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बुधवार, 26 दिसंबर 2007

सुनहरा अतीत गीतों में गुनगुनाता हुआ .....

आज पहली पोस्ट जो खुली रेडियोनामा की "फ़िज़ाओं में खोते कुछ गीत" जिसे पढ़कर लगा कि जहाँ चाह हो, वहाँ राह निकल आती है...
संयोंग की बात कि हमारे सिस्ट्म में कुछ पुराने गीतों का फोल्डर है जिसमें उषा जी का गाया हुआ 'भाभी आई' गीत है. सुर नूर लखनवी के हैं और संगीत दिया है सी रामचन्द्रन ने.
हालाँकि अन्नपूर्णा जी सुधा मल्होत्रा का गाया गीत सुनना चाहती हैं , इस बात की कोई जानकारे नहीं है हमें. फिलहाल इस गीत को सुनिए ..आशा करती हूँ कि आपको पसन्द आएगा.

कपट न हो बस मै तो जानूँ !

तुम छल क्यों करते मैं न जानूँ
क्यों मन रोए मैं न जानूँ
कपट न हो बस मैं तो जानूँ !

निस्वार्थ भाव स्वीकार करें तुम्हे
तुष्ट न क्यों तुम मैं न जानूँ
कपट न हो बस मैं तो जानूँ !

नैनों में है नहीं हास मुक्त
वीरान हैं क्यों मन मैं न जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ

भाव ह्रदय के हैं अति शुष्क
पाषाण बने क्यों मैं न जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ

मुक्त हास से स्नेह भाव से
मुख दीप्तीमान हो इतना जानूँ
कपट न हो बस मै तो जानूँ

मंगलवार, 25 दिसंबर 2007

हाईबर्नेशन की अवस्था में ही सभी पर्वों पर शुभकामनाएँ !

when christmas comes to town




एक बार हाइब्रेशन की अवस्था में जाने पर शीत ऋतु में बाहर आने में एक सिहरन सी होती है. एक हफ्ता क्या बीता जैसे हम ब्लॉगजगत की गलियाँ ही भूल गए. बदहवास से इधर उधर देख पढ़ रहे हैं. "एक शाम ...ब्लागिंग का साइड इफेक्ट....नये रिश्तों की बुनियाद बन चुकी थी।" शत प्रतिशत सच है.
सोचा नहीं था कि हमारी मुलाकात को बेजी इतने सुन्दर रूप में यादगार पोस्ट बना देगीं.पोस्ट पढ़कर तो आनन्द आया ही...टिप्पणियाँ पढ़कर आनन्द चार गुना और बढ़ गया. सोचने लगे कि हम इसी ब्लॉग परिवार का हिस्सा हैं और यह सोचकर अच्छा लगने लगा.
उस शाम के बाद हम पतिदेव विजय और उनके छोटे भाई की मेहमाननवाज़ी में जुट गए जो साउदी से ईद की छुट्टियाँ मनाने आए थे. इस बार ईद पर छोटे भाई साहब के कारण शाकाहारी व्यंजन परोसे गए नहीं तो कबाब और बिरयानी के बगैर ईद मनाने का मज़ा कहाँ !
ईद के बाद ईरानी परिवार के साथ ऑनलाइन चैट करके शब ए याल्दा मनाई गई. इस रात को सबसे लम्बी रात माना जाता है. इस रात दिवान ए हाफिज़ पर चर्चा होती है और उसी किताब से ही अपना फाल निकाला जाता है बस इतना ही मालूम है. एक शब ए याल्दा हम ईरान में बिता चुके हैं जिसकी मधुर यादें आज भी मस्ती में डुबो देती हैं. हमारे मित्र अली के बिज़नेस पार्टनर मुहन्दिस ज़ियाबारी हाफिज़ पर बहुत अच्छा बोलते हैं लेकिन फारसी में. अली और उनकी पत्नी लिडा बारी बारी से अंग्रेज़ी में बताते हैं. धीरे धीरे सुनने पर फारसी भी कुछ कुछ समझ आ ही जाती थी.
खुशियाँ लेकर क्रिसमस आया. मित्रों को बधाई देते हुए विजय अपने भाई को एक हफ्ते में दुबई की सैर भी करवाना चाहते थे सो हम भी उनका साथ देते हुए घूमते रहे पर दिमाग में ब्लॉग घूम रहे थे जिन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा था.
अब जाकर कुछ समय निकाल पाए हैं कि वापिस आभासी दुनिया में लौटा जाए.
नए साल में जाने से पहले पिछले साल को अलविदा करते हुए उसे कुछ देने की चाह....
विदाई का तोहफा !
क्या तोहफा दिया जाए हम इस सोच में डूबे हैं.
आप क्या कहते हैं !!!!

लब पे आती है दुआ ... !

रविवार, 16 दिसंबर 2007

काश गन से गिटार बनाई जाए !


पिछली दिनों अपने देश में दिल दहला देने वाली घटना पढ़कर मन व्याकुल और विचलित हो गया. उस पर फुरसतिया जी का लेख पढ़कर चंचल मन सोचने लगा कि काश गन फैक्टरियाँ गन को अगर गिटार में बदलना शुरु कर दें तो कितना अच्छा हो... गिटार बनेगा तो संगीत का जन्म होगा, संगीत की साधना से संघर्ष का नाश होगा ..... संगीत के साधक शांति दूत बनकर खड़े हो जाएँगे और चारों ओर चैन और अमन फैल जाएगा. सपने देखने से कौन रोक सकता है..अच्छे सपने सच भी हो जाते हैं..... कहते हैं सपने देखो तो उन्हें सच करने की लालसा भी जागती है.
गन से गिटार बनाने की बात दिमाग में आते ही सोचा कि मेरे जैसे कोई और ज़रूर होगा जो ऐसा सपना देख रहा होगा या देख चुका होगा और उसे सच करने की कोशिश में लगा होगा. ऐसा सपना Cesar Lopez ने देखा और उसे सच करने को चल रहा था शांति की राह पर हथियार को संगीत का साधन बना कर. खोजने पर एक और नाम मिला पीटर तोष उसके पास भी M16 गन से बनी गिटार है.




(Escopetarra on display at the United Nations Headquarters.)
















सीज़र लोपैज़ कम्बोडियन संगीतकार हैं जो शांति कार्यकर्ता हैं. देश में होने वाली हिंसा को रोकने की कोशिश में लगा रहता हैं. विशेष रूप में कम्बोडिया की राजधानी बोगोटा में जब भी हिंसा होती वहाँ की गलियों में जा जाकर हिंसा के शिकार लोगों के लिए मधुर हल्का संगीत बजाने लगता.
एक बार बोगोटा के किसी क्लब पर हुए हमले के दौरान उसने देखा कि एक सिपाही राइफल को गिटार की तरह लेकर खड़ा है. बस उसे देखते ही उसे सूझा कि क्यों इन सभी बन्दूकों को गिटार में बदल दिया जाए. शांति लाने का इससे अच्छा उपाय क्या हो सकता था. फिर क्या था सीज़र अपनी सोच को मूर्त रूप देने में लग गया और बना डाली एक गिटार जो शांति चिन्ह के रूप में जानी जाती है.

(An escopetarra is a guitar made from a modified rifle, used as a peace symbol. The name is a portmanteau of the Spanish words escopeta (shotgun/rifle) and guitarra (guitar).

सन 2003 में पहली इलैक्ट्रिक गिटार विनचैस्टर राइफल से बनाई. उसके बाद पाँच एसकोपैट्रास बनाईं गईं जिसमें से एक कम्बोडियन संगीतकार जुऐन को, एक अर्जेंटीन संगीतकार फिटो पैज़ और एक संयुक्त राष्ट्र संघ में रखी गई.बोगोटा की सरकार को भी एक गिटार सौंपी गई. एक अपने लिए रखी जिसे बाद में ब्रेवरी हिल्स के फण्ड रेज़र्स को 17,000 डालर में बेच दी. संयुक्त राष्ट्र संघ को दी गई गिटार को 2006 की डिसआर्मामेण्ट की कोंफ्रेस की प्रदर्शनी में रखा गया.
लुइस एल्बैट्रो परडेस के सहयोग से विनचैस्टर राइफल से गिटार बनाने के बाद अब 2006 तक लोपैज़ ने AK-47 की बारह मशीन गन कम्बोडिया के पीस कमीशनर के ऑफिस से लेकर गिटार में बदल दीं हैं. शकीरा, कार्लोस संटाना और पॉल मैक्कार्टनी जैसे प्रसिद्ध संगीतकारों को शांति-चिन्ह के रूप में दिए जाने का विचार है. दलाई लामा ने हथियार से बनाई हुई गिटार को लेने से मना कर दिया. लोपैज़ सोच रहा हैं कि स्वयं जाकर इस विषय पर बात करेगा. वह गन से गिटार को शांति चिन्ह में बदलने के उद्देश्य को विस्तार से बताना चाहता हैं.
यूट्यूब की वीडियो की भाषा समझ आए या न आए...लेकिन हम यह तो अनुभव कर ही सकते हैं कि दुनिया में कोई भी राइफल या पिस्तौल से जुड़ी हिंसा को पसन्द नहीं करता बल्कि अपने अपने तरीके से उसे रोकने का प्रयास करता है.

शनिवार, 15 दिसंबर 2007

प्रफुल्लित हुआ मन मेरा प्रशंसा आपकी पाकर !













त्रिपदम (हाइकु) नामकरण मन भाया सबके ,
यह पढ़कर मन मेरा अति हर्षाया

सकूरा जैसी मन-भावन सुन्दरता लेके,
जन्म लें त्रिपदम हर दिन मन में आया!

प्रफुल्लित हुआ मन मेरा प्रशंसा आपकी पाकर
त्रिपदम मेरे पढ़ने होंगे गहराई में जाकर !

भोर सुहानी
प्रकृति की नायिका
रवि मुस्काया
* * *
कुछ कहतीं
लहरें पुकारती
रहस्यमयी
* * *
जलधि जल
पानी का कटोरा सा
छलका जाए

गुरुवार, 13 दिसंबर 2007

मेरे त्रिपदम (हाइकु)



मेरे पहले हाइकु का जन्म 26 अक्टूबर 2007 को हुआ जिसे एक तस्वीर के साथ अपने चिट्ठे पर लगाया. आपकी सराहना ने मेरे उत्साह को बढ़ावा दिया और हर दिन एक नए हाइकु का जन्म होने लगा. जापान के हाइकु कवि हाइकु लिखते समय 'सेजिकी' नाम का शब्दकोश पढ़ते हैं जिसमे उन्हें विभिन्न ऋतुओं अर्थात 'किगु' के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है.
चेरी ब्लॉसम ट्री जिसे जापानी भाषा में 'सकूरा' कहा जाता है, वह स्प्रिंग किगू कहलाता है. हाइकु के संग्रह को नाम देते समय जब जापान के हाइकु इतिहास का अध्ययन किया तो पाया कि प्रकृति से प्रेरित होकर हाइकू लिखे जाते हैं और उनमें चेरी के पेड़ की सुन्दरता तो सबके मन को मोह जाती है. हिन्दी मे चेरी ट्री को पदम(एक प्रकार का पेड़) भी कहा जाता है.
हाइकु तीन छोटी-छोटी पंक्तियों की पूर्ण कविता है इसलिए जो नाम मन मे उपजा, वह था त्रिपदम. त्रिपदम नाम देने के पीछे एक भावानात्मक कारण जुड़ा है. अब मैं अपने सभी हाइकु त्रिपदम के नाम से लिखूँगीं.

(The Japanese flowering cherry tree known as "Sakura" is one of the most loved trees in the world. Did you know over eight thousand Japanese cherry trees grace Washington D.C.? The trees were received in as gifts of goodwill and friendship from the people of Japan. Two American First Ladies were specifically honored by the gifts: First Lady Taft received 3020 trees in 1912, and First Lady "Lady Bird" Johnson received an additional 3800 trees in 1965. When the cherry trees are blooming, Washington is especially breathtakingly beautiful.)
स्वर्णमयी सी
धरा के हस्त धरा
कनक धन
* * * *
प्रकृति संग
चिंतन में डूबता
अकेला मन
* * * *
क्षितिज दूर
गगन धरा जुड़ें
दिवा स्वप्न है
* * * *
झीना आँचल
धूल धूसरित सा
धुँधला रूप
* * * *
फटा दामन
सूरज निकलता
हाथों से छूटा

बुधवार, 12 दिसंबर 2007

आदमीनामा

(कुछ शब्दों के अर्थों को लिखने के लिए एडिट किया था सो पोस्ट ड्राफ्ट में चली गई थी, दुबारा पोस्ट कर रही हूँ.)
कई दिनों की उलझन जिसे संजीत जी की कविता 'ढूँढता हूँ मैं' ने हवा लगाकर और उलझा दिया तो सोचा कि कुछ समय के लिए जीव-जंतुओं की तरह शीतस्वापन (hibernation) की अवस्था में चले जाना चाहिए लेकिन ऐसा संभव हो नहीं पाया. कुछ मित्र हैं जो आभासी दुनिया में वापिस ले आते हैं उनमें प्रत्यक्ष रूप में अर्बुदा है जिसके साथ हर रोज़ बैठकर हिन्दी साहित्य पर ही नहीं जीवन-चक्र पर भी चर्चा होती रहती है. अप्रत्यक्ष रूप में चिट्ठाजगत के सभी चिट्ठाकार जिन्हें पढ़कर गिरते-गिरते संभलने का अवसर मिल जाता है. पारुल जी की पोस्ट देखकर बहुत अच्छा लगा सोचा क्यों न हम भी अपनी बन्द पड़ी किताबों के पन्नों के पंख खोल दें.
आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक का उपलब्ध साहित्य अपने ब्लॉग पर दर्ज करने की सोच को आज मूर्त रूप दे ही दिया. बहुत दिनों से एक कार्य-तालिका बना कर रखी थी. उसके अनुसार सामग्री भी लिखित रूप में तैयार है. शीघ्र ही उसे एक एक करके पोस्ट करने का निश्चय किया है.

नज़ीर अकबराबादी

जन्म आगरा शहर में हुआ. अरबी-फ़ारसी के मशहूर अदीबों से तालीम हासिल की. प्रस्तुत नज़्म 'आदमीनामा' में नज़ीर ने कुदरत के सबसे नायाब बिरादर, आदमी को आईना दिखाते हुए उसकी अच्छाइयों, सीमाओं और संभावनाओं से परिचित कराया है. इस संसार को और भी सुन्दर बनाने के संकेत भी दिए हैं.

आदमीनामा

दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा1 है सो है वो भी आदमी
ज़रदार2 बेनवा3 है सो है वो भी आदमी
निअमत4 जो खा रहा है सो है वो भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी

मसज़िद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ
बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्वाँ5
पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी

यां आदमी पै जान को वारे हैं आदमी
और आदमी पै तेग को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी

अशराफ़6 और कमीने से ले शाह ता वज़ीर
ये आदमी ही करते हैं सब कारे7 दिलपज़ीर8
यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर
अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए 'नज़ीर'
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी.

1.गरीब भिखारी 2.मालदार, 3.कमज़ोर, 4.स्वादिष्ट भोजन
5.कुरान का अर्थ बताने वाला, 6.शरीफ शब्द का बहुवचन
7. काम, 8.दिल को लुभाने वाला