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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007

मीरा राधा की राह पे चलना

पवन पिया को छू कर आई
पहचानी सी महक वो लाई.

गहरी साँसें भरती जाऊँ
नस-नस में नशा सा पाऊँ.

पिया प्रेम का नशा अनोखा
पी हरसूँ यह कैसा धोखा.

पिया पिया का प्रेम सुधा रस
मीत-मिलन की जागी क्षुधा अब.

सजना को देखूँ सूरज में
वो छलिया बैठा पूरब में.

चंदा में मेरा चाँद बसा है
घर उसका तारों से सजा है.

मेघों में मूरत देखूँ मितवा की
घनघोर घटा सी उनमें घुल जाऊँ.

पिया मिलन की प्यास जगी है
दर्शन पाने की आस लगी है.

मीरा राधा की राह पे चलना
जन्म-जन्म अभी और भटकना !!

ना मैं धन चाहूँ ना रतन चाहूँ

7 टिप्‍पणियां:

Pankaj Oudhia ने कहा…

पूरी कविता अच्छी लगी पर ये पक्तियाँ
विशेष रूप से अच्छी लगी।

मेघों में मूरत देखूँ मितवा की
घनघोर घटा सी उनमें घुल जाऊँ.

मृत्युंजय कुमार ने कहा…

मीरा राधा की राह पर चलना आसान नही है। कबीर ने भी कहा है कि प्रेम न बाड़ी उपजै। प्रेम न हाट बिकाय।। राजा परजा जेहि रुचै। शीशी देई लेई जाए।। मेघों में मित्र की मूरत तो मित्र ही देख सकता है।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

मीरां का मार्ग समझना मेरे लिये सदैव बहुत कठिन रहा है। पर समझने की उत्कण्ठा है और तीव्रतर हो रही है समय के साथ।
आपकी पोस्ट ने यह अहसास एक बार पुन: ताजा किया। धन्यवाद।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर

Sanjay Karere ने कहा…

मीरा और राधा की राह.... बहुत कठिन डगर है वह. और उस पर चलने की चाह.... बहुत ही सुंदर कविता. उतना ही सुंदर गीत.
मीनाक्षी जी क्‍या आप मुझे इस प्‍लेयर को डाउनलोड करने का लिंक ईमेल कर सकती हैं? इस्‍तेमाल करना चाहता हूं. धन्‍यवाद

सागर नाहर ने कहा…

मीरा कृष्ण की दीवानी थी और मैं मीरा का.. बस और आगे शब्द खो गये हैं।
हमारी श्रीमतीजी ने मीरा के भजनो पर एक ब्लॉग भी बनाया था पर अब वे नहीं लिख पा रही।
मीरा बाई के भजन

मीनाक्षी ने कहा…

आप सब का धन्यवाद. पंकज जी , मेरी भी वही प्रिय लाइनें हैं, मृत्युंजय जी,कठिन तो है लेकिन असम्भव नहीं. ज्ञान जी, मीरा जैसे प्रेम में दीवाना होना पड़ेगा तो ही समझा जा सकता है शायद. संजय जी, संजीत जी ने मुझे lifelogger.com पर जाने की सलाह दी थी अब आप लाभ उठाइए. धन्यवाद संजीत जी. नाहर जी, निर्मला जी ब्लॉग तो बहुत बढ़िया है. उन्हें हमारी तरफ से विनती कीजिए कि नए साल में फिर से उसे शुरु करें.