अभी तो सूरज दमक रहा है. दिन अलस जगा है.
चंदा के आने का इंतज़ार अभी से क्यों लगा है !
बस उसी चंदा के ख्यालों में मेरा मन रमा है
नभ की सुषमा देखने का अरमान जगा है !
कविता के सुन्दर शब्दो का रूप सजा है
अब ब्लॉगवाणी पर पद्य मेरा हीरे सा जड़ा है !
नील गगन के नील बदन पर
चन्द्र आभा आ छाई !
ऐसी आभा देख गगन की
तारावलि मुस्काई !
नभ ने ऐसी शोभा पाई
सागर-मन अति भाई !
कहाँ से नभ ने सुषमा पाई
सोच धरा ने ली अँगड़ाई !
रवि की सवारी दूर से आई
उसकी भी दृष्टि थी ललचाई!
घन-तन पर लाली आ छाई
घनघोर घटाएँ भी सकुचाईं !
नील गगन के नील बदन पर
रवि आभा घिर आई !
ऐसी आभा देख गगन की
कुसुमावलि भी मुस्काई !
नील गगन के नील बदन पर
चन्द्र आभा आ छाई !
20 टिप्पणियां:
समयानुकूल बहुत सुंदर
तम को भगाए
प्रिय को लाए
चांद ऐसा करो जंतर।
सुंदर रचना
सुंदर
सच कह रहा हूँ . अच्छा लगा
बहुत प्यारा लिखा है। आज के दिन चिट्ठों की नगरी में चाँद की बातें खूब आकर्षक कर रही हैं। करवाचौथ की बधाई।
बढिया रचना है।बधाई।
करवाचौथ की बधाई, dii bahut sundar paktiyaan....sach me aaj chandaa bahut satayegaa.suna hai hamarey yahan 8 bajey chamkegaa..aapkey yahan kab aayegaa?
वाह जी, करवाचौथ की बधाइ हो आपको.
आभारी हैं हम आपके
इतना स्नेह पाके !
आए मंगल जीवन मे आपके
प्रभु से यही दुआ हम माँगते !
Basant Arya said...
सच कह रहा हूँ . अच्छा लगा --- पहली बार आपकी टिप्पणी मिली .ज़रा विस्तार से समझाइए . अच्छा लगा भी कहते तो समझ आ जाता. या फिर कुछ झूठ भी है ...! :)
हर एक स्थिति को आप ही कविता का आयाम दे सकती हैं… और सत्य यही एक कवि की निशानी है…
मैं जब भी आपकी कविता पढ़ता हूँ लगता है कल्पना की एक अस्पष्ट उड़ान में उड़ते हुए अंत तक साक्ष्य मिलने लगते हैं।
दिव्यभ जी !
आपने तो हमें उड़ने के लिए पंख दे दिए. बहुत बहुत धन्यवाद !
मौन मेरा मुखरित हुआ ब्लॉग वाणी पाकर
प्रफुल्लित हुआ मन मेरा प्रशंसा आपकी पाकर !!
करवा चौथ की वजह से थी क्या ये चांद दर्शन की ललक ? कविता सुंदर है ।
लेट ही सही; करवा चौथ की बधाई।
ज्ञान जी, अनुभव होता है कि लिखने पढ़ने वालों के दिल के तार जुड़े होते हैं. टिप्पणी मिली तो बहुत अच्छा लगा , न मिलती तो भी आपके आस पास होने का आभास रहता है.
बहुत बहुत शुक्रिया !
कल 21/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
Are waah!!...yaswant ji ne to samay yaan par teen saal pahle ki yaatra kara di.
Is anupam post ke liye badhai
aur badhai unhe bhi jinke liye. Aap is vrat ko rakhane ke loye prerit hui.
bahut sundar
बहुत सुन्दर समयानुकूल रचना...
सादर बधाई...
@यशवंतजी...पुराने पन्नों को ताज़ी हवा दिखाने के लिए शुक्रिया...
@शुक्लाजी...शुक्रिया...करवाचौथ का संयोग था वैसे प्रकृति के हर रूप से प्रेम अनायास कविता का रूप ले लेता है...
@अना...शुक्रिया
@संजयजी...शुक्रिया...
वाह ...बहुत खूब ।
एक टिप्पणी भेजें