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मंगलवार, 25 दिसंबर 2007

हाईबर्नेशन की अवस्था में ही सभी पर्वों पर शुभकामनाएँ !

when christmas comes to town




एक बार हाइब्रेशन की अवस्था में जाने पर शीत ऋतु में बाहर आने में एक सिहरन सी होती है. एक हफ्ता क्या बीता जैसे हम ब्लॉगजगत की गलियाँ ही भूल गए. बदहवास से इधर उधर देख पढ़ रहे हैं. "एक शाम ...ब्लागिंग का साइड इफेक्ट....नये रिश्तों की बुनियाद बन चुकी थी।" शत प्रतिशत सच है.
सोचा नहीं था कि हमारी मुलाकात को बेजी इतने सुन्दर रूप में यादगार पोस्ट बना देगीं.पोस्ट पढ़कर तो आनन्द आया ही...टिप्पणियाँ पढ़कर आनन्द चार गुना और बढ़ गया. सोचने लगे कि हम इसी ब्लॉग परिवार का हिस्सा हैं और यह सोचकर अच्छा लगने लगा.
उस शाम के बाद हम पतिदेव विजय और उनके छोटे भाई की मेहमाननवाज़ी में जुट गए जो साउदी से ईद की छुट्टियाँ मनाने आए थे. इस बार ईद पर छोटे भाई साहब के कारण शाकाहारी व्यंजन परोसे गए नहीं तो कबाब और बिरयानी के बगैर ईद मनाने का मज़ा कहाँ !
ईद के बाद ईरानी परिवार के साथ ऑनलाइन चैट करके शब ए याल्दा मनाई गई. इस रात को सबसे लम्बी रात माना जाता है. इस रात दिवान ए हाफिज़ पर चर्चा होती है और उसी किताब से ही अपना फाल निकाला जाता है बस इतना ही मालूम है. एक शब ए याल्दा हम ईरान में बिता चुके हैं जिसकी मधुर यादें आज भी मस्ती में डुबो देती हैं. हमारे मित्र अली के बिज़नेस पार्टनर मुहन्दिस ज़ियाबारी हाफिज़ पर बहुत अच्छा बोलते हैं लेकिन फारसी में. अली और उनकी पत्नी लिडा बारी बारी से अंग्रेज़ी में बताते हैं. धीरे धीरे सुनने पर फारसी भी कुछ कुछ समझ आ ही जाती थी.
खुशियाँ लेकर क्रिसमस आया. मित्रों को बधाई देते हुए विजय अपने भाई को एक हफ्ते में दुबई की सैर भी करवाना चाहते थे सो हम भी उनका साथ देते हुए घूमते रहे पर दिमाग में ब्लॉग घूम रहे थे जिन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा था.
अब जाकर कुछ समय निकाल पाए हैं कि वापिस आभासी दुनिया में लौटा जाए.
नए साल में जाने से पहले पिछले साल को अलविदा करते हुए उसे कुछ देने की चाह....
विदाई का तोहफा !
क्या तोहफा दिया जाए हम इस सोच में डूबे हैं.
आप क्या कहते हैं !!!!

लब पे आती है दुआ ... !

9 टिप्‍पणियां:

G Vishwanath ने कहा…

हाईब्रेशन?
आप शायद हाईबर्नेशन कहना चाह्ती थी।
जो भी हो, चिट्ठाजगत में आपका फ़िर से सक्रिय होना खुशी की बात है।
आवाज मधुर है।
क्या यह आपकी आवाज थी?
शुभकामनाएं।
G विश्वनाथ

Sanjay Karere ने कहा…

चलिए hibernation से बाहर आने और यह मधुर गीत सुनाने का शुक्रिया. विश्वनाथ के सवाल का जवाब मैं भी जानना चाहूंगा. आपकी कोई ऑडियो पोस्‍ट पहले सुनी है... संदर्भ याद नहीं आ रहा. शुभकानाओं से अच्‍छा कोई तोहफा नहीं हो सकता.

मीनाक्षी ने कहा…

विश्वनाथ जी बहुत बहुत शुक्रिया अशुद्ध वर्तनी बताने के लिए..वर्तनी शुद्ध कर दी है.
जी नहीं, यह आवाज़ मेरी नहीं है.. पर हाँ संजय जी शायद आपने मेरी आवाज़ मेरे पॉडकास्ट पर सुनी होगी.. कुछ समय बाद फिर उस पर बच्चों के लिए पोस्ट करना है.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

हाइबरनेशन में कैसे जाया जाये - इस पर ही लिख दें। यहां तो दफ़्तर का फोन झपकी भी नहीं लेने देता - दीर्घनिद्रा तो दूर रही!

पारुल "पुखराज" ने कहा…

वेल कम बैक दी,ये गीत पहले भी सुना है मगर आप्की पोस्ट पढ्ते हुए ये गीत किसी पाक दुनिया मे ले गया मुझे…इस अहसास का बहुत शुक्रिया

मीनाक्षी ने कहा…

ज्ञान जी, आपको दफ्तर का फोन चैन नहीं लेने देता मुझे घर के उत्तरदायित्त्व .. यहाँ हाइबरनेशन को मै एक और रूप में देख रही हूँ जहाँ कबूतर की तरह आँख बन्द की गई या शुतुरमुर्ग की तरह ज़मीन में सिर डाल दिया...कुछ देर के लिए कुछ कामों को भुलाने का प्रयास मात्र......
पारुल बहुत बहुत धन्यवाद, ऐसा प्यार पाकर कौन इस जगत से ज़्यादा दिन दूर रह सकता है...

बेनामी ने कहा…

हाइबरनेशन शब्द की जानकारी उदाहरण सहित मिलने पर हुई ज्ञान की वृद्धि .बढ़ गई बुद्धि.

ज्ञान जी आपको सिर्फ फोन ही जगाता है या निवास के समानांतर बिछी हुई पटरियों पर दौड़ रही रेलगाड़ियां भी जो मन की रफ्तार से दौड़ रही होती है,
कोलाहल मचाती हुई,
सीटी बजाती हुई,
मन में आ रहे शब्दों को दोहराती हुई।

रही जाते साल को विदाई का तोहफा देने की बात तो ब्लॉगिंग में आने वाले साल सक्रिय बने रहने से अधिक मूल्यवान तोहफा बीते साल के लिए और कोई हो ही नहीं सकता।

हम सबको और अधिक सक्रिय होकर जुटे रहना है।
सच कहूं तो दफ्तर का फोन, घर के उत्तरदायित्व, समय की कमी, घनघोर व्यस्तताएं इत्यादि इत्यादि जैसी बाजियों को भी अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है।

जैसे चलती है रेल,
वैसे ही चलते रहना है,
चाहे बिलंब से ही सही,
पर चलते रहना है,
जैसे चलता रहता है मन।
रोज आ जाता है आने वाला कल।
बढ़ते रहना है।
उन्नति के सोपानों पर विजयी होना है।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

मेरी टिप्पणी बगैर मेरे नाम के कैसे चली गई। आश्चर्य।

हाइबरनेशन शब्द की जानकारी उदाहरण सहित मिलने पर हुई ज्ञान की वृद्धि .बढ़ गई बुद्धि.

ज्ञान जी आपको सिर्फ फोन ही जगाता है या निवास के समानांतर बिछी हुई पटरियों पर दौड़ रही रेलगाड़ियां भी जो मन की रफ्तार से दौड़ रही होती है,
कोलाहल मचाती हुई,
सीटी बजाती हुई,
मन में आ रहे शब्दों को दोहराती हुई।

रही जाते साल को विदाई का तोहफा देने की बात तो ब्लॉगिंग में आने वाले साल सक्रिय बने रहने से अधिक मूल्यवान तोहफा बीते साल के लिए और कोई हो ही नहीं सकता।

हम सबको और अधिक सक्रिय होकर जुटे रहना है।
सच कहूं तो दफ्तर का फोन, घर के उत्तरदायित्व, समय की कमी, घनघोर व्यस्तताएं इत्यादि इत्यादि जैसी बाजियों को भी अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है।

जैसे चलती है रेल,
वैसे ही चलते रहना है,
चाहे बिलंब से ही सही,
पर चलते रहना है,
जैसे चलता रहता है मन।
रोज आ जाता है आने वाला कल।
बढ़ते रहना है।
उन्नति के सोपानों पर विजयी होना है।

अजय कुमार झा ने कहा…

chitthakari karne kaa ek labh ye hua hai ki aap jaise bade saahitya hastaakshron se mulaaqaat ho gayee.