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सोमवार, 24 मार्च 2008

अपने ममता भरे हाथों से ....!



















(सन्ध्या के समय समुन्दर के किनारे बैठे बेटे विद्युत ने तस्वीर खींच ली,  
और हमने अपनी कल्पना में एक शब्द चित्र बना लिया. )







ममता भरे हाथों से सूरज को
वसुधा ने नभ के माथे पर सजा दिया

सजा कर चमचमाती सुनहरी किरणों को
साँवला सलोना रूप और भी निखार दिया

सागर-लहरें स्तब्ध सी रूप निहारने लगीं
यह देख दिशाएँ मन्द मन्द मुस्काने लगीं

गगन के गालों पर लज्जा की लाली सी छाई
सागर की आँखों में जब अपने रूप की छवि पाई

स्नेहिल-सन्ध्या दूर खड़ी सिमटी सी, सकुचाई सी
सूरज की बिन्दिया पाने को थी वह अकुलाई सी

रंग-बिरंगे फूलों का पलना प्यार से पवन झुलाए
हौले-हौले वसुधा डोले और सोच सोच मुस्काए

धीरे-धीरे नई नवेली निशा दुल्हन सी आएगी
अपने आँचल में चाँद सितारे भी भर लाएगी.

9 टिप्‍पणियां:

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सुंदर, चित्र भी और शब्दचित्र भी!!

अजित वडनेरकर ने कहा…

सुंदर शब्द चित्र...

art ने कहा…

bahut sundar meenaxi di

art ने कहा…

bahut sundar meenaxi di

बेनामी ने कहा…

bahut hi sundar

अमिताभ मीत ने कहा…

शब्द चित्र भी बहुत सुंदर है.

सुनीता शानू ने कहा…

वाह तस्वीर तो है ही खूबसूरत और उस पर यह रचना...क्या कहने...:)

Pankaj Oudhia ने कहा…

सूरज का ऐसा चित्र कोई विद्युतीय व्यक्तित्व ही खीच सकता है। बढिया वाटरमार्क लगाया है। लिखा तो खैर हमेशा की तरह अच्छा ही है।

बेनामी ने कहा…

maan prafullit ho gaya meenaxig


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