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सोमवार, 17 मई 2010

त्रिपदम (हाइकु)

डरा कपोत

बिल्ली टोह में बैठी

बचेगा कैसे

**

सोचा मैंने भी

खामोश हूँ क्यों

बैठी जड़ सी

**

क्या मैं ऐसी हूँ

तटस्थ या नादान

भावुक जीव

**

पंछी आज़ाद

आँख कान थे बंद

ध्यान मग्न था

**

मैं-मैं या म्याऊँ

करते प्राणी सब

कौन मूर्ख

**

सभी निराले

गुण औगुण संग

स्वीकारा मैंने


14 टिप्‍पणियां:

pawan dhiman ने कहा…

प्रशंसनीय

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

ये तो त्रिपदम् ग़ज़ल हो गई!

Arvind Mishra ने कहा…

बढियां

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक...

Udan Tashtari ने कहा…

बड़े दिन बाद...आनन्द आया.

अनूप शुक्ल ने कहा…

बहुत खूब!

Prem Farukhabadi ने कहा…

Bahut achchhe lage aapke haikoo.Badhai!!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

त्रिपदम् गज़ल । वाह ।

kshama ने कहा…

Tasveer aur rachnayen..sabkuchh bahut khoobsoorat hai!

Abhishek Ojha ने कहा…

वाह !
बहुत खूब !

रंजना ने कहा…

कलात्मक सुन्दर अभिव्यक्ति...

अरुणेश मिश्र ने कहा…

उत्कृष्ट हाइकू ।

अनूप शुक्ल ने कहा…

गुड हैं जी। वेरी गुड हैं।

डॉ .अनुराग ने कहा…

achha hai....is vidha me aor likhiye...