काले बुरके से झाँकतीं कजरारी आँखें
कुछ कहती, बोलती सी सपनीली आँखें !
कभी कुछ पाने की बहुत आस होती
कभी उन आँखों में गहरी प्यास होती !
बहुत कुछ कह जातीं वो कजरारी आँखें
काले बुरके से झाँकतीं सपनीली आँखें !
कभी रेगिस्तान की वीरानगी सी छाती
कभी उन आँखों में गहरी खोमोशी होती !
कभी वही खामोशी बोलती सी दिखती
बोलती आँखें खिलखिलाती सी मिलतीं !
7 टिप्पणियां:
सुंदर रचना!!
"कभी कुछ पाने की बहुत आस होती
कभी उन आँखों में गहरी प्यास होती !"
बहुत बढ़िया!!
बहुत कुछ कह जातीं वो कजरारी आँखें
काले बुरके से झाँकतीं सपनीली आँखें!
-अति सुन्दर. कविता जल्दी खत्म हो गई. :)
अच्छा लगा ।
कविता बहुत अच्छी है। पर बुर्के में खिलखिलाहट होती है या घुटन? कौन बतायेगा?
आँख ही तो जीवन है…
जो अव्यक्त भी होता है वह आँखों में हमेशा व्यक्त रहता है…।
अच्छी कविता!
बुरके में फंसी आंखे तो, शायद सपने भी ठीक से नहीं देख पाती होंगी?
अच्छी रचना है
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