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रविवार, 14 अक्टूबर 2007

कजरारी आँखें


काले बुरके से झाँकतीं कजरारी आँखें

कुछ कहती, बोलती सी सपनीली आँखें !


कभी कुछ पाने की बहुत आस होती

कभी उन आँखों में गहरी प्यास होती !


बहुत कुछ कह जातीं वो कजरारी आँखें

काले बुरके से झाँकतीं सपनीली आँखें !


कभी रेगिस्तान की वीरानगी सी छाती

कभी उन आँखों में गहरी खोमोशी होती !


कभी वही खामोशी बोलती सी दिखती

बोलती आँखें खिलखिलाती सी मिलतीं !