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गुरुवार, 15 अक्टूबर 2020
सोमवार, 18 मई 2020
ताउम्र भटकना
आज भी माँ कहती है-
“बेटी, कल्पनालोक में विचरण करना छोड़ दे,
क्रियाशील हो जा, ज़िन्दगी और भी खूबसूरत दिखेगी”
और मैं हमेशा की तरह सच्चे मन से माँ से ही नहीं
अपने आप से भी वादा करती हूँ
कि धरातल पर उतर कर
ज़िन्दगी के नए मायने तलाश करूँगीं
लेकिन ये तलाश कहाँ पूरी होती है.
ताउम्र चलती है और हम भटकते हैं
हर पल इक नई राह पर चल कर
जाने क्या पाने को....
शुक्रवार, 15 मई 2020
बुधवार, 13 मई 2020
पुस्तक से ब्लॉग तक - अनमोल वचन
एक पुस्तक प्रेमी पाठक का कहना था - दूरदर्शन तो आँख को टिकने नहीं देता, किताब की पंक्ति पर तो आँखें रुक सकती हैं , पीछे पलट कर देख सकती हैं , पढ़ते पढ़ते आँखें नम हो जाए तो किताब तो प्रतीक्षा कर सकती है, दूरदर्शन यंत्र कहाँ करेगा...
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साहित्य देश को गति देता है, उसे जीवन्त बनाने की कोशिश करता है. लेकिन आज के पाठयक्रम में साहित्य
का स्थान नगण्य है, है भी तो कोई पढ़ने वाला नहीं, पढ़े पढाए क्यों..... साहित्य से तो जीवन चलता नहीं, साहित्य तो अब मनोरंजन भी नहीं है.
साहित्य का मनोरंजन योग्य पदार्थ श्रव्य - दृश्य संचार साधनों ने गहरी हंडिया में पका कर भपके से खींच लिया है. मेरा विचार है साहित्य के प्रति चाव अभी भी है, विरल हो ...यह अलग बात है.
किताब की दुकान पर जब लोगो को नई किताब खोजते हुए देखो तो लगता है कि साहित्य के प्रति चाव संस्कार अभी बना हुआ है...
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पुरुस्कार की कामना
जो कुछ तुम करो, उसके लिए किसी प्रकार की प्रशंसा अथवा पुरुस्कार की आशा मत रखो. ज्यों ही हम कोई
सत कार्य करते हैं, त्यों ही हम उसके लिए प्रशंसा की आशा करने लगते हैं . ज्यों ही हम किसी सत कार्य में
चन्दा देते हैं त्यों ही हम चाहने लगते हैं कि हमारा नाम अखबारों मे खूब चमक उठे... ऐसी कामनाओं का फल दुख के अतिरिक्त और क्या होगा.
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इसमें सन्देह नहीं कि 'करने' की अपेक्षा 'कहना' अत्यंत सरल होता है परंतु जो 'कहना' छोड़ कर 'करने' में जुट
जाते हैं ऐसे व्यक्ति इतिहास के उज्ज्वल हस्ताक्षर बन जाते हैं.
इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए संत कबीर ने कहा है ----
" कथनी मीठी खाँड सम , करनी विष की लोय
कथनी छड़ करनी करे, विष से अमृत होए !! "
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रविवार, 26 जनवरी 2020
गणतंत्र दिवस २०२०
देश विदेश में रहने वाले सभी भारतवासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देश के अंंदर बाहर तैनात जवानों और शहीदों के परिवाजनों को नत मस्तक प्रणाम
बुधवार, 6 जून 2018
अनायास
आभासी दुनिया में ब्लॉग जगत की अपनी अलग ही खूबसूरती है जो बार बार अपनी ओर खींचती है
अनायास..
अनायास..
पुरानी यादों का दरिया बहता
चट्टानों सी दूरी से जा टकराता
भिगोता उदास दिल के किनारों को
अंकुरित होते जाते रूखे-सूखे ख़्याल
अतीत की ख़ुश्क बगिया खिल उठी
और महक उठी छोटी-छोटी बातों से
यादों के रंग-बिरंगे फूलों की ख़ुशबू से
मेरी क़लम एक बार फिर से जी उठी
बेताब हुई लिखने को मेरा इतिहास
भुला चुकी थी जिसे मैं
या भूलने का भ्रम पाला था
शायद !!
शनिवार, 1 जुलाई 2017
अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस
ब्लॉग जगत के सभी मित्रों को प्रणाम ! यहाँ सक्रिय होने का प्रयास सफल हो यही कामना है. इस कोशिश में शामिल होते हुए कुछ यादों को आज के दिन बाँटने का चाह जागी. इसमें कोई दो राय नहीं कि आभासी दुनिया में फेसबुक ने ब्लॉग जगत को पीछे छोड़ दिया है. ब्लॉगर ऐसा है जिसे ब्लॉग जगत से मोह है तो फेसबुक का आकर्षण भी कम नहीं. मैं अपनी बात करती हूँ न मैं ब्लॉग जगत में सक्रिय हूँ न ही फेसबुक पर लेकिन साथ जुड़े रहने की चाह दोनों से ही विदा नहीं लेने देती.
जनवरी २०१७ दिल्ली के पुस्तक मेले में जाने का पहला मौका और उस पर कई ब्लॉगर मित्रों से रूबरू मिलना बेहद खुबसूरत रहा. ब्लॉग में लिखने का टलता रहा हालांकि कुछ छोटे छोटे ड्राफ्ट्स हैं जिन्हें as it is पोस्ट किया जा सकता था लेकिन आलस शायद हाँ यही एक कारण है कि लिखने का काम रह जाता है. पढ़ कर उसका जवाब मन ही मन में सोच कर ही तसल्ली हो जाती. एक और कारण भी है. पढने में ही वक़्त ख़त्म हो जाता है और फिर असल जिंदगी के काम शुरू हो जाते वैसे भी सोचा कराती हूँ किसे फुर्सत है मेरे लिखे को पढने का.
खैर यादगार पल थे पहली बार दिल्ली के पुस्तक मेले में जाना और अपने प्रिय ब्लॉगर मित्रों से रूबरू मिलना. फेसबुक पर भी कुछ यादें दर्ज हुई हैं लेकिन अपने ब्लॉग में सहेजने का मज़ा भी अलग है. आज ब्लॉग दिवस पर एक पोस्ट सबके नाम --
विश्व पुस्तक मेले में पहला दिन

#हिंदी_ब्लॉगिंग
जनवरी २०१७ दिल्ली के पुस्तक मेले में जाने का पहला मौका और उस पर कई ब्लॉगर मित्रों से रूबरू मिलना बेहद खुबसूरत रहा. ब्लॉग में लिखने का टलता रहा हालांकि कुछ छोटे छोटे ड्राफ्ट्स हैं जिन्हें as it is पोस्ट किया जा सकता था लेकिन आलस शायद हाँ यही एक कारण है कि लिखने का काम रह जाता है. पढ़ कर उसका जवाब मन ही मन में सोच कर ही तसल्ली हो जाती. एक और कारण भी है. पढने में ही वक़्त ख़त्म हो जाता है और फिर असल जिंदगी के काम शुरू हो जाते वैसे भी सोचा कराती हूँ किसे फुर्सत है मेरे लिखे को पढने का.
खैर यादगार पल थे पहली बार दिल्ली के पुस्तक मेले में जाना और अपने प्रिय ब्लॉगर मित्रों से रूबरू मिलना. फेसबुक पर भी कुछ यादें दर्ज हुई हैं लेकिन अपने ब्लॉग में सहेजने का मज़ा भी अलग है. आज ब्लॉग दिवस पर एक पोस्ट सबके नाम --
विश्व पुस्तक मेले में पहला दिन

#हिंदी_ब्लॉगिंग
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