एक छलांग में लोग कहाँ पहुँच जाते है .वैसे मैंने कई बुद्धिजीवियों को गुस्से में अति साधारण व्योवहार करते देखा सुना है ......

Arvind Mishra ने कहा…

मुश्किल तब आती है जब आपसे नीचे आपका गुसा सहने वाला कोई नहीं होता यानि आप सबसे निचले पायदान पर होते हैं -गुस्साया चिंतन !

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

मुझे भी बहुत गुस्सा आता है.... कई बार तो इतना कि कंट्रोल ही नहीं होता....

pawan dhiman ने कहा…

Gusse aur Chintan ka sah astitva ho sakta hai? Chutile andaaj me likha yah aalekh gudguda gaya. Dhanyavaad.

सतीश पंचम ने कहा…

इस पोस्ट से फुरसतिया पोस्ट की भी जानकारी मिल गई और इसी बहाने उसे पढ़ भी लिया।

धाकड पोस्ट लिखी है फुरसतिया जी ने। और आपने उसके एक कैची लाईन को भी सही पकडा कि - गुस्सा बुद्धि का आईडेंटिटी कार्ड है।

बहुत बढिया चिंतनात्मक पोस्ट।

kshama ने कहा…

Baap re baap! Kya kah diya aapne? Mai to sochti hun gussa nirbuddh hone ka dyotak hai!
Waise aapne gussa nahi kiya yah padh ke bada achha laga!

दिलीप ने कहा…

ha ha ha badhiya...

Ra ने कहा…

गुस्सा बुद्धि का आईडेंटिटी कार्ड है।
...रोचक पोस्ट ,,,,,,,,,भइय्या ! कोई तो बताओ ये गुस्सा कैसे और क्यूँ आता है ,,नहीं बाताया तो गुस्सा आ जायेगा

हिन्दीवाणी ने कहा…

देखिए इतना गुस्से में तो आप मत ही लिखा कीजिए। मुझे मालूम है कि गुस्सा आपकी नाक पर रहता है, लेकिन कम से कम ब्लॉग जगत के साथियों पर तो न ही उतारें। क्षमा कीजिएगा...अगर इसे पढ़ने के बाद दांत भींचने वाला गुस्सा आ जाए।

honesty project democracy ने कहा…

कहते है लड़ाई गुस्से से ही जीती जाती है ,लेकिन गुस्से के साथ सही दिशा और संतुलन का होना बहुत जरूरी है ,जिसके बिना गुस्सा हैवानियत की हद तद तक पहुंचकर हैवानियत की पहचान बन सकता है ,इसलिए गुस्से को सही दिशा में संतुलन के साथ उपयोगी बनाना भी जरूरी है |

अनूप शुक्ल ने कहा…

वाह! आपने तो शानदार लेख लिख दिया। सुन्दर। आप दिल से इतनी उदार हैं कि गुस्सा आता भी होगा तो कहीं कोने-अतरे में छिपकर बैठ जाता होगा।

आप गुस्से के सौंदर्य के उपमान भी देखिये! तब शायद कायदे से गुस्सा कर पायें। :)

राजकुमार सोनी ने कहा…

अरे कोई बताएगा अल्बर्ट पिन्टो के बाद केवल मुझे ही गुस्सा क्यों आता है।

संजय भास्‍कर ने कहा…

gussa aanna jayaj baat hai par kai baar control karna padta hai...

संजय भास्‍कर ने कहा…
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Sanjeet Tripathi ने कहा…

gussa to hame bhi aata hai to sir par chadh jata hai ji

अजय कुमार झा ने कहा…

बहुत ही सुंदर बात और बहुत गहरी भी । अब नए सिरे से चिंतन करते हैं बहुत जरूरत महसूस हो रही है इसकी आजकल , खुद मुझे भी ।

अजय कुमार झा ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
अजय कुमार झा ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
पापा जी ने कहा…

पुत्री
इस गुस्से ने ही मेरे कुछ पुत्र पुत्रियों को बिगाड कर रखा है
वे ब्लागवुड में अशांति फ़ैला कर रखे है, खैर अब देखता हूं कैसे नही सुधरते हैं
पापा जी

मीनाक्षी ने कहा…

पापाजी,,नहीं जानती आप कौन हैं..छोटे मुहँ बड़ी बात के लिए क्षमा करिएगा....आज के नए ज़माने में बच्चे रौब दिखाने पर नहीं सुधरते...
@अजय, आपने चिंतन की ज़रूरत महसूस कर रहे है..यही सकारात्मक बदलाव की निशानी है.
@संजीत, यानि आप बुद्धिजीवी है :)
@संजय,उम्र मे छोटे हो लेकिन बात पते की करते हो.
@सोनीजी,,शायद आप भी बुद्धिजीवी है..
@अनूपजी, आपकी पोस्ट पढ़ ली और सरकार को उपाय भी दे दिया कि इस गर्मी के मौसम मे गुस्सैल लोगों से बिजली बनाकर लोगो मे मुफ़्त बाँटी जाए.
@कुमरजी,लेख का मर्म आप समझ गए..आभार
@युसूफ़ साहब..आपकी टिप्पणी पढ़कर कतई गुस्सा नही आया..
@मीणाजी...गुस्सा तो हम सबमे है..कम ज़्यादा..बस कब और कितना निकालना चाहिए यही पता नही होता...
@दिलीप, काजलकुमार पवन और सतीशजी आपका शुक्रिया
@क्षमा..गुस्सा तो हमारे गणित के टीचर को भी बहुत आता था..यहाँ तो बस चुटकी ली गई है..
@मिश्रजी..गुस्साया चिंतन कह कर आपने हमें भी बुद्धिजीवियों की श्रेणी में खड़ा कर दिया. :)
@डॉ.अनुराग,सही कहा आपने..शीर्षक पैटेंट होना चाहिए. यूँ कहिए कि बुद्धिजीवी गुस्से मे असाधारण हो जाते है...साधारण व्यवहार करने वाले तो सरल लोग होते हैं.
@द्विवेदीजी,आजकल ज़माना ही उल्टा है..
हल्के फुल्के पलों को बाँटने के लिए आप सबका शुक्रिया..

Javeria Asmath ने कहा…

Hi Meenu ..well written...it seemed very interesting to me ....i fully believe with conviction that "Anger does less good "..better stay cool and cheerful like YOU !!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मुझे लगता है गुस्सा भी एक किस्म की एनर्जी है जिसका संयोजन कर सही इस्तेमाल किया जाए तो नवीन स्रजन हो सकता है ....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

नमस्कार मीनाक्षी जी ... कैसी हैं आप ...

मीनाक्षी ने कहा…

@ javeria, thank u... you are wonderful reader...god bless u..
@दिगम्बरजी,सही कहा.. गुस्से का सही संयोजन किसी के लिए भी ताक़त बन सकता है.

Sanjay Kareer ने कहा…

बहुत शानदार ... और इसे पढ़ने के बाद यह भी साबित हो गया कि आप भी बुद्धिजीवियों की जमात में शामिल हैं। (काश थोड़ा गुस्‍सा आता तो अपने राम भी कुछ भ्रम पालते) :) पढ़कर मजा आया।

Sanjay Kareer ने कहा…

एक बात और कि आपको दोबारा लिखते देखकर बहुत खुशी हो रही है। उम्‍मीद करता हूं कि अब व्‍यवधान नहीं आएगा। :)

कुश ने कहा…

हम तो बुद्धूजीवी है हमें पता नहीं चलता कि कब गुस्सा होना है..?

वैसे आप छोटो से भी बात कर ही सकती.. लाल बत्ती आपके लिए थोड़े ही है..

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

गुस्‍सा तो वो रस्‍सा है
जिससे सबको बांधा जा सकता है
जो खुलने की कोशिश करे
उसे पुचकारा जा सकता है

गुस्‍सा एक दीवार है
दीवार जो कांच की नहीं होनी चाहिए
दीवार जो कांच की नहीं होती है
इनमें से कुछ भी हुआ तो
गुस्‍सा निकल जाता बाहर है
बेगुस्‍से ही मनते प्‍यार के त्‍यौहार हैं।

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ा ..गुस्सा चिंतन :) पर सही लिखा है आपने ...

Udan Tashtari ने कहा…

लिखने से ज्यादा पढ़िये, खूब गुस्सा आयेगा और बस, कमेंट दे मारिये. हो गईं बुद्धिजीवी.

ब्लॉग एक मात्र ऐसी जगह है जहाँ आपका शीर्षक सध जायेगा. दे दनादन गुस्सा होईये और खूब टिप्पणी किजिये गुस्से में.

बहुत जम के गुस्सा आये तो बेनामी. :)


मस्त आलेख.

मीनाक्षी ने कहा…

@शुक्रिया...वैसे ज़िन्दगी बिना बाधाओं के तो फीका भोजन जैसा होता है..वैसे कोशिश करेंगे कि ....लिखते रहे...
@कुश,लाल बत्ती को अब हम हरा ही मानेंगे :)
@वाचस्पतिजी..सच में बेगुस्से ही प्यार के त्यौहार मनाए जाते हैं..
@रंजना...शुक्रिया इस ओर आने का:)
@समीरजी..आशा है आप जल्दी स्वस्थ होंगे..

Manoj K ने कहा…

bilkul saaf saaf baat kahi aapne, bahut achha laga.. aaj hi apko follow karne laga hoon