(करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान - और अगर अभ्यास ही न रहे तो सिल पर निसान कैसे पड़े. कल ऊपर लिखी कविता को रीपोस्ट करते हुए पुरानी पोस्ट को खो दिया था जिसे ढूँढने का रास्ता(गूगल) शुक्लजी ने बताया जिसे हम हमेशा से ही इस्तेमाल करते हैं... भूलने की बीमारी हो गई है लेकिन इसे उम्र का तकाज़ा तो कतई नहीं कहेंगे ...हाँ यह कह सकते हैं कि इंसान गलतियों का पुतला है और ताउम्र सीखता रहता है ...उसी दौरान पता ही नहीं चला कि कुछ ऐसा क्लिक हुआ है जो टिप्पणी देने के ऑप्शन को बन्द कर देता है..आज खुद ही ढूँढने की कोशिश की कि कहाँ गलती कर गए...और अंत में टिप्पणी का ऑप्शन खोल ही दिया...)
अपने मन की हलचल को अपने ही ब्लॉग़ के मन से बाँट लेने से बढ़ कर और कोई बात नहीं... अतीत की यादों को कविता में उतारा था कभी... आज कुछ फिर ऐसा हुआ कि उस कविता की याद आ गई सो रीपोस्ट कर रही हूँ .......... !!



