आज शाम भारत से एक फोन आया जिसने अन्दर तक हिला दिया. उम्मीद नहीं थी कि अपने ही परिवार के कुछ करीबी रिश्ते इस मोड़ पर आ जाएँगे जहाँ दर्द ही दर्द है. रिश्ते तोड़ने जितने आसान होते हैं उतना ही मुश्किल होता है उन्हें बनाए रखना. पल नहीं लगता और परिवार बिखर जाता है. परिवार एक बिखरता है लेकिन उसका असर आने वाले परिवारों पर बुरा पड़ता है. पति पत्नी अपने अहम में डूबे उस वक्त कुछ समझ नहीं पाते कि बच्चों पर इस बिखराव का क्या असर होगा.. मन ही मन बच्चे गहरी पीड़ा लेकर जिएगें, कौन जान पाता है.
आज तक समझ नहीं आया कि तमाम रिश्तों में कड़ुवाहट का असली कारण क्या हो सकता है... अहम या अपने आप को ताकतवर दिखाने की चाहत.....
न जाने क्यों एक औरत जो पत्नी ही नहीं माँ भी है .... उसकी सिसकियाँ मन को अन्दर तक भेद जाती हैं. पहली बार जी चाहा कि अपनी एक पुरानी पोस्ट को फिर से लगाया जाए. शायद कोई टूटने बिखरने से बच जाए.
नारी मन के कुछ कहे , कुछ अनकहे भाव !
कुछ वर्षों बाद दो बहनों का एक नन्हा सा भाई भी आ गया. वंश चलाने वाला बेटा मानकर नहीं बल्कि स्त्री पुरुष मानव के दोनों रूप पाकर परिवार पूरा हो गया. वास्तव में पुरुष की सरंचना अलग ही नहीं होती, अनोखी भी होती है. इसका सबूत मुझसे 11 साल छोटा मेरा भाई था जो अपनी 20 साल की बहन के लिए सुरक्षा कवच बन कर खड़ा होता तो मुझे हँसी आ जाती. छोटा सा भाई जो बहन की गोद में बड़ा होता है, पुरुष-सुलभ (स्त्री सुलभ के विपरीत शब्द का प्रयोग ) गुणों के कारण अधिकार और कर्तव्य दोनों के वशीभूत रक्षा का बीड़ा उठा लेता है.
फिर जीवन का रुख एक अंजान नई दिशा की ओर मुड़ जाता है जहाँ नए रिश्तों के साथ जीवन का सफर शुरु होता है. पुरुष मित्र, सहकर्मी और कभी अनाम रिश्तों के साथ स्त्री के जीवन में आते हैं. दोनों में एक चुम्बकीय आकर्षण होता है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता.
फिर एक अंजान पुरुष धर्म का पति बनकर जीवन में आता है. जीवन का सफर शुरु होता है दोनों के सहयोग से. दोनों करीब आते हैं, तन और मन एकाकार होते हैं तो अनुभव होता है कि दोनों ही सृष्टि की रचना में बराबर के भागीदार हैं. यहाँ कम ज़्यादा का प्रश्न ही नहीं उठता. दोनों अपने आप में पूर्ण हैं और एक दूसरे के पूरक हैं. एक के अधिकार और कर्तव्य दूसरे के अधिकार और कर्तव्य से अलग हैं , बस इतना ही.
अक्सर स्त्री-पुरुष के अधिकार और कर्तव्य आपस में टकराते हैं तब वहाँ शोर होने लगता है. इस शोर में समझ नहीं पाते कि हम चाहते क्या हैं? पुरुष समझ नहीं पाता कि समान अधिकार की बात स्त्री किस स्तर पर कर रही है और आहत स्त्री की चीख उसी के अन्दर दब कर रह जाती है. कभी कभी ऐसा तब भी होता है जब हम अहम भाव में लिप्त अपने आप को ही प्राथमिकता देने लगते हैं. पुरुष दम्भ में अपनी शारीरिक सरंचना का दुरुपयोग करने लगता है और स्त्री अहम के वशीभूत होकर अपने आपको किसी भी रूप में पुरुष के आगे कम नहीं समझती.
अहम को चोट लगी नहीं कि हम बिना सोचे-समझे एक-दूसरे को गहरी चोट देने निकल पड़ते हैं. हर दिन नए-नए उपाय सोचने लगते हैं कि किस प्रकार एक दूसरे को नीचा दिखाया जाए. यह तभी होता है जब हम किसी न किसी रूप में अपने चोट खाए अहम को संतुष्ट करना चाहते हैं. अन्यथा यह सोचा भी नहीं जा सकता क्यों कि स्त्री और पुरुष के अलग अलग रूप कहीं न कहीं किसी रूप में एक दूसरे से जुड़े होते हैं.
शादी के दो दिन पहले माँ ने रसोईघर में बुलाया था. कहा कि हाथ में अंजुलि भर पानी लेकर आऊँ. खड़ी खड़ी देख रही थी कि माँ तो चुपचाप काम में लगी है और मैं खुले हाथ में पानी लेकर खड़ी हूँ. धीरज से चुपचाप खड़ी रही..कुछ देर बाद मेरी तरफ देखकर माँ ने कहा कि पानी को मुट्ठी में बन्द कर लूँ. मैं माँ की ओर देखने लगी. एक बार फिर सोच रही थी कि चुपचाप कहा मान लूँ या सोच समझ कर कदम उठाऊँ. अब मैं छोटी बच्ची नहीं थी. दो दिन में शादी होने वाली है सो धीरज धर कर धीरे से बोल उठी, 'माँ, अगर मैंने मुट्ठी बन्द कर ली तो पानी तो हाथ से निकल जाएगा.'
माँ ने मेरी ओर देखा और मुस्कराकर बोली, "देखो बेबी , कब से तुम खुली हथेली में पानी लेकर खड़ी हो लेकिन गिरा नहीं, अगर मुट्ठी बन्द कर लेती तो ज़ाहिर है कि बह जाता. बस तो समझ लो कि दो दिन बाद तुम अंजान आदमी के साथ जीवन भर के लिए बन्धने वाली हो. इस रिश्ते को खुली हथेली में पानी की तरह रखना, छलकने न देना और न मुट्ठी में बन्द करना." खुली हवा में साँस लेने देना ...और खुद भी लेना.
अब परिवार में तीन पुरुष हैं और एक स्त्री जो पत्नी और माँ के रूप में उनके साथ रह रही है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं, न ही उसे समानता के अधिकार के लिए लड़ना पड़ता है. पुरुष समझते हैं कि जो काम स्त्री कर सकती है, उनके लिए कर पाना असम्भव है. दूसरी ओर स्त्री को अपने अधिकार क्षेत्र का भली-भांति ज्ञान है. परिवार के शासन तंत्र में सभी बराबर के भागीदार हैं.
19 टिप्पणियां:
मीनू जी पोस्ट पढी. बेहद विचारणीय और समझदारी भरी
बहुत प्रभावी पोस्ट है. वाकई, जाने क्यूँ समझ नहीं पाते लोग!
जरा आज की पीढ़ी या कहें हमारी उम्र के लोग पढ़ लें तो शायद समझ आ जाए..कि स्पेस की जरुरत नहीं .बल्कि स्पेस को खत्म करने से ही जीवन बन पाता है।
बहुत ही सुचिंतित और संतुलित दृष्टिकोण !
shadi ke do din pahle....maa ki bat ....yhi hai sar baki sab nissar..
jan-jan tak pahuche aapka vichar...
बहुत ही अच्छी रचना। केवल तारीफ़ करने के लिये नही कह रहा हूं। बस यदि हम अपने मन से "दर्प" या "घमन्ड" शायद अन्ग्रेजी का "ईगो" ज्यादा सही होगा फिर देखें परिवार मे कैसे सुख-शान्ति निवास करती है।
ज्ञानवर्द्धक पोस्ट...जेवण में रिश्ते पानी की तरह ही होते हैं...
हम सभी को मुठ्ठी खुली रखकर रिश्तों को निभाना चाहिये ।
काफी कुछ कह जाती है पोस्ट
आभार पुन:प्रस्तुति का
बहुत ही संतुलित,सटीक और प्रभावी रचना...वो छोटे भाई का सुरक्षा कवच बनना और माँ का अंजुरी भर पानी के बहाने सन्देश देना...मन भिगो गया. रिश्तों को उनकी गहराई में समझने की जरूरत है पर हम उसे for granted ले लेते हैं .
जीवन का सत्य यही है, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं , जिनके बीच में कोई तेरा और मेरा नहीं होना चाहिए. जहाँ पूरक होते हैं वहाँ कोई दूसरे अहम् और अहंकार की जरूरत रह ही नहीं जाती है. एक सामान्य और संतुलित जीवन का आधार यही है. दोनों की भावनाओं का सम्मान और अधिक मजबूती देता है रिश्तों को. ये पूरकता जब तक सृष्टि है तब तक रहेगी. हम मूल्यों को अपने अनुरूप ढाल भले लें लेकिन जो सत्य है वह सदैव सत्य ही रहेगा. और ये शाश्वत सत्य हैकि इस सृष्टि के लिए दोनों में समभाव और सम्मान बहुत जरूरी हैं.
आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया ..
पुरानी बातों को याद करने से कभी कभी मन को हिम्मत मिलती है ....
बहुत बढिया पोस्ट।बहुत कुछ कह गई आप की यह पोस्ट...बधाई।
कुछ रिश्तो की बेलेंस करने की जिम्मेवारी एक ओर ज्यादा झुकी होती है ...ये एक निर्विवाद सत्य है ....एक ऐसे रिश्ते से गुजरा बच्चा मेरा बेस्ट फ्रेंड है .....जो आज अमेरिका में डॉ है ..उसके पास एक समुन्दर है ब्यान करने को ....कभी मन्नू भंडारी की कहानी पढ़िए इसी विषय पर .....
विचारणीय,बहुत कुछ कह गई आप की प्रभावी पोस्ट,रिश्तों को निभाना चाहिये
पहले भी बहुत मार्मिक लगी थी यह पोस्ट.. आज भी..
सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी
Kitni achhee salah dee ek maa ne!
Kaash yahi salah,ek bete ki maa bhi use de!
वाह! खूबसूरत बात! जय हो!
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