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शनिवार, 10 मई 2008
दिल्ली की गर्मी में माँ के आँचल की शीतल छाया
दिल्ली से कल ही लौटे. टैक्सी घर के सामने रुकी तो छोटा बेटा विद्युत बाहर ही खड़ा था . सामान लेकर अन्दर पहुँचे तो घर साफ-सुथरा पाकर मन प्रसन्न हो गया. एकाध नुक्सान को नज़र अन्दाज़ करना ज़रूरी होता है सो हमने उस ओर ध्यान ही नहीं दिया. बेटे के हाथ की चाय और दिल्ली की मिठाई ने सारी थकान दूर कर दी फिर भी कुछ देर आराम करने बिस्तर पर गए तो चावल पकने की खुशबू से नींद खुली. विद्युत ने चावल बना लिए थे जिसे पिछ्ले दिन की करी मिला कर बिरयानी बना कर परोस दिया. शाम की चाय वरुण ने बनाई. चाय पीकर कितना आनन्द आया बता नही सकते.
फिर शुरु हुआ ब्लॉग जगत का सफ़र जिसमें हम बहुत पीछे छूट गए थे. लिखने की राह पर चलने का उतना मज़ा नहीं जितना पढने का आनन्द आता है. फिर भी लिखने की लहर मन में आते ही लिख भी डालते हैं.....
अभी अभी कुछ त्रिपदम मन की लहरों से जन्मे........
गर्म हवा में
माँ का स्नेहिल साया
शीतल छाया
भूली मातृत्त्व
माँ की ममता पाई
बस बेटी थी
आज मैं लौटी
फिर से माँ बनके
प्यार लुटाती
ब्लॉग जगत
लगे परिवार सा
पाया फिर से
पढ़ना भाए
लिखना भूली जैसे
अनोखी माया
दिल्ली सफ़र
दर्ज करूँगी फिर
मनमर्जी से
मनमौजी मैं
लिखूँ पढूँ इच्छा से
मदमस्ती में
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11 टिप्पणियां:
दिल्ली सफ़र
दर्ज करूँगी फिर
मनमर्जी से
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जरूर से दर्ज कीजियेगा सफरनामा।
आप के मुंबई सफरनामे की तरह दिल्ली सफरनामे का भी हम लोग इंतज़ार करेंगे। शीर्षक से लगा कि आप शायद दिल्ली में मिली मातृ-छाया की बात करेंगी....लेकिन आप ने तो और भी इतने क्रियेटिव स्टाईल में अपनी पोस्ट पेश की मजा आ गया। मुझे तो बस यही मलाल है कि काश, मैं भी बढ़िया बढ़िया हिंदी की कवितायें लिख पाऊं....लेकिन यह असंभव लगता है।
हो गई आपकी दिल्ली यात्रा :) हम तो आपकी राह ही देखते रह गए ..इंतज़ार रहेगा आपकी इस यात्रा वर्णन का !!
माँ के आँचल के अलावा और कहाँ मिलेगा चैन
दुआ भरी रहती उसमें बच्चों के लिये दिन रैन
welcome back meenakshi ji,haiku bahut hi sundar hai,delhi ke safar ke bare mein jarur batana,intazaar hau,maa ka anchal to dandhi chaya hai.
waah! waah! waah! bahut hi sundar haiku..
व्याकुल मन
ढ़ूढ़ा किये हम
दीदी गुम
वेल्कम बैक दीदी-
मिनाक्षी जी
मुझे याद है आप ने मेरी पोस्ट की गयी ग़ज़ल के इस शेर पर टिपण्णी की थी :
जीवन जीना सिखलाती है
माँ की लोरी पप्पी बातें
जिसमें आप ने लिखा था की आप माँ से मिलने देल्ही आ रही हैं. हमें भी बताईये न कैसे चरितार्थ हुई वो पंक्तियाँ? माताजी के दर्शन करवा दें फोटो से ही सही तो समझिए सोने पर सुहागा.
नीरज
अरे वाह ! दिल्ली है दिलवालोँ की !:)
आगे की कहानी,
पढने का इँतज़ार है ..
-- लावण्या
bahut sundar haiku
इन्तजार रहेगा आपकी दर्जी का....हम भी ६ माह बाद लौट कर घर साफ मान कर बस गये बहुत सारी अव्यवस्था को नजर अंदाज करते हुए. :)
रचना सुन्दर बन पड़ी है. बधाई...वेलकम बैक टाईप.
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आप हिन्दी में लिखती हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.
शुभकामनाऐं.
समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
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