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मंगलवार, 9 अक्टूबर 2007

एकांकी पलों की सुखद अनुभूति

बहुत दिनों बाद आज अवसर मिला अकेले समय बिताने का , अपनी इच्छानुसार अपने आप से मिलने का एक अलग ही आनन्द है. ऐसा नहीं कि आस-पास के रिश्ते बोझ लगते हैं लेकिन कभी कभी एकांत में अपने आप में खो जाना अलौकिक आनन्द की अनुभूति देता है. घर की दीवारें वही हैं लेकिन उस चार दीवारी में बैठा मन-पंछी चहचहाता हुआ इधर से उधर उड़ता अपने बन्द पंखों को पूरी तरह से खोल उस लम्हे
को जी लेना चाहता है.
चार दिन से इस अवसर को पाने की इच्छा तीव्र से तीव्रत्तम होती जा रही थी लेकिन कुछ न कुछ अनहोनी हमारी इस इच्छा को धूल चटा देती. हम थे कि बस कोशिश में लगे थे क्योंकि सुना है कि कोशिश एक आशा की किरण दिखा ही देती है. हालांकि एकांत कुछ घण्टों का ही है पर है तो सही.
हे मेरे व्याकुल मन , कम समय में बहुत अधिक खुशी पानी हो तो जी जान से लग जाओ. मेरा मन आनन्द के पलों को जितना समेटने की कोशिश कर रहा था , उतना ही वह हाथ से फिसलता जा रहा था. मुट्टी में भरने से बार बार रेत की तरह निकलती जा खुशी को, अलौकिक आनन्द को कैसा रोका जाए. सोचा कि क्यों न हथेली को खोल कर रखूँ. खुली हथेली पर खुशी खुली साँस ले पाएगी.
रिश्तों के साथ भी तो ऐसा ही होता है. जितना हम रिश्तों को बाँधना चाहते हैं , उतना ही वे हमारे दिलों के बन्धन को तोड़ देना चाहते हैं.
खुली हथेली में रखे पानी की थिरकन एहसास कराती है कि जब तक हथेली खुली है , मैं हूँ, हथेली के बन्द होते ही मेरा आसितत्त्व नहीं रहेगा.

रविवार, 7 अक्टूबर 2007

किनारे से लौट आई

समुद्र में दूर तक तैरना चाहा 
लहरों से दूर तक खेलना चाहा 
पर किनारे से लौट आई। 
वारिधि की गहराइयों में उतरना चाहा 
भँवरों में उसकी डूबना चाहा 
पर किनारे से लौट आई। 
रत्नाकर की गर्जना को सुनना चाहा 
सिन्धु तल की थाह को पाना चाहा 
पर किनारे से लौट आई। 
सागर में रवि को उतरते देखना चाहा 
चन्द्र-किरणों औ' लहरों से मिल खेलना चाहा
पर किनारे से लौट आई। 
उसके प्यार की गंभीरता को परखना चाहा
अपने आसितत्त्व को उस पर मिटाना चाहा 
पर किनारे से लौट आई।

शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2007

ईरान का सफर

(तेहरान से गिलान (रश्त) जाते हुए)


मानव मन प्रकृति की सुन्दरता में रम जाए तो संसार की असुन्दरता ही दूर हो जाए। प्रकृति की सुन्दरता मानव मन को संवेदनशील बनाती है। हाफिज़ का देश ईरान एक ऐसा देश है जहाँ प्रकृति की सुन्दरता देखते ही बनती है। सन 2002 में पहली बार जब मैं अपने परिवार के साथ ईरान गई तो बस वहीं बस जाने को जी चाहने लगा। एक महीने बाद लौटते समय मन पीछे ही रह गया।

कवियों और लेखकों ने जैसे कश्मीर को स्वर्ग कहा है वैसे ही ईरान का कोना कोना अपनी सुन्दरता के लिए जन्नत कहा जा सकता है। सबसे पहला सुखद अनुभव हुआ रियाद के ईरानी दूतावास जाकर । भारत के प्रति अपना स्नेह दिखा कर उन्होंने हमें आश्चर्यचकित कर दिया। हमारे देश की पुरानी हिन्दी फिल्में आज भी याद की जाती हैं। राजकपूर की 'संगम' , अमिताभ बच्चन की 'मर्द' , 'कुली' किसी भी विडियो लाइब्रेरी में आसानी से मिल जाती है। आजकल शाहरुख खान के भी बहुत चर्चें हैं.कई लोगों का सपना है कि अवसर मिलने पर वे भारत ज़रूर देखने जाएँगें.मेरे विचार में मध्य-पूर्वी देशों के लोग भी प्रेम और भाईचारे में किसी से कम नहीं हैं बस आगे बढ़कर हाथ मिलाने की देर है फिर देखिए कैसे दोस्ती निभाते हैं ।

ईरान के लिए वीज़ा आसानी से मिल गया । किसी कारणवश पति को रियाद ही रुकना पड़ा । मैं बच्चों के साथ ईरान के सफ़र पर निकल पड़ी। बच्चे भी कम उत्साहित नहीं थे। ईरानी मित्रों के साथ कुछ ऐसा नाता बन गया था जो अपने नज़दीकी रिश्तेदारों से भी बढ़कर था। ईरान की यात्रा से पहले ही अंर्तजाल के माध्यम से हम उस देश के बारे में बहुत कुछ जान गए थे। रियाद के ईरानी दूतावास की अध्यापिका से ईरानी भाषा सीख कर मैं अपने मित्रों को हैरानी में डाल देना चाहती थी।

यात्रा का दिन आ गया । रियाद से तहरान की हवाई यात्रा ३-४ घंटे की ही थी लेकिन उससे आगे ४-५ घंटे का सफर हमें कार से ही तय करना था। विजय के मित्र अली पहले से ही हवाई अड्डे पर हमारा इन्तज़ार कर रहे थे । समय कैसे कट गया , पता ही नहीं चला । जहाज से उतरते ही स्वागत के लिए खड़े एक अफसर ने मुस्कान के साथ हाथ जोड़कर मुझे सिर ढकने के लिए कहा। मैं भूली नहीं थी, बुरका मेरे हैंड बैग में ही था लेकिन यह नहीं मालूम था कि उतरते ही कोई टोकेगा। खैर मैंने तुरन्त अपना दुपट्टा सिर पर ले लिया। इमिग्रेशन से पहले ही मैंने अपना बुरका निकाला जो सालों से मैं रियाद में पहनती आई हूँ । बुरका पहनते ही मैं जैसे आज़ाद हो गई। "जैसा देश, वैसा भेस" उक्ति सोलह आने सच है। जिस देश में हम रहते हैं , उस देश के कायदे कानून को मान देने से ही अपना मान बढ़ता है।

एयरपोर्ट पर सभी अफसरों और कर्मचारियों ने अपने मीठे व्यवहार से हमें अपनेपन का एहसास कराया। ईरान एक सुन्दर देश तो है ही , वहाँ के लोग भी अच्छे मेहमान नवाज़ हैं। समय अच्छा गुज़रे , ऐसी कामना करते हुए अफसर ने पासपोर्टस हाथ में दे दिए और हम सामान की बैल्ट की ओर रवाना हुए। मित्र पहले से ही वहाँ खड़े इन्तज़ार कर रहे थे । सामान लेकर शीघ्र ही कार की ओर चले क्योंकि आगे की यात्रा हमारे लिए रोमांचक थी ।उत्तरी ईरान का गिलान क्षेत्र कश्मीर की तरह पहाड़ी है और जिस रास्ते से हमें गुज़रना था , वह बर्फ से ढका हुआ था। पहली बार हमें इस तरह नज़दीक से बर्फ देखने का मौका मिला था ।

रास्ते में क्वीन पड़ता है जहाँ का ऑमलेट जिसे 'नीम्ब्रू' कहा जाता है, जिसे 'लवाश' नाम की रोटी और काली चाय के साथ परोसा जाता है। 'गज़ा खेली खुशमज़ा हस्त' मेरे बोलने पर मित्र ही नहीं आसपास के लोग भी हैरानी से देखने लगे। माथे पर बिन्दी देखकर पहले ही सब लोग समझ गए थे कि हम 'मुसाफिर ए हिन्द' हैं। दरअसल इस नाम का एक टी०वी० सीरियल उन दिनों चल रहा था, जिसमें भारतीय लड़की बनकर सीता का रोल अदा करने वाली अदाकारा ईरानी ही थी, उसकी बिन्दी से लोगों को पहचान हो गई कि बिन्दी लगाने वाले लोग भारतीय होते हैं, हालाँकि आजकल कई देशों के लोग फैशन के लिए बिन्दी लगाते हैं।

चाय खत्म होते ही १०-१५ 'लवाश' रोटी साथ बाँध कर हम चल पड़े। प्रकृति का यह सुन्दर रूप कुछ अलग ही था। बर्फ से ढके पहाड़ ऐसे लग रहे थे जैसे ईरान की धरती सफेद आँचल से सिर ढके बैठी हो। कहीं कहीं सफेद आँचल पर हरे रंग का 'पैच वर्क' किया हो या यों कहें कि सफेद आँचल पर हरी टाकियाँ लगी हों।

संगीत आरोग्य साधक चिकित्सा है

संगीत की मधुर लय हमारे जीवन ही नहीँ स्वास्थ्य को भी बहुत प्रभावित करती है. आजकल संगीत चिकित्सा द्वारा तरह तरह के रोगोँ को काबू पाने की कोशिश की जा रही है. मानव के स्वभाव को जानने के लिए भी संगीत चिकित्सा की जाती है. विकलांग, ऑटिज़म , मानसिक रोगोँ से पीड़ित और एलज़इमर(Alzheimer) के रोगियोँ के व्यवहार मेँ बदलाव देखे गए हैँ. आजकल मानव के व्यवहार को समझने के लिए संगीत एक शक्तिशाली चिकित्सा प्रणाली मानी जा रही है. हाल ही मेँ एक शोध किया गया जिसमेँ समय से पूर्व जन्मे 10 बच्चोँ के कान मेँ हल्की मधुर लय मेँ तीन दिन के लिए लोरियाँ सुनाई गईँ. विशेष ध्यान देने पर पता चला कि इन बच्चोँ के खून मेँ ऑक्सीज़न का स्तर बढ़ा, ह्र्दय गति और साँस की गति लगभग साधारण बच्चोँ जैसी हो गई. स्पष्ट है कि संगीत की लय ऊर्ज़ा प्रदान करने वाली शक्ति है. लय का स्वरूप स्नायुयोँ को बल देता है और जिन लोगोँ के स्नायु कमज़ोर होते हैँ या उन्हेँ अनुभव करने की शक्ति शून्य हो जाती है, वे इस उत्तम तकनीक द्वारा फिर से स्नायु को नियंत्रित कर लेते हैं. शोध से यह भी पता चला है कि मधुर संगीत सुनने से दिल के रोगियोँ की ह्र्दय गति और रक्त-चाप नियंत्रण मेँ हो जाता है. उच्च रक्त चाप के रोगियोँ की उत्तेजना कम हो जाती है. हमारे शरीर का सम्पूर्ण शक्ति पुंज, चक्र बिन्दु ध्वनियोँ से प्रभावित होते हैं. उच्च स्वर मेँ श्लोकोँ का पाठ विशेष रूप से प्रभावशाली माना गया है. 'ॐ' के उच्चारण से जो लाभ होते हैँ उनसे हमारा देश ही नहीँ विश्व के अन्य देश भी लाभ उठा रहे हैं. यदि आप अपने जीवन मेँ संगीत का प्रभावकारी लाभ देखना चाह्ते हैँ तो नीचे दिए कुछ निर्देशोँ का पालन कर के देखिए..... * दिन भर के तनाव को दूर करने के लिए 20 मिनट के लिए 'ध्वनि स्नान' कीजिए. हल्का मधुर संगीत लगा कर आराम से सोफे पर या ज़मीन पर लेट जाइए. * ऐसा धीमा संगीत सुनिए जो साधारण ह्रदय गति जो 72 बीट पर मिनट होती है, से भी कम हो. बार बार ऐसा धीमा संगीत सुनने पर उत्तेजना शांत होती है. * साँसों के आने जाने पर ध्यान दीजिए. तनाव को भूल कर संगीत का आनन्द लीजिए. * कभी कभी बहुत अधिक काम करने से शक्ति का हनन भी हो जाता है. शक्ति लाने के लिए तेज़ संगीत भी सुन सकते हैँ. * कठिन समय मेँ जैसे ट्रैफिक मेँ जाना पहचाना , बचपन का या पुराना संगीत मन को शांत करता है. * वॉकमैन मेँ अपनी मनपसन्द का संगीत लगा कर सैर करने का आनन्द ही अलग होता है. * प्रकृति का संगीत सुनकर भी देखिए. समुद्र की उठती गिरती लहरोँ का स्वर, हरे भरे जंगल की शांति का स्वर , बहती हवा का स्वर . सम्भव नहीँ तो ऑडियो टेप्स, सीडीज़ ख़रीद लाइए.

बुधवार, 3 अक्टूबर 2007

वजूद

समझा, जाना और पहचाना मेरे वजूद को 
फिर भी बेदर्दी से नकारा मेरे वजूद को. 
निराहा, सराहा, प्यार किया तेरे वजूद को 
मन-प्राण से स्वीकारा तेरे वजूद को. 
धूल जान ठोकर से उड़ाया मेरे वजूद को
सस्ता जानकर धिक्कारा मेरे वजूद को.
क्या पाया तुमने धिक्कार कर मेरे वजूद को
क्योँ अपने काबिल न समझा मेरे वजूद को! 
तुमने न जाना, न समझा मेरी चाहत को 
अनसुना किया दिल टूटने की आहट को. 
बढ़ावा दिया प्यार मेँ भी बनावट को 
महसूस किया न प्यार की गरमाहट को.
सोचा है कि पाना है मुझे तेरे वजूद को 
और पाना है मुझे अपनी ही पहचान को. 
अपने वजूद मेँ मिलाना है तेरे वजूद को 
ज़ारी रखना है मुझे इस तलाश को !!

सब हैं त्रस्त !

जीवन की जटिल समस्याओँ को
उलझते देख हम सब हुए हैँ
पस्त
कैसे सुलझाएँ उलझी गुथियोँ को
उलझते देख हम सब हुए हैँ
त्रस्त
अकेले ही इस जटिल जीवन को
जीने को हम सब हुए हैँ
अभिशप्त
दूर कर न पाते अपने दुखोँ को
पर सुख पाने की चाह मेँ हैँ
व्यस्त
लेकिन हे मन ----
आशा के सूरज को होने न देना
अस्त
शालीनता औ' मधुर मुस्कान
बिखेरते हुए रहना सदा
मस्त !!!
(बेटे विद्युत द्वारा बनाया चित्र अनुमति के साथ)

सोमवार, 1 अक्टूबर 2007

'जय जवान, जय किसान'


तीन महीने का नन्हा सा शिशु माँ की गोद से छूट कर गाय चराने वाले की टोकरी में गिर गया। भगवान का प्रसाद मानकर चरवाहा खुशी-खुशी बालक को घर ले गया क्योंकि उसकी अपनी कोई सन्तान नहीं थी। माता-पिता ने पुलिस में रिपोर्ट कराई तो बच्चा ढूँढ लिया गया।(इस घटना का मेरे पास कोई प्रमाण नहीँ है,बचपन मेँ नाना जी से सुनी थी) वह बच्चा और कोई नहीं हमारे देश के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री थे जिनका जन्म २ अक्टूबर के दिन हुआ। गाँधी जी का जन्मदिन भी 'गाँधी जयंती' के रूप में हर साल मनाया जाता है।
शास्त्री जी के पिता श्रद्धा प्रसाद एक स्कूल टीचर थे, कुछ समय बाद अलाहाबाद में कलर्क बन गए। लाल बहादुर जब डेढ़ साल के ही थे तो पिता का साया सिर से उठ गया। माँ और बहनों के साथ दादा हज़ारी लाल के पास आकर रहने लगे। गाँव में हाई स्कूल न होने के कारण दस साल के लाल बहादुर को मामा के पास वाराणसी भेज दिया गया , जहाँ हरिश्चन्द्र हाई स्कूल में पढ़ने लगे। काशी विद्यापीठ मेँ उन्हेँ 'शास्त्री' की उपाधि मिली.
'जय जवान, जय किसान' का नारा देने वाले नेता धरती से जुड़े महामानव सादा जीवन, उच्च विचार पर विश्वास करते थे. 17 साल की उम्र से ही गाँधी जी से प्रभावित होकर देश के स्वतंत्रता संग्राम मेँ कूद गए थे. पण्डित नेहरू के निधन के बाद देश की बागडोर शास्त्री जी के हाथ मेँ सौपीँ गई थी. हमारे देश के दूसरे प्रधान मंत्री के रूप मेँ अपने कार्य काल मेँ उन्होँने अपनी आत्मशक्ति का , दृढ़ निश्च्यी होने का परिचय दिया. रेल मंत्री हुए या गृह मंत्री हुए. राजनीति से जुड़े जीवन की चर्चा करना मेरा उद्देश्य नहीँ है.
मुझे याद आ रहा है कि जब वे 'होम मिनिस्टर' थे तो लोग उन्हेँ 'होम लेस होम मिनिस्टर' कह कर चिढ़ाया करते थे. जब वे रेल मिनिस्टर थे तो रेल दुर्घटना होने के कारण त्याग पत्र दे दिया था. जेल के दिनोँ मेँ एक बेटी की बीमारी पर 15 दिनोँ के पैरोल पर घर आए पर दुर्भाग्यवश बेटी परलोक सिधार गई तो वापिस जेल लौट गए , यह कह कर कि अब बेटी तो रही नहीँ तो रुक कर क्या करेगेँ.
जीवन मेँ आने वाली कठिनाइयोँ ने उन्हेँ अपनी आग मेँ तपाकर खरा सोना बना दिया था. हरी हरी दूब की तरह दिल के नरम और अपनी मीठी मुस्कान से सब का दिल जीत लेने वाले महापुरुष से हम बहुत कुछ सीख सकते हैँ. बड़े से बड़ा तूफान आने पर हरी भरी घास वहीँ की वहीँ रहती हैँ.
शास्त्री जी एक ऐसा ही एक व्यक्तित्व हैँ जिनके पद-चिन्होँ पर चलने की कोशिश रही है.
भारत रतन शास्त्री जी के आंतरिक गुणोँ को याद करके उन पर अमल करने का प्रयास ही उन्हेँ मेरी श्रद्धाजंलि है.

कुछ पंक्तियाँ श्रद्धाजंलि के रूप मेँ शास्त्री जी के नाम :

शहद की धार को देखा जो इक तार सा
मीठा ख्याल आया इक किरदार का ..
शहद की धार या चलते दरिया की धार
देखा उस धार को बहते इक सार सा ..
तस्सवुर उभरता है एक ही शख्स का
सादा सा पुलिन्दा था ऊँचे विचारोँ का ..
चर्चा की, याद किया बस थोड़ा सा
दर्जा देती हूँ मैँ उसे महामानव का ...