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गुरुवार, 20 मई 2010

त्रिपदम (ग्रीष्म ऋतु के)



लू सी जलती
ऋतु गर्मी की आई
धू धू करती
*
किरणें तीली
सूरज की माचिस
धरा सुलगी
*
सड़कें काली
तपती रेत जले
खुश्क हवाएँ
*
दम घुटता
धूल में घर डूबा
दीवारें रोतीं
*
रेतीला साया
दबी चहुँ दिशाएँ
घुटी हवाएँ

12 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Sach..aisahi mahsoos hota hai..aur tanhayi me to har mausam khalta hai..chahe kitnahi suhavna kyon na ho..

kunwarji's ने कहा…

अद्भुत!

कम शब्द, बड़े अर्थ, और उनका संयोजन!

अनुपम!

कुंवर जी,

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही उम्दा रचना बन पड़ी है ।

बेनामी ने कहा…

waah
aah
karo nirvaha bina light kae

दिलीप ने कहा…

sahi kaha par main abhi mysore me hun mausam is just awesome...

डॉ टी एस दराल ने कहा…

शब्दों का बहुत खूबसूरत तालमेल ।
आंधी का सीन देखकर तो डर सा लगता है ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर त्रिपदम् ।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

मैं तो पढ़ कर जल उठा!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

त्रिपदम बहुत अच्छे लगे....

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर!

अनूप शुक्ल ने कहा…

वाह! वाह! शानदार!

रंजू भाटिया ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर ..