डरा कपोत
बिल्ली टोह में बैठी
बचेगा कैसे
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सोचा मैंने भी
खामोश हूँ क्यों
बैठी जड़ सी
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क्या मैं ऐसी हूँ
तटस्थ या नादान
भावुक जीव
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पंछी आज़ाद
आँख कान थे बंद
ध्यान मग्न था
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मैं-मैं या म्याऊँ
करते प्राणी सब
कौन मूर्ख
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सभी निराले
गुण औगुण संग
स्वीकारा मैंने
14 टिप्पणियां:
प्रशंसनीय
ये तो त्रिपदम् ग़ज़ल हो गई!
बढियां
बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक...
बड़े दिन बाद...आनन्द आया.
बहुत खूब!
Bahut achchhe lage aapke haikoo.Badhai!!
त्रिपदम् गज़ल । वाह ।
Tasveer aur rachnayen..sabkuchh bahut khoobsoorat hai!
वाह !
बहुत खूब !
कलात्मक सुन्दर अभिव्यक्ति...
उत्कृष्ट हाइकू ।
गुड हैं जी। वेरी गुड हैं।
achha hai....is vidha me aor likhiye...
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