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सोमवार, 24 मार्च 2008

अपने ममता भरे हाथों से ....!



















(सन्ध्या के समय समुन्दर के किनारे बैठे बेटे विद्युत ने तस्वीर खींच ली,  
और हमने अपनी कल्पना में एक शब्द चित्र बना लिया. )







ममता भरे हाथों से सूरज को
वसुधा ने नभ के माथे पर सजा दिया

सजा कर चमचमाती सुनहरी किरणों को
साँवला सलोना रूप और भी निखार दिया

सागर-लहरें स्तब्ध सी रूप निहारने लगीं
यह देख दिशाएँ मन्द मन्द मुस्काने लगीं

गगन के गालों पर लज्जा की लाली सी छाई
सागर की आँखों में जब अपने रूप की छवि पाई

स्नेहिल-सन्ध्या दूर खड़ी सिमटी सी, सकुचाई सी
सूरज की बिन्दिया पाने को थी वह अकुलाई सी

रंग-बिरंगे फूलों का पलना प्यार से पवन झुलाए
हौले-हौले वसुधा डोले और सोच सोच मुस्काए

धीरे-धीरे नई नवेली निशा दुल्हन सी आएगी
अपने आँचल में चाँद सितारे भी भर लाएगी.

शनिवार, 22 मार्च 2008

बरस बरस बाद आती है होली



(गूगल के सौजन्य से)




यहाँ बोर्ड की परीक्षा का रंग छाया हुआ है जिसमें संगीत का रंग घोल कर होली का आनन्द ले रहे हैं.



बरस बरस बाद , आती है होली ,
आज ना कड़वा बोलो
हमने मन के मैल को धोया
तुम भी क्रोध को धो लो !

मारो भर भर कर पिचकारी
होली का यही मतलब है
रंगे इक रंग दुनिया सारी
होली का यही मतलब है
मारो भर भर कर पिचकारी
मारो भर भर कर पिचकारी

आज के दिन यूँ घुल मिल जाओ
बैर रहे न कोई
नया पुराना , अगला पिछला
बैर रहे न कोई
बढ़े प्यार की, बढ़े प्यार की साझे दारी
होली का यही मतलब है
मारो भर भर कर पिचकारी

आँगन आँगन
आँगन आँगन धूम मचाती
आई है शुभ बेला
नस में, नस नस मे
नस नस में संगीत जगाए
यह रंगों का मेला
खिले जीवन की फुलवारी
होली का यही मतलब है
मारो भर भर कर पिचकारी

जो भी हम से भूल हुई हो
आज उसे बिसरा दो
पश्चाताप सज़ा है खुद ही
और न कोई सज़ा दो
बने दुश्मन
बने दुश्मन भी आभारी
होली का यही मतलब है
मारो भर भर कर पिचकारी

बुधवार, 19 मार्च 2008

शायद आखिरी साँसें हों या जी उठे... या पुर्नजन्म !!

कई दिनों से ब्लॉग़र डॉट कॉम बन्द है, प्रेम ही सत्य है जो अब आखिरी साँसें लेने लगा है. शायद जी उठे...या फिर खत्म हो जाए... हो सकता है पुर्नजन्म हो..कब क्या हो जाए कुछ पता नहीं .. लेकिन विश्वास पर दुनिया टिकी है....
पहले पारिवारिक उत्तरदायित्त्व , यात्राएँ.. अतिथि , फिर कभी ऐसा भी समय आता है जब कुछ कर न पाने की विवशता से मन छटपटाने लगता है....
चिट्ठाजगत , नारद और ब्लॉगवाणी सब खुलते हैं लेकिन मयखाने से सजे ब्लॉग़ अन्दर आने की इजाज़त नहीं देते (ब्लॉग खुलते ही नहीं)... हम भी किसी से कम नहीं...सीधे दरवाज़े से अन्दर आने की अनुमति नहीं तो पीछे के रास्ते से (प्रोक्सी लिंक) से अन्दर घुस जाते हैं. फ्री ऑवरज़ की पीकर चुपचाप खिसक आते हैं बिना टिप दिए... (प्रोक्सी करते हुए टिप्पणी देने का विधान नहीं)
सच में मान लिया कि ब्लॉगिंग का नशा सबसे खतरनाक....
आज तक हर नशे को ठोकर लगाते शान से जीते आए. किसी भी तरह के नशे को अपनी कमज़ोरी नहीं बनने दिया फिर यहाँ......! इस नशे को जीतना अब चुनौती सा बन गया है.... !
अभी अभी एक चमत्कार हो गया... जीमेल के ऑप्शन को क्लिक करने पर डैशबोर्ड खुल गया. जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है, लगे हाथों आ रहे पर्वों की बधाई ही दे दें. आज नहीं तो कल समस्या का समाधान भी मिल जाएगा.
आज ईरानियों की शब ए आखिर है मतलब पुराने साल का आखिरी दिन...कल नूरोज़ यानि नया साल ... साल ए नू मुबारक ... कल मोहम्मद साहब के जन्मदिन की छुट्टी भी है लेकिन कल ही 12वीं के बोर्ड की गणित की परीक्षा भी है.
फिर गुड फ्राइडे का दिन और उसी दिन होली का त्यौहार ...
दुबई में कुछ खास खास जगह पर होली खेली जाती है. बरसों बीत गए होली खेले सो अब फोन और मेल के ज़रिए ही सबको होली की मुबारक दे देते हैं.
सबको होली मुबारक .... रविवार के दिन ईस्टर है...
दुबई में सब त्यौहारों के बारे में पता चल जाता है उसके ठीक विपरीत रियाद में कभी कभी त्यौहार निकल जाने के बाद दोस्तों से पता चलता कि पर्व आया भी और गया भी.

बरसों से होली आए
रंग-बिरंगे सपने लाए.
सूखे रंगों से भीगे तन
प्रेम के रंग में डूबे मन.

पब्लिश बटन को दबाना है, ब्लॉग को व्यू तो कर नहीं सकते.
अब देखना यह है कि यह पोस्ट 'ठिलती' है या नहीं.

(समस्या का समाधान करने वाले दोस्तों को अग्रिम आभार)

शनिवार, 15 मार्च 2008

जल बिन मानव !



त्रिपदम चित्रों में --

जीवन जले
जल बिन मानव
कैसे जिएगा ?







बहता जल
जल से जीवन है
कीमत जानो

बुधवार, 12 मार्च 2008

त्रिपदम (हाइकु) चित्र में







सिहरी काँपीं
आगोश मे सकून
सूरज तापे



(दम्माम में 8-10 क्लिक करने के बाद ही मेरी मन-चाही मन-भावन तस्वीर उतर पाई)

मंगलवार, 11 मार्च 2008

फिर कीबोर्ड पर उंगलियाँ थिरकने लगीं !

आज दस बारह दिन बाद एक बार फिर कीबोर्ड पर उंगलियाँ थिरकने लगीं. कीबोर्ड के मधुर संगीत की स्वर लहरी कानों में ठंडक देने लगी. अलग अलग खुशबू लिए चिट्ठे आँखों के ज़रिए दिल और दिमाग में उतरने लगे. एक नशा सा छाने लगा.
कुछ दिन पहले गले में थोड़ा दर्द और फिर तेज़ बुखार .... हँसी हँसी में बीमार पड़ने की इच्छा की तो सचमुच बीमार पड़ गए. तेज़ बुखार और खाँसी ज़ुकाम की मार अभी एक रात ही भोगी थी कि कनाडा से आई पुरानी सखी ने हमें एक ही रात में खड़ा कर दिया. सोचा था कि 12-13 घंटे की हवाई यात्रा की थकान दूर करके अगले दिन ही मुलाकात होगी लेकिन पुरानी यादों के साथ सीधा ऐयरपोर्ट से हमें मिलने आ पहुँची. पुराने दोस्तों से मिलने की बात ही कुछ अलग होती है. शाल लपेट कर बुखार को छुपाते और निकल पड़ते हम घूमने.... चार पाँच दिन तो दुबई टैक्सी और बिग बस के टूर में निकल गए. पाँच दिन की दवा का कोर्स खत्म होते ही ड्राइविंग शुरु.... दिन में मस्ती और शाम होते होते घर पहुँचते तो बिस्तर पर गिर पड़ते......
इस दौरान हमने सहेली को घुमाते हुए फोटोग्रॉफी की और आराम के दौरान Rhonda Byrne की लिखी 'The Secret' पढ़ने में व्यस्त रहे. कुछ पंक्तियाँ जो मुझे अच्छी लगीं उन्हें जैसे का तैसा अंग्रेज़ी में ही लिख रही हूँ क्योंकि उसी भाषा में ही उसके अर्थ की महत्ता दिख पाएगी.
"You are like a human transmission tower, transmitting a frequency with your thoughts. If you want to change anything in your life, change the frequency by changing your thoughts."

"Your thoughts determine your frequency, and your feelings tell you immediately what
frequency you are on. When you feel bad, you are on the frequency of drawing more bad things. When you feel good, you are powerfully attracting more good things to you."

"Beliefs about aging are all in our minds, so release those thoughts from your consciousness. Focus on health and eternal youth."

"Praise and bless everything in the world, and you will dissolve negativity and discord and align yourself with the highest frequency – love."

कुछ तस्वीरें जो हमने अपनी दोस्त को दुबई घुमाते हुए अपने कैमरे में कैद कीं. दुबई का ही नहीं अरब देश के लोगों का मिलता जुलता यह रूप पुराना है लेकिन खास है... विकास के इस दौर में रेगिस्तान में बद्दू लोग आज भी इसी तरह से रहना पसन्द करते हैं और कुछ तो रह भी रहे हैं.


दुबई म्यूज़िम में बेडरूम में अरबी मज़लिस पर बैठी औरत....


घर के बाहर अक्सर लोग बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाते और सुलेमानी चाय पीते दिखाई देते हैं.

रेगिस्तान में टैंट के बाहर अलाव जलाकर हाथ से बने वाद्य यंत्र बजाते हुए अरबी लोकगीत गाते हैं और सुलेमानी चाय का मज़ा लेते हैं.




दूर रेगिस्तान में टैंट में बद्दू परिवार सभी सुविधाओं के साथ आज भी इसी तरह से रहना पसन्द करता है. आजकल भी 40-50 भेड़-बकरियाँ और ऊँट का मालिक रेगिस्तान में इसी तरह से रहता है.


रमादान के दिनों में ही नहीं बल्कि सर्दी हो या गर्मी हो, हर रोज़ कई किस्म की ताज़ी खजूर इस तरह से बिकती हैं.





शैल से मोती निकालने के औज़ार





गोताखोर अपनी नाव से रस्सी बाँध कर समुद्र में नीचे उतरता है और गोता लगा कर मोती लगे शैल गले में लगी टोकरी में इक्ट्ठे करता है.

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

पलकों में सजी यादें ... ! 2










अनायास ही पलकों में सजी यादें पिछली पोस्ट की ज़मीन पर उतरती चली गईं. पलकों पर सजी कुछ और भी यादें हैं, जो हौले हौले से फिर एक नई पोस्ट की ज़मीन पर उतरने लगीं. कुछ यादें जमी हैं जिन्हें खींच कर निकाला तो कोमल पलकें भी साथ ही उतर आएँगीं. कुछ यादें पलकों पर ही सजी रहती हैं तो कुछ यादें झर जाती हैं...!
साउदी अरब अपने आप में एक खास देश है जहाँ हमने अपनी गृहस्थी शुरु की और खट्टी मीठी यादों का दस्तावेज़ तैयार हुआ. विजय पूरी कोशिश करते कि हमें किसी तरह की कोई कमी महसूस न हो. लेकिन सुविधाओं से सम्पन्न घर होने पर भी धीरे धीरे लगने लगा जैसे मैं सोने के पिंजरे में फड़फड़ाती चिड़िया हूँ जिसके पंख जमते जा रहे हैं. खुले आकाश में उड़ने की लालसा बढ़ने लगी. खिड़की पर पड़े मोटे पर्दों से दम घुटने लगा. धूप के छोटे से टुकड़े को मन तरसने लगा.
विजय ऑफिस के लिए खुद तैयार होते और चुपचाप निकल जाते, बाद में हम माँ बेटे की नींद खुलती. विजय बोलते सुबह उठने की ज़रूरत नहीं लेकिन सोकर भी समय काटो तो कितना....! इत्मीनान से वरुण की देखभाल और घर का कामकाज निपटाते. वरुण के काम, घर की सफाई, खाना पकाना बस... ! बाहर जाने के लिए पति का इंतज़ार.
एक दोपहर विजय ने फोन करके तैयार रहने को कहा कि हमें धूप लगवाने के लिए ले जाने आ रहे हैं. सोचने पर मजबूर हो गए जैसे दाल, चावल या गर्म कपड़ों को धूप लगवाई जाती है वैसे ही हमें भी.... फिर भी घर की चारदीवारी से निकलना नियामत होता. कुछ देर खुले आकाश के नीचे , खुली हवा में साँस लेने का अलौकिक आनन्द,,,,, उस भावना का बखान कैसे करें, शब्द नहीं हैं... सूरज की चमचमाती किरणें बाँहों में भर लेतीं. हवा गालों को थपथपा कर निकल जाती.
घर वापिस लौटते तो वरुण खूब रोता, घर के अन्दर जाने का नाम नहीं. एक बार फिर नज़रबन्द हो जाते. अन्दर घर में कैद और बाहर काले बुरके में कैद कभी उस देश को कोसते तो कभी विजय को. विजय बार बार कहते, "लव इट ऑर लीव इट". सोचने पर मज़बूर हो जाते कि छोड़ना या तोड़ना आसान होता है मतलब विपरीत परिस्थितियों से भाग जाना. छोड़ सकते नहीं थे सो प्यार करना ही शुरु कर दिया. जिसे हम प्यार करना शुरु कर देते हैं तो कुछ भी बुरा नहीं लगता और धीरे धीरे हमें उस देश से प्यार होने लगा जहाँ हमारा परिवार पलता था.
इसी बीच परिवार में एक और नया सदस्य आ गया बेटे विद्युत के रूप में. पड़ोस में रहने वाले अकबर साहब की नई नवेली दुल्हन सलमा आ गई. हमें एक प्यारी सी दोस्त मिल गई. अकबर साहब हैदराबाद के और सलमा लखनऊ की. लखनऊ और हैदराबाद की नौंक झौंक में खूब मज़ा आता. हिन्दी पढ़ाने के लिए इंडियन एम्बैसी के स्कूल में एप्लाई किया तो फट से नौकरी मिल गई.
साउदी कानून समझने लगे. काले बुरके के साथ काला दुपट्टा पहनना कभी न भूलते. जानते थे कि अगर कभी मतुए ने पकड़ लिया तो सबसे पहले पति का इक़ामा(परिचय-पत्र) नम्बर नोट कर लिया जाएगा. तीन बार नम्बर नोट हुआ तो देश से बाहर. जहाँ फैमिली एलाउड होती वहीं जाते चाहे वह बाज़ार हो , रेस्तराँ हो या पार्क हो. कभी कभी कार में बैठे रहते और विजय वीडियो लाइब्रेरी से कैसेटस ले आते क्योंकि औरतें दुकान के अन्दर नहीं जा सकतीं.
कुछ बाज़ार हैं जो सिर्फ औरतों के लिए हैं. पति और ड्राइवर बाहर बैंचों पर ही बैठे रहते हैं. कुछ बाज़ार सुबह औरतों के लिए और शाम को फैमिलीज़ के लिए हैं. बैचुलर्ज़ के लिए शुक्रवार का दिन होता. भिनभिनाती मक्खियों से दूर दूर तक फैले हुए आदमी दिखाई देते. एक-दूसरे से मिलते. देश जाने वाले लोगों को पैसे और सौगात भेजते, आने वालों से चिट्ठी-पत्री और और घर से आई सौगात लेते. अपने अपने परिवारों का हाल-चाल पूछते. घर की नहीं, पूरे गाँव की खबर सुनते और बस इसी में ही सन्तोष पा जाते.

साउदी अरब एक ऐसा देश है जहाँ नमाज़ के वक्त सारे काम बन्द हो जाते हैं.फज़र की नमाज़ तो सुबह सवेरे चार बजे के करीब होती. उसके बाद की चार नमाज़ों की अज़ान होते ही शटर डाउन. मतुओं की बड़ी बड़ी ज़ी एम सी गाड़ियाँ घूम घूम कर कामकाज बन्द कर के नमाज़ पढ़ने की हिदायत देती हुई दिखाई देतीं. एक और खास बात कि साउदी अरब एक ऐसा देश है जहाँ स्टेडियम में हज़ारों पुरुष खेल देखने के लिए एक साथ बैठते. यह बात गिनिज़ बुक में भी दर्ज़ है.
अन्य धर्मों के पूजा स्थल नहीं और न ही मनोरंजन के लिए सिनेमा हॉल. वीकैण्ड्स पर कुछ दोस्त एक-दूसरे के यहाँ मिलते और बारबीक्यू करते. बस यही एक मनोरंजन का साधन होता. कभी कभी शहर से दूर इस्तराहा (एक विला जिसमें कुछ कमरे स्विमिंग पूल और खेलने का छोटा सा स्थान) बुक कराके 8-10 परिवार जन्मदिन और शादी की सालगिरह भी मना लेते.
जीवन नई नई कहानियों के साथ पड़ाव दर पड़ाव आगे बढ़ता गया. वहाँ रिश्तेदारों को वीज़ा मिलना मुश्किल है सो दोस्त ही रिश्तेदारों की भी भूमिका निभाते हैं. एक दूसरे के दुख सुख में काम आते लेकिन वह भी पति के भरोसे, जो काम से लौट कर ही कहीँ मिलने मिलाने ले जा पाते. दिल को खुश रखने के लिए सोचा करते कि हम बेगम से कम नहीं. पति शौहर ही नहीं शौफ़र भी हैं जो चौबीस घंटे डयूटी बजाते हैं.