
काले बुरके से झाँकतीं कजरारी आँखें
कुछ कहती, बोलती सी सपनीली आँखें !
कभी कुछ पाने की बहुत आस होती
कभी उन आँखों में गहरी प्यास होती !
बहुत कुछ कह जातीं वो कजरारी आँखें
काले बुरके से झाँकतीं सपनीली आँखें !
कभी रेगिस्तान की वीरानगी सी छाती
कभी उन आँखों में गहरी खोमोशी होती !
कभी वही खामोशी बोलती सी दिखती
बोलती आँखें खिलखिलाती सी मिलतीं !