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| वीडियो से ली गई तस्वीर में मनीषजी और दिगम्बरजी |
महीनों या शायद सालों से मिलने की सोच सच में बदली तो खुशी का कोई ठिकाना ही न था.. बहुत दिनों की कोशिश रंग ले ही आई और हमें दिगम्बर नासवा (‘स्वप्न मेरे’) और मनीष जोशी
('हरी मिर्च') से मिलने का मौका मिल ही गया. बस उसी खुशी में उन पलों को तस्वीरों में कैद करना ही भूल गए.
पहले थोड़ा हिचकचाए थे कि घर कई महीनो से बच्चों के हवाले था...दीवारों पर , अल्मारी के शीशे के पल्लों पर तस्वीरें बनी हैं... घर के सभी कोनों में बच्चों का ही सामान दिखाई देता है... इस झिझक को तोड़ा बच्चों ने... याद दिलाया कि आप तो दिखावे में यकीन नहीं करती थी फिर अब क्या हुआ.... आप दोनों ब्लॉग मित्रों को बुलाइए , उन्हें बिल्कुल बुरा नहीं लगेगा क्यों कि सब जानते हैं कि बच्चों से घर घर लगता है.....बच्चों से बात करते करते बस जोश आया और दोनो परिवारों को फोन कर दिया... मिलना तय हुआ 17 जून शुक्रवार ...
मनीषजी और उनकी पत्नी मोना पहले पहुँचे....पहली बार मिलने पर भी लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिले...एक अपनापन लिए मुस्कुराते दो चेहरे सामने थे जिनकी मुस्कान देख कर मन खुश हो गया...उनके हाथ में फूल देख कर तो खुश हुए लेकिन बच्चों के लिए चॉकलेट्स और घर के लिए खुशबू का तोहफा पाकर समझ न पाए कि क्या करें क्या कहें.... कुछ ही देर में दिगम्बर और उनकी पत्नी अनिता भी आ गए...स्वागत में खड़े कभी उन्हें देखते तो कभी उनके लाए तोहफे को... पता नहीं क्यों किसी से उपहार पाकर मन समझ नहीं पाता कि कैसे व्यवहार किया जाए... हाँ देते वक्त कोई मुश्किल नहीं होती... आते ही दिगम्बरजी ने समीरजी की दो पुस्तकें भी थमा दीं (सिर्फ पढ़ने के लिए ली हैं) और भी कई किताबों का लालच दे दिया .. मन ही मन सोच लिया कि अगली बार उन्हीं के घर जाकर उनकी किताबों का संग्रह देखा जाएगा ... वैसे हम सबने ही तय कर लिया कि अगली मुलाकात जल्दी ही होगी...
दिगम्बरजी कुछ संकोची स्वभाव के लगे लेकिन अनिता उनके विपरीत खिलखिलाती सी मिली....
गहरी नदी की धारा सी शांत लेकिन कहीं चंचल लगने वाली मोना के व्यक्तित्व ने जहाँ प्रभावित किया वहीं झरने सी झर झर बहती अनिता के स्वभाव ने मन मोह लिया.... समुद्र की गहराई लिए हुए दो ब्लॉगर कवि धीरे धीरे सहज हो गए और फिर महफिल ऐसी लगी कि मन ने चाहा बस यूँ ही दोनों कवियों का कविता पाठ चलता रहे...
विद्युत को जब पता चला कि कविता पाठ होने वाला है तो एक छोटा सा विडियो कैमरा सोफे पर फिक्स कर दिया ताकि दिगम्बरजी और मनीषजी की कविता रिकॉर्ड कर ली जाए, हालाँकि बाद में डाँट भी खाई कि तस्वीरें लेने का ख्याल क्यों ना आया........खैर दोपहर के खाने के बाद दोनों कवियों की कविता सुनने की माँग हुई तो वरुण का लैपटॉप थमा दिया गया कि अपनी ऑनलाइन ड्यारी (ब्लॉग़) खोलिए और कुछ अपनी पसन्द का सुना दीजिए....हमें सबसे अच्छा यह लगा कि दोनो बच्चे इस दौरान हमारे साथ ही बैठे रहे और कविताओं को न सिर्फ सुना ...उनको समझने की कोशिश भी की.
पढ़ी गई कविताओं के लिंक भी लगा रही हूँ,,,, साथ साथ पढ़ने में शायद कोई रुचि रखता हो ...
मनीषजी की जीवन साथी कविता वीडियो में दर्ज नहीं हो पाई लेकिन चुहलकदमी और बढ़ते हुए बच्चे का लुत्फ आप ले सकते हैं... उसके बाद उन्होंने लैपटॉप दिगम्बरजी को पकड़ा दिया... उनकी मुक्त छन्द की कविताएँ बच्चों को आसानी से समझ आ रही थी इसलिए रौ में वह पढ़ते गए और सब उसी रौ में सुनते गए ... उफ़ .... तुम भी न नीला पुलोवर बड़ी शिद्दत से अम्मा फिर तुम्हारी याद आती है झूठ
लेकिन मैं झूठ नहीं कहूँगी कि जब भी दोनो कवियों से फिर मिलना होगा उनकी कविताएँ सुनने का मौका नहीं जाने दूँग़ी...!!!





