आज माँ की बहुत याद आ रही है.... और उसका मौन... एक भी गलती हो जाने पर भयानक सज़ा मिलती....वह भी उसका अनंत मौन..... चारों दिशाओं में गहराती खामोशी.... और मेरे मन में हलचल.... मन ही मन चिल्लाती..... 'मम्मीईईईईईईईई ...... चिल्लाओ मुझ पर.... चीख चीख कर डाँटो..... गलती की है तो तमाचा जड़ दो.... बुरा भला कहो....लेकिन चुप न रहो..... ' लेकिन उधर.... एक कभी न टूटने वाली खामोशी...... जिससे दिल टूट टूट जाता..... लेकिन उस टूटने की आवाज़ माँ के कानों में न पहुँचती......
ग्यारहवीं कक्षा की परीक्षा के दिनों में अपनी सहेली के घर कुछ नोटस लेने गई..... शाम 6 बजे से पहले वापिस लौटने का वादा था लेकिन 7 बजे लौटी.... माँ ने दरवाज़ा खोला 8 बजे........... एक घंटा देरी से आने का एहसास हो गया था.... सज़ा भंयकर लेकिन इंसान गलतियों का पुतला... हर बार कोई न कोई गलती..... हाँ एक ही गलती को दुबारा दुहराने की नौबत कभी न आई....
धीरे धीरे चुपके चुपके जाने कब से यही मौन मुझमें आ बैठा..... लेकिन एक नए रूप में....माँ के मौन के आगे हम ठहर न पाते लेकिन हमारे बच्चे उस मौन को तोड़ने की हिम्मत करते हैं...
दोनों बेटे गलती करके खुद ही सामने आ बैठते हैं..... 'मम्मी, आप डाँटती क्यों नहीं.... चुप क्यों रह्ती हैं .......कभी कभी गलती पर डाँटना ज़रूरी होता है... तभी पता चलेगा कि आगे वही गलती नहीं दुहरानी है...' 'आप कभी नहीं कुछ कहतीं.... सब कुछ हम पर ही छोड़ देती हैं' ......
ऐसा सुनकर बस यही कहती...अपने देश में एक कहावत मशहूर है... बाप का जूता पाँव में आते ही बच्चे मित्र बन जाते हैं... फिर तो बस एक इशारा चाहिए और समझदार को इशारा काफी... एक उम्र के बाद अपनी गलती पहचानना और उसे फिर न दुहराना..... जिसे आ जाए.... वह जीवन में आने वाली मुसीबतों को आसानी से झेल जाएगा...
ऊँची आवाज़ में बोलने की ज़रूरत ही नहीं हुई..... कभी गलती हुई हो तो गलती करने के एहसास से ही एक दूसरे के सामने लज्जित होकर खड़े हो जाते क्योंकि परिवार के सभी सदस्यों के पैरों का साइज़ लगभग बराबर ही है......... कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं लगती... !
28 टिप्पणियां:
एक उम्र के बाद अपनी गलती पहचानना और उसे फिर न दुहराना..... जिसे आ जाए.... वह जीवन में आने वाली मुसीबतों को आसानी से झेल जाएगा...
बिल्कुल सही बात।
सुन्दर। अंसार कंबरी की कविता है:
पढ़ सको तो मेरे मन की भाषा पढ़ो,
मौन रहने से अच्छा है झुंझला पड़ो।
shi kha hai aapne .apka maoun apki ankhkho me utar aata hai tb shbdo ki kha jarurt hoti hai ?aur agr bachhe un ankho ko padh lete hai jisme unhe apni bhul ka ahsas hota hai aur vo seekh le lete hai vhi sanskar ban jate hai .
abhar
एक उम्र के बाद..........बच्चे अपने आप समझदार हो जाते हैं...........
bilkul sahi baat kahi........bas aisi soch hi sabki ho jaye.
पहले की अपेक्षा बच्चे अधिक परिपक्व हैं। वे बनते भी जल्दी हैं और बिगड़ते भी। पर अपना जमाना याद आता है। उस डाँट और मार में भी बहुत प्यार था।
नमस्कार मीनाक्षी जी,
सच कहा है… खैर गलती को ना दुहराना समझदारी है… जब हम छोटे होते हैं तो बहुत सी ऐसी बातों को नहीं मानते हैं जो मेरे लिए होता है मगर शायद वही हमारे लिए राह भी देता है…।
सार्थक एवं प्रेरणास्पद आलेख के लिए साधुवाद.
- विजय
इस मौन का तो कोई जवाब नहीं...बचपन में मेरी माँ का भी यही अचूक अस्त्र होता था और अब अर्धांगिनी भी ऐसे ही तेवर लिये मिली है।
क्या सारी माएं यही अस्त्र अपनाती हैं । सच है मां दुनिया में कहीं भी हो वो मां ही होती हैं । मां की तुलना किसी से नहीं हो सकती है । शायद इसीलिये कहते हैं कि ईश्वर हर घर में नहीं पहुंच सकता था इसलिये उसने मां बनायी ताकि हर घर में पहुंचे ।
मौन सबसे बड़ा दंड है .. सही लिखा है आपने इस विषय पर
मौन कई बार बिना शब्द कितना कुछ कह जाता है !
सच कहा मौन सबसे बड़ा हथियार है.......बड़ा कष्ट देता है .....वैसे मां रूठने के बाद मन पसंद खाना भी बनाती थी
सच कहा ये मुहावरा जीवन का सच लिये ही बना होगा -
मौन की अपनी ही एक भाषा है मीनाक्षी जी
आपकी माँ जी को नमन -
अब उनसे मिलने आ ही जायेँ :)
-- लावण्या
एक माँ को सारे गुर आते हैं बच्चों को सही राह पर लाने के ....सच मौन से बड़ा हथियार कोई नहीं है.......भाव्स्पर्शी...बेहतरीन रचना ....!!
बहुत-बहुत बधाई ....!!
पता नहीं हमारे घर में तो प्रजातंत्र सा था। कभी सजा मिली हो या माँ रूठी हों याद नहीं आता। मैंने बच्चियों के साथ मौन का अस्त्र कभी उपयोग नहीं किया, वैसे वे ही सही व बेहतर बता सकती हैं। शायद इसलिए कि मौन रहना आता ही नहीं।
घुघूती बासूती
सच अम्मा गुस्सा हो जाती थीं डाँट लेती थीं, तब तो ठीक रहता था। अब भी..! जब गुस्सा निकाल लेती हैं तो बात आई गई हो जाती है। मगर जब चुप हो जाती हैं, तब वाक़ई कुछ समझ में नही आता...! अब तो रहती ही नही हूँ उनके पास। फोन पर कितनी देर चुप रहेंगी। लेकिन हाँ याद है एख बार एख हफ्ते तक चला था ये मौन। कहीं मन नही लगता था। उस समय स्वतंत्रता यद्यपि अधिक मिल जाती थी। मगर स्वतंत्रता का उपयोग ही नही था कोई।
अब यही शायद मेरा हाल है। भला या बुरा मगर स्वभाव तो यही विकसित हो गया है। ज तक छोटी छोटी बातें होती हैं तब तक तो बड़बड़ा लूँगी, डाँट लूँगी। मगर यदि अधिक खराब लगी बात तो शांत ही हो जाती हूँ..! और कुछ हथियार भी तो नही, क्या करूँ....! :) :)
बहुत सुन्दर लिखा आपने..साधुवाद !!
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विश्व पर्यावरण दिवस(५ जून) पर "शब्द-सृजन की ओर" पर मेरी कविता "ई- पार्क" का आनंद उठायें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ !!
मौन की भाषा सबसे सशक्त होती है, पर शर्त यह है कि सामने वाला उतना समझदार भी हो।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सही कहा आपने एक़ चुप सौ को हराये ळडाई न करके चुप रह कर हम अधिक असर कर सकते हैँ हार कर भी जीत सकते हैँ
चुप्पी वह भी माँ की सबसे कठोर शासन है । मैने तो खूब डांट लगाई है बच्चों को ।
namaskar mitr,
aapki saari posts padhi , aapki posts me jo bhaav abhivyakt hote hai ..wo bahut gahre hote hai .. aapko dil se badhai ..
is posts ne ek nayi baat samjhaayi ..
dhanyawad.....
meri nayi kavita " padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
Vijay
chuppi jab bolti hai to man ke parat kholti hai.
bahut achchha sansmaran.
मेरी माँ भी थोड़े बहुत गुस्से में तो दांत लेती थी, पर बहुत गुस्सा होती थी तो चुप हो जाती थी...और दुखी हो जाती थी...उसस गुस्सा तो फिर भी बर्दाश्त हो जाता पर उसका दुखी होना इस तरह तोड़ता था...आत्मा धिक्कारने लगती थी. बड़ी खूबसूरती से तीन पीढियों के दरमियाँ मौन मन रखा है आपने...अच्छा लगा पढ़ कर की आपके घर में सभी के जूते एक ही साइज़ के हैं :)
Bahut khoob likha hai.....rojmarra ki baato ko bahut khoob pash kiya hai aapne.....
माँ का कठोर अनुशासन ही उन्नति का मार्ग प्रशस्त कराता है . भावपूर्ण संस्मरण .
सही है
pad kar mujhe meri galtiyo ki yaad aa rahi hai aur mammi ki chupi...fir vahi ahsaas ho rahaa hai ki kaise woh mujhe har baat samjhati hai..i love u mammi
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