कल
माँ की सुन पुकार मैं उठ जाती
चूल्हा सुलगाती भात बनाती
ताप से मुख पर रक्तिम आभा छाती
मुस्कान से सबका मन मैं लुभाती !
चूल्हा सुलगाती भात बनाती
ताप से मुख पर रक्तिम आभा छाती
मुस्कान से सबका मन मैं लुभाती !
माँ की मीठी टेर सुनाई देती
झट से गोद में वह भर लेती
जैसे चिड़िया अंडों को सेती !
लोरी से आँखों में निन्दिया भर देती !
नन्हे भाई का रुदन मुझे तड़पाता
मन मेरा ममता से भर जाता
नन्हीं गोद मेरी में भाई छिप जाता
स्नेह भरे आँचल में आश्रय वह पाता !
सोच सोच के नन्हीं बुद्धि थक जाती
क्यों पिता के मुख पर आक्रोश की लाली आती
क्रोध भरे नेत्रों में जब स्नेह नहीं मैं पाती
मेरे मन की पीड़ा गहरी होती जाती !
आज
मेरी सुन पुकार वह चिढ़ जाती
क्रोध से पैर पटकती आती
मेरी पीड़ा को वह समझ न पाती
माँ बेटी का नाता मधुर न पाती !
स्वप्न लोक की है वह राजकुमारी
नन्हीं कह मैं गोद में भरना चाहती
मेरा आँचल स्नेह से रीता रहता
उसका मन किसी ओर दिशा को जाता !
भाई की सुन पुकार वह झुँझलाती
तीखी कर्कश वाणी में चिल्लाती
पश्चिमी गीत की लय पर तन थिरकाती
करुण रुदन नन्हें का लेकिन सुन न पाती !
पढ़ना छोड़ पिता के पीछे जाती
प्रेम-भरी आँखों में अपनापन पाती
पिता की वह प्रिय बेटी है
कंधा है , वह मनोबल है !
माँ की सुन पुकार मैं उठ जाती थी
मेरी सुन पुकार वह चिढ़ जाती है
कल की यादें थोड़ी खट्टी मीठी थी
आज की बातें थोड़ी मीटी कड़वी हैं !
14 टिप्पणियां:
समय के साथ ऐसा अन्तर आया है? वाकई? बड़ा अच्छा लगा जी आपकी यह पोस्ट पढ़ कर अनुभव किया। याद रहेगा।
मैं अपनी पत्नी और बिटिया से यह अन्तर जानने का यत्न करूंगा।
मां की टेर.. कितना सुंदर है यह शब्द. एक सच्चाई को आपके शब्दों ने सहज ढंग से व्यक्त कर दिया. दो पीढियों का अंतरविरोध.. प्रभावी वर्णन.
कल और आज के हालात में मनोभावों को उकेरती सुन्दर कविता...
ज्ञान जी , मेरे दो बेटे हैं लेकिन बेटी की चाहत कल्पनालोक में ले जाती है.
पर्यानाद जी, माँ की टेर सात समुन्दर पार भी सुनाई दे जाती है.
धन्यवाद राजीव जी... अक्सर ऐसा देखने में भी आता है आजकल..
बहुत सुन्दर लिखा ।समझ सकती हूँ ।कई बार इन्हीं
अनुभूतियों से गुजरी हूँ।
बहुत सुंदर!! दो पीढ़ियों में मनोभावों के अंतर को बहुत ही सरलता से शब्दों में उकेर दिया है आपने!!
अपने होने का बोध बढ़ा है। लेकिन प्यार भी बढ़ा है। इंसान पहले से ज्यादा व्यक्ति और संपूर्ण बना है। छोटी सी कविता में इतनी बड़ी बात। लगता है कोई लेख पढ़ लिया हो।
माँ की सुन पुकार मैं उठ जाती
चूल्हा सुलगाती भात बनाती
ताप से मुख पर रक्तिम आभा छाती
मुस्कान से सबका मन मैं लुभाती ……बहुत सुन्दर लयात्मक पंक्तियां………बहुत सुन्दर भाव दी,परिवर्तन हुआ है……सो लड़कियों की मन: स्तिथि भी बदली है
यही है समय का फेर....अच्छा फर्क समझाया कविता के माध्यम से..
आज ओर कल में आए इस परिवर्तन को आपकी लेखनी के माध्यम से देखना अच्छा लगा।
अरे ये तो लगता ही नही कि किसी बेटों की माँ ने लिखी है रचना, ये सच आपने कैसे जान लिया?सुंदर बहुत सुंदर!
मेरे दिल कि बात कह दी आपने जैसे इस में .बहुत दिल को छूने वाली रचना है
BAHUT KHOOB
bus main kya kahon ....
ise mahasus hi ya ja sakata ha.
maine bhi blog post karana suru kiya ha . please visit...
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