लू सी जलती
ऋतु गर्मी की आई
धू धू करती
*
किरणें तीली
सूरज की माचिस
धरा सुलगी
*
सड़कें काली
तपती रेत जले
ऋतु गर्मी की आई
धू धू करती
*
किरणें तीली
सूरज की माचिस
धरा सुलगी
*
सड़कें काली
तपती रेत जले
खुश्क हवाएँ
*
दम घुटता
धूल में घर डूबा
दीवारें रोतीं
दीवारें रोतीं
*
रेतीला साया
दबी चहुँ दिशाएँ
घुटी हवाएँ
दबी चहुँ दिशाएँ
घुटी हवाएँ
12 टिप्पणियां:
Sach..aisahi mahsoos hota hai..aur tanhayi me to har mausam khalta hai..chahe kitnahi suhavna kyon na ho..
अद्भुत!
कम शब्द, बड़े अर्थ, और उनका संयोजन!
अनुपम!
कुंवर जी,
बहुत ही उम्दा रचना बन पड़ी है ।
waah
aah
karo nirvaha bina light kae
sahi kaha par main abhi mysore me hun mausam is just awesome...
शब्दों का बहुत खूबसूरत तालमेल ।
आंधी का सीन देखकर तो डर सा लगता है ।
सुन्दर त्रिपदम् ।
मैं तो पढ़ कर जल उठा!
त्रिपदम बहुत अच्छे लगे....
सुन्दर!
वाह! वाह! शानदार!
वाह बहुत सुन्दर ..
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